
बड़े अगर हमें किसी काम के लिए मना करते हैं तो उन्हें भी वो काम नहीं करना चाहिए
भोपाल। आरंभ फाउंडेशन की ओर से बाल अभिव्यक्ति के अंतर्गत लघु बाल कथा प्रतियोगिता का आयोजन बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र के तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. अरविंद जैन ने की और मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कुलतार कौर कक्कड़ और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार आशा शर्मा रहीं।
इस दौरान बढ़- चढ़कर विषय अंतर्गत बच्चों ने 'मैं और मेरा मोबाइल' पर लघु कथा का वाचन किया।बच्चों ने अपनी विविध विषय वस्तु पर लघु बाल कथा में मोबाइल का जिक्र किया और उसके नकारात्मक- सकारात्मक योगदान का जिक्र किया।
अक्षरा मिश्रा ने अपनी लघु बाल कथा कहा जब बाल सभा में मोबाइल का शोर किया तो किस तरह डांट खाई। अक्षरा ने कहा कि बड़े अगर हमें किसी काम के लिए मना करते हैं तो बड़ों को भी वह नहीं करना चाहिए।
भूमि ने अपनी कहानी में यह बताया कि कभी-कभी छोटे भी समझदार होते हैं और उन्होंने चाचा को मोटरसाइकिल पर मोबाइल से बात करते हुए देखा तो टोका, लेकिन वह नहीं माने और दुर्घटना हो गई। लघु कथा प्रतियोगिता का निर्णय श्यामा गुप्ता और सुधा दुबे ने किया। प्रथम स्थान ख़ुशी सक्सेना को द्वितीय स्थान आद्या भारतीय को और तृतीय स्थान अविज्ञा चौकसे को मिला।
मोबाइल से आई क्यू बढ़ रहा है लेकिन ई क्यू घट रहा है
इस दौरन मुख्य अतिथि कुलतार कौर कक्कड़ ने कहा कि बच्चों में हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु उनमें लेखन, पठन- पाठन क्षमता संवर्धन हेतु यह आवश्यक है कि उन्हें बाल साहित्य की ओर मोड़ा आ जाए और पुस्तक पढऩे की तरफ प्रेरित किया जाए।
आरंभ फाउंडेशन की अध्यक्ष अनुपमा अनुश्री ने कहा कि आजकल डिजिटलाइजेशन के दौर में बच्चे अधिकतर अपना समय और ऊर्जा इन गेजेट्स में व्यर्थ करते हैं। गेजेट्स उन्हें आईं क्यू की दृष्टि से मजबूत बना रहे हैं लेकिन इमोशनली कमजोर कर रहे हैं।
उनका आई क्यू बढ़ रहा है लेकिन उनका ई क्यू घट रहा है। जो कि मानवीय नहीं बल्कि यांत्रिक गुण हैं, तो हमें इन यंत्रों का प्रयोग करके खुद को यंत्र नहीं बनाना बल्कि इन गेजेट्स का संतुलित उपयोग करके अपने ज्ञान में वृद्धि करनी है और अपने जीवन में एक हद, एक संतुलन स्थापित करना है।
कार्यक्रमों में मंच पर भी लोग मोबाइल पर ही लगे रहते हैं
डॉ. अरविंद जैन ने कहा कि यदि पूरे परिवार का वातावरण टीवी, मोबाईल संस्कृति से परिपूर्ण हैं तो कोई समस्या नहीं लेकिन अगर मां-बाप जागरूक हो गए तो उसका विरोध करने पर बालक का आक्रोश या विद्रोह उभर कर सामने आने लगता हैं। वर्तमान में एकल परिवार और एकल बच्चा होने से माता-पिता उसके सामने घुटने टेकने लगते हैं और उसकी आपूर्ति करते हैं। आपूर्ति न होने पर अज्ञात भय से ग्रस्त होने लगते हैं।
यह क्रम कुछ वर्षों तक चलने से उसका व्यसन बन जाता है। बाल कल्याण केंद्र के निदेशक महेश सक्सेना ने कहा कि आप किसी के भी घर जाइये यहां तक कि कार्यक्रमों में मंच पर भी लोग मोबाइल पर ही लगे रहते हैं। सब मोबाइल पर ही मिलते हैं, घर के सदस्यों से बात नहीं, बस मोबाइल पर ही जाने अंजानो से बात हो रही है। मोबाइल की इस कदर दीवानगी सचमुच आज की विकट समस्या है। आज विवादों का बड़ा कारण है मोबाइल।
Published on:
08 May 2019 09:00 am
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