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MP के अतिथि विद्वानों के लिए सरकार का बढ़ा कदम, मिलेगा फिक्स वेतन

मध्यप्रदेश के सभी कॉलेजों में पढ़ाने वाले अतिथि विद्वानों के लिए अच्छी खबर आ रही है। प्रदेश सरकार ने अब सरकारी कॉलेजों में पढ़ाने वाले अतिथि विद्वानों

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भोपाल

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Mohit Datey

Nov 25, 2017

teacher

भोपाल। मध्यप्रदेश के सभी कॉलेजों में पढ़ाने वाले अतिथि विद्वानों के लिए अच्छी खबर आ रही है। प्रदेश सरकार ने अब सरकारी कॉलेजों में पढ़ाने वाले अतिथि विद्वानों के मानदेय में इजाफा करने की तैयारी कर ली है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो थोड़े दिन बाद ही दिन में प्रतिदिन 200 से 600 रुपए पढ़ाने वाले शिक्षकों का मानदेय महिने के हिसाब से तय हो जाएगा। उन्हें 25 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जाएगा। अभी छुट्टियों का पैसा नहीं दिया जाता था। साथ ही एक पीरियड के 200 रुपए दिए जाते हैं। एक दिन में कभी एक पीरियड, तो कभी दो या कभी कभी तीन पीरियड तक पढ़ाने का मौका मिलता है। ऐसी स्थिति में जो मानदेय बनता है वह पर्याप्त नहीं लगता है।

फिक्स मानदेय का प्रस्ताव भेजा
सूत्रों की माने तो मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग ने अतिथि विद्वानों का मानदेय प्रतिमाह 25 हजार रुपए फिक्स करने की तैयारी कर ली है। विभाग ने इस प्रस्ताव को वित्त विभाग की राय जानने के लिए भी भेजा है। इसके अलावा वित्त विभाग से जवाब के बाद इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दिया जाएगा।

यह भी है खास
-प्रदेश के शासकीय कॉलेजों में 4200 से अधिक अतिथि विद्वान पढ़ाते हैं। इन विद्वानों को 200 रुपए प्रति लेक्चर के हिसाब से पैसा दिया जाता है। जबकि एक विद्वान अधिक से अधिक तीन लेक्चर ही रोज ले सकता था।
-खेल शिक्षक और लाइब्रेरियन को 580 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मानदेय दिया जाता है। उच्च शिक्षा विभाग का नया प्रस्ताव सभी विद्वानों को 25 हजार रुपए प्रतिमाह तय करवा देगा। हालांकि यह वेतन नहीं मानदेय ही कहलाएगा।

लेकिन 25 हजार तक ही होगा मानदेय
-यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) के नियमों के अनुसार कोई भी राज्य सरकार अतिथि विद्वानों को 25 हजार रुपए से अधिक मानदेय नहीं दे सकती है।
-प्रदेश सरार यह मानदेय बढ़ा रही है लेकिन आगे इसमें और इजाफे की संभावना बिल्कुल ही नही है।

नियमितीकरण की मांग
अतिथि विद्वान महासंघ के अध्यक्ष देवराज सिंह का कहना है किहालांकि प्रदेश सरकार का यह कदम अस्थाई ही है। सरकार संविदा पर ही रखना चाहती है। अतिथि विद्वानों के संगठन की मांग है कि 15 से 20 वर्षों से काम कर रहे अतिथि विद्वानों को नियमित करना चाहिए।