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30 साल चुनौतियों के बीच बेहतर शिक्षा के लिए की साधना, पाया मुकाम

शिक्षा के क्षेत्र में नवीन तकनीक के प्रयोग और बेहतर शैक्षणिक कार्य के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2017 से सम्मानित शिक्षिका डॉ. उषा खरे से बातचीत

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30 साल चुनौतियों के बीच बेहतर शिक्षा के लिए की साधना, पाया मुकाम

भोपाल. संसाधन जुटाना और लगातार उनका बेहतर उपयोग बड़ी चुनौती... हमारे स्कूल को 2016 में माइक्रोसॉफ्ट से सीएसआर के तहत टैबलेट्स और प्रोजेक्टर मिले थे। पढ़ाई में इनका उपयोग चुनौती थी। यह कहना है जहांगीराबाद स्थित शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला की प्राचार्य डॉ. उषा खरे का। वे प्रदेश से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2017 के लिए चयनित एकमात्र शिक्षिका हैं।

वे बतातीं हैं कि फ्री वाई-फाई के साथ स्मार्ट क्लासरूम तैयार करवाए। टैबलेट्स में पूरे कोर्स सहित कई जानकारियां अपडेट की। छह कक्षाओं की छात्राओं को तीन साल से इनसे पढ़ा रहे हैं। सभी ने कम्प्यूटर सर्टिफिकेशन हासिल किए और यह सब हुआ जीरो मेंटेनेस कॉस्ट पर। हमारे एक भी टैबलेट में आज तक कोई खराबी नहीं आई है।

स्कूल इंग्लिश मीडियम किया : डॉ. खरे के अनुसार सात साल पहले प्राचार्य बनी तो शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग का मौका मिला। 2013 में अपने स्तर पर प्रयास करके स्कूल को इंग्लिश मीडियम का दर्जा दिलवाया। इसके बाद नामांकन तीन गुना बढ़ गए। फिर स्मार्ट क्लास और टैबलेट्स से पढ़ाई के प्रयोग शुरू किए। अब तक 300 छात्राएं माइक्रोसॉफ्ट से सर्टिफिकेशन कोर्स कर चुकी हैं। अभी कई सपने बाकी हैं, जिन पर काम जारी है।

लगातार संघर्ष जारी
डॉ. उषा खरे ने हेडमास्टर पिता को रोल मॉडल मानती हैं। शिक्षक बनने का सपना सच हुआ, लेकिन अड़चनें कम न थी। 1985 में पहली पोस्टिंग ऐसे गांव में हुई, जहां लाइट नहीं थी। तीन दशक तक हर व्यवस्था में बेहतर करने की कोशिश की। खूब संघर्ष किया। इसके साथ ही विभिन्न विषयों में मास्टर्स, पीएचडी और संगीत में डिप्लोमा भी किया।


अब कड़े मानक हैं
पहले 300 शिक्षक पुरस्कार पाते थे। इस बार देशभर से 46 शिक्षकों का चयन पुरस्कार के लिए किया जाना था। प्रदेश से छह शिक्षकों का कोटा था। 100 से अधिक शिक्षकों ने ऑनलाइन आवेदन किया था। राज्य सरकार ने छह नाम चयनित करके भेजे, जिनका प्रेजेंटशन दिल्ली में हुआ। इसके बाद डॉ. उषा खरे को चुना गया।