लोकरंग में पहली बार शामिल होंगे तीन देश, घुमंतू समुदाय की जीवन शैली पर 5 डेरे तैयार
भोपाल. गणतंत्र दिवस पर संस्कृति विभाग की ओर से रवींद्र भवन परिसर में आयोजित पांच दिवसीय लोकरंग में देशभर के कलाकार नृत्य, गायन, वादन पर आधारित प्रस्तुतियां देंगे। इसमें लोकरंग के माध्यम से देश में पहली बार विमुक्त, घुमक्कड़ और घुमंतू जैसी खानाबदोश जनजातियां की जीवन शैली, भोजन, पौराणिक कथाएं, कला एवं सांस्कृतिक विशिष्टता को प्रदर्शित किया जाएगा। साथ ही पहली बार राष्ट्रीय पुस्तक मेले का आयोजन होगा।
लोकरंग के पहले दिन विमुक्त कालबेलिया समुदाय के जीवन एकाग्र पर आधारित चरैवेति समवेत नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी जाएगी। इसका निर्देशन रामचंद्र करेंगे। वहीं नाटिका में सूत्रधार के रूप में बॉलीवुड अभिनेत्री हिमानी शिवपुरी और पद्मश्री 95 वर्षीय राम सहाय पांडे रहेंगे।
एक साल में घुमंतू समुदाय की जीवन शैली को समझा
जनजातीय संग्रहालय के अध्यक्ष अशोक मिश्रा ने बताया कि समाज में घुमंतू, विमुक्त एवं घुम्मकड़ जनजाति के प्रति गलत अवधारणाएं बनी हुई थी। एक समाज किसी एक ही प्रवृत्ति में ही संलिप्त नहीं हो सकता है। इस समाज के बारे में जानने के लिए हमने एक साल तक गहराई से शोध किया। इनकी जीवनशैली और इतिहास को बारीकियों को समझा। जिससे लोगों के बीच बनी अवधारणाएं दूर हो सकेंगीं।
पहली बार होगा संवाद कार्यक्रम
लोकरंग में पहली बार संवाद कार्यक्रम होगा। इसमें घुमंतू, विमुक्त एवं घुम्मकड़ समाज की कला परंपरा पर अध्येता के साथ सवांद किया जाएगा। रिसर्च किए हुए विशेषज्ञ इन जनजातियों पर समुदायों के लोगों से संवाद करेंगे। इस दौरान कई कॉलेज के छात्र भी मौैजूद रहेंगे। जो खानाबदोश समुदायों की जीवनशैली के बारे में समझ सकेंगे।
यूक्रेन, यूके और इजिप्ट के कलाकार
पहले कभी लोक रंग में किसी देश को शामिल नहीं किया था। यह पहली बार होगा जब यूक्रेन, यूके और इजिप्ट देश के कलाकार यहां प्रस्तुति देंगे। इन देशों से आने वाली टीम में 6-6 कलाकार शामिल होंगे। जो अपनी संस्कृति को डांस के माध्यम से प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा पहले दिन लगभग 600 कलाकार नृत्य की प्रस्तुति देंगे। वहीं चरैवेति समवेत नृत्य नाटिका में 80 कलाकार शामिल होंगे।
10 दिन में बनाए जाएंगे डेरे
घुमंतू जनजातियों के 5 डेरों का निर्माण बांस, लकड़ी, लोहा, बल्ली और मिट्टी से होगा। एक डेरे को बनाने में लगभग 10 दिन का समय लगेगा। डेरा बनाने में उपयोग होने वाले कुछ सामान समुदाय के लोग अपने क्षेत्रों से लेकर आ रहे हैं, जो सामान यहां पर मौजूद हैं वे जनजातीय संग्रहालय द्वारा उपलब्ध कराए जाएंगे। एक डेरा 70-80 स्कवायर फीट में तैयार होगा।