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भले ही मुझे चेहरे से कोई नहीं जानता, लेकिन मेरा गीत ही मेरी अमरता और पहचान है

गीतकार अभिलाष का निधन - दो साल पहले भोपाल आए थे, कहा था आज के गीत फास्ट फूड जैसे  

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भले ही मुझे कोई नहीं जानता, लेकिन मेरा गीत ही मेरी अमरता और पहचान है

भले ही मुझे कोई नहीं जानता, लेकिन मेरा गीत ही मेरी अमरता और पहचान है

भोपाल। हर किसी की जुबां पर रहने वाला अंकुश फिल्म के गीत 'इतनी शक्ति हमें देना दाता...' लिखने वाले गीतकार अभिलाष का सोमवार को निधन हो गया। वे अगस्त-2018 में समन्वय भवन में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे। उस समय उन्होंने आज के समय के गीतों पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि अब फिल्मों में न तो साहित्यिक गीतों की कद्र है और न गीतकारों की। उन्हें वर्तमान दौर के हिसाब से खुद को बदलना पड़ा, अब वे खुद को बेच रहे हैं। आज गानें फास्टफूड की तरह हो गए हैं। पहले फिल्मी गीतों में आप शब्द का प्रयोग किया जाता था। 1200 से ज्यादा गीत लिख चुके अभिलाष ने कहा था कि उन्होंने नहीं पता था कि 'इतनी शक्ति हमें देने दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना...' गीत देश के तमाम स्कूलों, महाविद्यालयों और सरकारी प्रतिष्ठानों ने प्रार्थना के रूप में स्वीकार कर लिया जाएगा।

निष्काम, निस्वार्थ योगी रहे अभिलाष
खामोश हो गई वह लेखनी जो कहती थी इतनी शक्ति हमें देना दाता। जो बताती थी जीवन इक नदिया है, सुख दु:ख दो किनारे हैं। अब दुनिया को कौन यह गीत देगा। अभिलाष जी तो चले गए इस दुनिया से आज। मेरे बड़े भाई से थे वे। बच्चों के लोकल गार्जियन थे मुंबई में वे। उनका भोपाल आना मेरे उत्साह का कारण होता था। किसी भी तामझाम और आडम्बर से दूर थे वे। मैं कहता था भाईसाहब दुनिया का सबसे अधिक लोकप्रिय गीत दिया है आपने। मंच पर आओ आप। उनका जवाब होता मैंने नहीं दिया खुद उसने दिया है यह गीत तो। जिनके मोबाइल की रिंगटोन है इतनी शक्ति हमें देना उनमें से 80 प्रतिशत को यह नहीं पता इसके लेखक कौन हैं। निष्काम, निस्वार्थ योगी रहे।

मदन मोहन समर, कवि व पुलिस अधिकारी

उनमें कभी सेलिब्रेटी का भाव नहीं था
मेरी उनसे पहली बार मुलाकात 8 साल पहले भोपाल में ही हुई थी। वे जब भी भोपाल आते तो संग्रहालय में जरूर आते थे। उन्होंने मेरी 25वीं विवाह की वर्षगांठ पर पगड़ी भेंट की थी। वे बहुत सहज और सरल स्वभाव के थे। इसी के चलते उन्हें हमेशा आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा। इतनी शक्ति हमें देना दाता... जैसा महान गीत लिखने के बाद भी उन्हें कभी रॉयल्टी का एक पैसा भी नहीं मिला। उन्होंने कभी मांगा भी नहीं है। एक दिन वे पत्नी के साथ बैठकर टीवी देख रहे थे तो किसी दर्शक ने कहा कि ये गीत तो एक महात्मा ने लिखा। उन्होंने पत्नी से कहा कि भले ही मुझे कोई नहीं जानता हो, लेकिन मेरा गीत ही मेरी अमरता की पहचान रहेगा। भोपाल में भी उन्होंने डॉक्यूमेंट्री बनाई, लेकिन उन्हें पैसा नहीं मिला। उनमें कभी सेलिब्रेटी का भाव नहीं था।
राजुरकर राज, निदेशक, दुष्यंत संग्रहालय