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राज्यपाल को फिर मिलेगा माखनलाल विवि में दखल का अधिकार

- सरकार सीधे विधानसभा में लाएगी संशोधन विधेयक, जुलाई 2019 में ही अधिकार कम करने दी थी मंजूरी

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भोपाल। माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में सरकार एक बार फिर राज्यपाल के अधिकार बढ़ाने जा रही है। सरकार ने जुलाई 2019 में विधानसभा के मानसून सत्र में राज्यपाल के अधिकारों में कटौती करके विश्वविद्यालय की महापरिषद में उनके प्रतिनिधि रखने के अधिकार को कम करने एक्ट संशोधन को मंजूरी दी थी, लेकिन अब इस अधिकार को वापस किया जा रहा है। इसके लिए विधेयक में फिर से संशोधन किया जा रहा है।

दरअसल, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में महापरिषद सबसे पॉवरफुल बॉडी होती है। इसमें राज्यपाल किसी भी यूनिवर्सिटी के कुलपति को नामांकित कर महापरिषद में सदस्य बनाते हैं। इस विश्वविद्यालय में कुलपति का चयन महापरिषद की मंजूरी से ही होता है, इसलिए महापरिषद की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

महापरिषद में राज्यपाल का प्रतिनिधि होने से उनका दखल विश्वविद्यालय के कुलपति चयन में रहता है। लेकिन, उनके प्रतिनिधि रखने के अधिकार को खत्म करने से उनका दखल खत्म हो जाएगा। हाल ही में सरकार ने उनके प्रतिनिधि रखने के अधिकार को खत्म कर दिया था। इस पर राज्यपाल लालजी टंडन ने सीएम कमलनाथ को ऐतराज जताया था। सूत्रों के मुताबिक इसके बाद सीएम कमलनाथ ने राज्यपाल के अधिकार को बरकरार रखने के निर्देश दे दिए हैं। इसके तहत अब विधेयक में संशोधन सीधे विधानसभा में पेश किया जाएगा।

अन्य विश्वविद्यालयों से अलग है माखनलाल का विधेयक -

पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना अन्य विश्वविद्यालयों से अलग हटकर है। अन्य विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति का अधिकार सीधे राज्यपाल को है। चयन समिति राज्यपाल को नामों का पैनल भेजती है, राज्यपाल चाहे तो इस पैनल से या फिर इससे भी अलग हटकर किसी अन्य योग्य व्यक्ति को कुलपति नियुक्ति कर सकते हैं। वही माखनलाल विवि का विधेयक अलग है। यहां महापरिषद के जरिए कुलपति का चयन होता है, इस कारण महापरिषद ही सबसे पॉवरफुल बॉडी है।


विवादों के कारण कम किए थे अधिकार-

राज्य सरकार ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में धारा 52 लगाकर कुलपति बर्खास्त कर दिए थे। पूर्व राज्यपाल आनंदीबेन के समय यह कार्रवाई हुई थी। इसके बाद से राजभवन और सरकार में तनातनी के हालात बने। नए राज्यपाल लालजी टंडन आए, तब भी मतभेद बरकरार रहे। पहले महापौर के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से बंद करने को लेकर तकरार के हालात बने और फिर विश्वविद्यालयों के कुलपति को लेकर मतभेद सामने आए।

पुराना इतिहास है टकराव का-

दिग्विजय शासनकाल में राजभवन और राज्य सरकार में अधिक टकराहट रही। दिग्विजय सिंह के दूसरे कार्यकाल के दौरान राज्यपाल भाई महावीर राज्यपाल के समय सबसे ज्यादा टकराहट थी। विश्वविद्यालयों पर सीधा नियंत्रण राजभवन का होता है, इसलिए राजभवन को राज्य सरकार का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं था। इसको लेकर राज्य सरकार ने कुलपति और कुलसचिवों की नियुक्ति और तबादले के अधिकार अपने पास लेने के प्रयास किए। कुलसचिवों की नियुक्ति और तबादले के अधिकार तो सरकार लेने में कामयाब हो गई, लेकिन कुलपति की नियुक्ति के अधिकार लेने में सफल नहीं हो सकी। इसलिए पिछली सरकार से लेकर अब तक तकरार की स्थिति चलती रही है।