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हैलो हाय, हमारी संस्कृति नहीं, हमारी संस्कृति तो हाथ जोड़कर प्रणाम करना है, जो एकता और आनंद का प्रतीक

विद्यासागर संस्थान और अवधपुरी मंदिर समिति की ओर से युवा बोध संस्कार प्रवचन माला

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jain samaj

Kunthu Sagar Maharaj

भोपाल. सुबह उठकर चेहरे पर मुस्कान होना चाहिए और बड़ों को प्रणाम करना चाहिए। मंदिर मे जो सम्मान भगवान को मिलता है माता पिता को भी वही सम्मान मिलना चाहिए। माता पिता के सम्मान और चरण वंदना से बढ़कर और कोई पुण्य नहीं है। यह बात वद्या सागर संस्थान एवं अवधपुरी मन्दिर समिति के तत्वावधान में आयोजित युवा बोध संस्कार प्रवचन माला में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के शिष्य जैनमुनि कुंथु सागर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि प्रणाम में बड़ा आनन्द है, प्रणाम में विजय झलकती है, हैलो-हाय भारतीय संस्कृति नहीं है यह बिखराव का प्रतीक है और प्रणाम करना एकता व आनंद का प्रतीक है।

मुनिश्री ने एक कथा सुनाते हुए कहा कि एक बार सभी देवता बैठे हुए थे और विचार कर रहे थे कि सबसे बड़ा कौन है। तय हुआ कि जो चारों धाम की यात्रा करके सबसे पहले आएगा सबसे बड़ा वही होगा। जब सभी देवता लौटे को देखा श्री गणेशजी वहां बैठे थे। सबने कहा कि आप इतनी जल्दी कैसे आ गये तो गणेजी ने विनम्रतापूर्वक कहा कि मैंने अपनी मां के तीन चक्कर लगा लिए क्योंकि मेरे लिए मेरी मां ही चारों धाम हैं।

घर में माता पिता के लिए जगह नही


मुनीश्री ने कहा कि आज बच्चे बूढ़े मां बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं। यहां माता पिता दो समय की रोटी तो खाते हैं पर उनके मन से पूछो जों हमेशा अपने बच्चों के लिए तड़पता रहता है। उन्होंने भावुक अंदाज में कहा कि क्या हो गया हमारी संस्कृति को आज लोगों ने कुत्ते पाल रखे हैं और उनको पूरी सुविधा दे रहे हैं पर अपने बुजुर्ग माता-पिता के लिये उस घर में जगह नहीं है ।

बेटियों के पैर क्यंू पूजे जाते हैं


प्रवचनों के बाद प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान एक बच्ची ने मुनीश्री से सवाल किया कि हमारे घर में माता पिता और सभी बड़े हमारे पैर क्यूं पूजते हैं। इस पर मुनीश्री ने कहा कि बेटियां मां दुर्गा का रूप होती हैं। यही कारण है कि बेटियां पूज्यनीय होती हैं और उनको पूजने से सारे दुख दर्द दूर हो जाते हैं।

नारी समर्पण मांगती है, मां समर्पित रहती है


मां हमेशा अपने बच्चों की भलाई का सोचती है। मुनीश्री ने कहा कि नारी समर्पण मांगती है समर्पित नहीं होती जबकि मां कभी समर्पण नहीं मानती पल-पल बच्चों के लिये समर्पित रहती है। नारी के तीन रूप हैं प्रेमिका जो आंख बंद करके प्रेम करती है उसे विवेक व सही गलत का ध्यान नहीं रहता। पत्नी हमेशा आंख दिखा-दिखाकर प्रेम करती है, बात-बात पर अपनी बात मनवाती है। मां तो वह है जो आंखें बन्द होने तक अपने बच्चों से निस्वार्थ प्रेम करती है।