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Memories: व्यापमं महाघोटाले की वो कहानी जो रह गई अधूरी, आज भी रहती है चर्चाओं में

तत्कालीन राज्यपाल के निधन के बाद अधूरी रह गई थी वो आत्मकथा, जिसमें लिखने वाले थे व्यापमं की पूरी कहानी…।

भोपालNov 21, 2019 / 06:38 pm

Manish Gite

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भोपाल। आत्मकथा का पहला भाग लिख चुके तत्कालीन राज्यपाल रामनरेश यादव ने कहा था कि वे व्यापमं और उससे जुड़ी कई बातों को अपनी आत्मकथा के दूसरे हिस्से में जगह देने वाले हैं। लेकिन, अफसोस ऐसा नहीं हो सका। किसी को नहीं पता था कि व्यापमं के कई राज जो सिर्फ रामनरेश यादव से जुड़े थे, वे उनके साथ ही चले जाएंगे। देश का सबसे चर्चित एजुकेशन घोटाले में उनकी भागीदारी किसी सबूत की मोहताज नहीं थी। अब भी वे व्यापमं घोटाले से पूरी तरह से बरी नहीं हुए थे।

 

मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव का 89 वर्ष की उम्र में 22 नवंबर 2016 को निधन हुआ था। उन्होंने 8 सितम्बर 2016 तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाली थी, लेकिन क्या मध्य प्रदेश के सन्दर्भ में रामनरेश यादव को याद किए जाते हैं, ऐसा नहीं है। वे बड़े मुद्दतों तक व्यापमं महाघोटाले की वजह से भी चर्चाओं में बने रहते हैं।

 

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200 पन्नों में लिखी ‘मेरी कहानी’
राज्यपाल पद पर रहते हुए उन्होंने ‘मेरी कहानी’ नाम से अपनी राजनीतिक जिंदगी का सफरनामा लिखा था। 200 पन्नों की इस किताब में कांग्रेस के प्रति आभार भी व्यक्त किया गया है, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी, चरण सिंह और वीपी सिंह जैसे उनके जमाने के तमाम दिग्गजों का नाम तक नहीं लिया। लेकिन, ये किताब इसलिए अधूरी नहीं है। अधूरा रहने की वजह है, इस किताब में व्यापमं घोटाले में उनकी भूमिका और संलिप्तता का उल्लेख न मिलना। अब भी लोग उनकी अधूरी कहानी में से व्यापमं से जुड़े पहलुओं को खोजकर यह कहानी पूरी करना चाहते हैं, लेकिन शायद अब संभव नहीं है।

 

ये बात सही है कि जब व्यापमं से पर्दा उठा तो धड़ाधड़ गिरफ्तारियां होने लगी थीं, जांच कमेटी अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ लगा रही थी। तब संवैधानिक पद पर होने के कारण नाम आने के बावजूद यादव को गिरफ्तार नहीं किया गया। लेकिन, उनकी व्यापमं मामले में संलिप्तता सामने आना बड़ी बात थी। इससे भी बड़ी बात थी, उनके बेटे शैलेष यादव की मौत। व्यापमं घोटाले में फंसे उनके बेटे शैलेष की रहस्यमय परस्थितियों में मौत होने के बाद भी उनकी आत्मकथा में इस घटना को जगह नहीं मिल पाई।

 

उन दिनों की यादें भी नदारद
अपनी कहानी में राज्यपाल ने ईमानदारी के साथ इस बात की चर्चा की थी कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह उन पर आंख बंद करके भरोसा करते थे, पर व्यापमं वाले हिस्से को वे नहीं लिख पाए जबकि इस घोटाले मे फंसे उनके बेटे शैलेष यादव की रहस्यमय मौत हो गई थी और उनका विश्वसनीय ओएसडी धनराज यादव भर्तियों के बदले घूस लेने के आरोप में जेल चले गया।

 

पिता पर आंच आते देख बेटा था तनाव में
व्यापमं की के चलते ये पहलू सबसे ज्यादा चर्चा में रहा कि अपनी गिरफ्तारी के डर से और पिता की प्रतिष्ठा दांव पर लगते देख राज्यपाल के बेटे शैलेष यादव ने खुदकुशी कर ली अथवा फिर इस तनाव को बर्दाश्त न कर पाने के कारण उसकी असामयिक मृत्यु हो गई। वास्तविक कारण जो भी रहा हो, अपनी किताब में रामनरेश यादव उससे भी कन्नी काट गए थे।

रामनरेश यादव की ‘मेरी कहानी’ में उनके राजनीतिक सफर की कहानी ही भरपूर है। इस किताब में उन्‍होंने कांग्रेस में आने, सीएम बनने और यूपी में उनके सीएम रहते समय हुए सांप्रदायिक दंगों को सुलझाने के घटनाक्रम के बारे में काफी कुछ बताया, लेकिन राज्यपाल के तौर पर उनके कार्यों को किताब में न के बराबर ही जगह मिली है।

 

नहीं लिखी जाएगी अगली कहानी
कहानी अधूरी ही रह गई, उस हिन्दी फिल्म की तरह जिसमें दर्शक अपने पसंदीदा हीरो की एन्ट्री का इंतजार करते रह जाते हैं, लेकिन फिल्म के अंत में उसे अगली किस्त में दिखाने का वादा किया जाता है। लेकिन, शायद अब ये इंतजार कभी खत्म नहीं होगा, क्योंकि अगली कहानी अब कभी नहीं लिखी जाएगी।

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