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मिट्टी का कल्पनाशील उपयोग संस्कृति की शुरुआत

'मिट्टी आधारित मूर्ति निर्माण का महत्व एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण' कार्यशाला आयोजित

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मिट्टी का कल्पनाशील उपयोग संस्कृति की शुरुआत

मिट्टी का कल्पनाशील उपयोग संस्कृति की शुरुआत

भोपाल। मिट्टी हमारे परिवेश का हिस्सा है लेकिन पर्यावरण की प्रतिकूलताओं का इस पर असर पड़ा है। पूजा की सामग्री से लेकर बच्चों के खिलौनों के निर्माण में मिट्टी का उपयोग हो रहा है। मिट्टी का कल्पनाशील उपयोग ही संस्कृति की शुरुआत है। ये बात भारत भवन के वरिष्ठ कलाकर्मी देवीलाल पाटीदार ने विज्ञान भवन में 'मिट्टी आधारित मूर्ति निर्माण का महत्व एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण' विषय पर आयोजित जागरुकता कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कही। पाटीदार ने कहा कि माटी तकनीक में काम करने का विज्ञान पीछे छूट गया है। पारंपरिक कारीगर अपना प्रोडक्शन बदल नहीं पाए हैं लेकिन अच्छे वैज्ञानिकों और कारीगरों की मदद से इसमें परिवर्तन किया जा सकता है।

मिट्टी मनुष्य को अपनी जमीन से जोड़ती है
परिषद के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने कहा कि मिट्टी मनुष्य को अपनी जमीन से जोड़ती है। मिट्टी से बनी चीजों को अपनाकर पारिस्थिकी तंत्र को बहाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मूर्ति निर्माण का ज्ञान विशिष्ट है। मूर्ति बनाने में कला और विज्ञान दोनों की भूमिका है। उन्होंने कहा कि हमारे जीवन में विज्ञान के साथ अध्यात्म भी जरूरी है। मिट्टी से गणेश मूर्ति बनाने पर केंद्रित यह कार्यशाला हमें विज्ञान और अध्यात्म दोनों स्तरों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। इस अवसर पर कार्यकारी निदेशक तस्नीम हबीब ने कहा कि मिट्टी से हमारा अंतरंग रिश्ता जुड़ा हुआ है। हमारा दायित्व है कि हम प्लास्टिक को छोड़कर मिट्टी से बनी चीजों को अपनाएं और अपने पर्यावरण की हिफाजत करें। केंद्र के प्रमुख हरि नटराजन ने जागरुकता कार्यक्रम के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए कहा कि गणेशजी की इको फ्रेंडली मूर्ति के सृजन को बढ़ावा देकर पर्यावरण को बचाया जा सकता है। माटी कला विशेषज्ञ ने प्रतिभागियों को मिट्टी से ग्रीन गणेशजी बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ ही वैज्ञानिक जानकारियों से परिचित कराया। मिट्टी से बनी प्रतिमा के फायदे बताए।