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फादर्स डे पर जमीनी हकीकत : अपने ही बच्चों से मिलने को लिए तरस रहे हैं ये पिता

फादर्स डे पर आज जहां लोग सोशल मीडिया पर अपने पिता के साथ फोटोज शेयर कर एक दूसरे को इस दिन की बधाई दे रहे हैं, वहीं दूसरी और जमीनी हकीकत कुछ ओर ही बयां कर रही है.

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फादर्स डे पर जमीनी हकीकत : अपने ही बच्चों से मिलने को लिए तरस रहे हैं ये पिता

फादर्स डे पर जमीनी हकीकत : अपने ही बच्चों से मिलने को लिए तरस रहे हैं ये पिता

भोपाल. फादर्स डे पर आज जहां लोग सोशल मीडिया पर अपने पिता के साथ फोटोज शेयर कर एक दूसरे को इस दिन की बधाई दे रहे हैं, वहीं दूसरी और जमीनी हकीकत कुछ ओर ही बयां कर रही है, पत्रिका ने जब वास्तविक हालात जानने के लिए वृद्धाश्रम का रूख किया, तो हैरान कर देने वाला सच सामने आया, आज अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों से मिलने के लिए तरस रहे हैं।

आज फादर्स डे है, इस मौके पर सोशल मीडिया पर एक तरफ युवा फादर्स डे के दिन पिता के साथ अपनी फोटो शेयर करके अपने पिता के प्रति प्रेम दिखते है या फिर अपने पिता के ऊपर लंबे लंबे मैसेज लिखकर अपने पिता के ऊपर उसी दिन सबसे ज्यादा प्रेम दिखाते है। वहीं दूसरी तरफ फादर्स डे के इस मौके पर बहुत से पिता ऐसे भी हैं, जिनके बच्चों ने उनको घर की चौखट से बाहर कर दिया है और वह अब वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हैं इसी को लेकर प्रदेश कि राजधानी भोपाल में स्थित अपना घर वृद्धाश्रम पहुंचा, और वहां का हाल जाना। तो वह कि हकीकत को देख कर कुछ और ही लग रहा था।

सबसे पहला फादर्स डे किस ने मनाया

सबसे पहले 9 जून 1910 में पहली बार अमेरिका में फादर्स डे मनाया गया था। सोनोरा स्मार्ट डॉड ने इसकी शुरुआत की थी. दरअसल सोनोरा स्मार्ट डॉड की मां नहीं थीं और उनके पिता ने ही उनको पाल पोस कर बड़ा किया और उनको मां-बाप का दोनों का प्यार दिया। अपने पिता के इस प्यार, और त्याग, समर्पण को देखकर सोनोरा स्मार्ट डॉड ने सोचा कि क्यों ना एक दिन पिता के नाम भी हो। इसके बाद सोनोरा स्मार्ट डॉड ने 19 जून को पिता दिवस के रूप में मनाया. और फही फिर 1966 में अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इसे फादर्स डे मनाने की आधिकारिक घोषणा कर दी थी। इसके बाद फिर वही 1972 से अमेरिका में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाने लगा और वही आज के दिन अमेरिका में आधिकारिक छुट्टी भी होती है।

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अपना घर वृद्धाश्रम माधुरी मिश्रा ने बताया कि

अपना घर आश्रम में लगभग 25 से 30 बुजुर्ग है। हर बुजुर्ग की अपनी एक अलग कहानी एक अलग दास्तान है। किसी ने प्रॉपर्टी के लिए पिता को वृद्धाश्रम छोड़ा तो किसी ने पैसे के लिए। तो वही किसी ने अपने पिता कि प्रॉपर्टी अपने नाम कर ली। लेकिन फिर भी उन पिता को अपने ही घर में पनाह नहीं मिली। और कही तो अपने बेटे कि पत्नी यानी उनकी बहू को परेशानी थी, इसलिए कई बेटे ने पिता को छोड़ दिया।