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प्रतिबंधित क्षेत्र में टकरा रहे थे जाम, जब बाघ आया सामने तो…

कलियासोत के प्रतिबंधित क्षेत्र में में बैरियर लगाने के बावजूद लोगों पर नहीं पड़ रहा कोई असर..

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Amitabh Gunjan

Oct 13, 2015

tiger, kaliyasot dam, sanskar valley school

tiger, kaliyasot dam, sanskar valley school

(प्रतीकात्मक फोटो)
भोपाल। गुरुवार रात 11.30 बजे। स्थान 13 शटर से संस्कार वैली स्कूल के गेट के बीच सड़क पर फर्राटा भरती लग्जरी कार। कार में बजता म्यूजिक सिस्टम और कार में टकराते जाम से जाम। आपस में हंसी-ठिठोली करते चार युवक, लेकिन अगले ही पल जो घटा उसे देखकर उनके चेहरे सफेद पड़ गए, क्योंकि सामने था बाघ। कार और बाघ के बीच चंद मीटर का फासला ही बचा था, कार चला रहे युवक को कुछ नहीं सूझा और उसने स्टेयरिंग घुमा दी, कार झटके से सड़क किनारे गहरे गढ्डे में जा घुसी। यदि चंद सेकंड की देरी हो जाती तो कार सीधे बाघ पर ही चढ़ जाती।

बाघ की सुरक्षा में हुई इतनी बड़ी चूक के मामले को वन विभाग के जिम्मेदारों ने दबा दिया, लेकिन सड़क के किनारे मौजूद दुर्घटना के साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शियों ने मामले की पोल खोल दी।

बिल्कुल नई थी कार
शुक्रवार तड़के ही कार चला रहे युवक के पिता बीमा कम्पनी के अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंच गए, मौके पर कार की स्थिति दिखवाने के साथ आनन-फानन में कार को उठवा लिया । माता मंदिर क्षेत्र के निवासी अधिकारी की मारुति कंपनी की कार मात्र तीन महीने पुरानी थी, जिसे उसका बेटा दोस्तों के साथ घूमने जाने के लिए लेकर निकला था। पिता ने भी कई स्थानीय लोगों और वन विभाग के कर्मचारियों के सामने बाघ सामने से एक्सीडेंट होने की बात को स्वीकारा। लेकिन सारे मामले की जानकारी होने के बावजूद वन विभाग के अधिकारियों ने न तो मामले को रिकॉर्ड में लिया न ही कार लेने आए पिता या युवकों से कोई पूछताछ ही की।


कलियासोत के जंगलों को बाघ टी वन ने अपनी टेरेटरी बना लिया है। लगभग हर रोज उसकी झलक नदी के किनारे और सड़कों पर देखी जा रही है। बाघ की सुरक्षा के लिए इस क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों की ओर जाने वाली सड़कों पर बकायदा बैरियर बनाए गए हैं, दर्जनों कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है ताकि किसी विद्यार्थी को नुकसान न पहुंचे। लेकिन हकीकत में स्थिति उलट है। बाघ की सुरक्षा के मूल काम में विभाग फिसड्डी साबित हो रहा है। शाम ढलने के बाद इस क्षेत्र से वाहनों की आवाजाही बंद करने का दावा किया जाता है, लेकिन न केवल चारपहिया वाहन इस क्षेत्र से धड़धड़ाते हुए निकल रहे है। युवा खतरे की परवाह न करते हुए सुनसान इलाकों में लगातार पार्टीयां कर रहे हैं। इन सबके बीच यदि कोई अनहोनी होती है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

बाघ की सुरक्षा में भारी चूक रात में दौड़ते हैं वाहन
वन विभाग ने यहां गश्त और सुरक्षा बढ़ा दी है। दो प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के पास ही बाघ का मूवमेंट ज्यादा है। विभाग का दावा है कि शाम चार-पांच बजे से बाघ का मूवमेंट शुरू होता है इससे पहले ही शैक्षणिक संस्थान बंद हो जाते हैं और शाम ढलते तक यह इलाका सुनसान हो जाता है। दावा यह किया जाता है कि शाम ढलने के बाद मदर बुल फार्म और तेरह शटर इलाके पर कर्मचारी लगाकर वाहनों की आवाजाही बंद कर दी जाती है। लेकिन सच्चाई इससे उलट है, जमीनी स्थिति यह है कि बाघ देखने की चाहत और सुनसान सड़क से गुजरने के रोमांच की चाह में पहले से युवक यहां पहुंच रहे हैं।

कुछ कर्मचारियों की नसीहत पर रुक जाते हैं जबकि कुछ अपने रसूख और आम सड़क से गुजरने के अधिकारों की दुहाई देकर सड़क पर निकल जाते हैं, एेसे युवा न केवल पूरे इलाके में निकलते हुए जंगली जानवर देखने की आस में गुजरते हैं बल्कि सुनसान इलाके में शराबनोशी करने से भी नहीं चूकते। एेसे ही कुछ युवाओं की हरकत के चलते बाघ की जान खतरे में पड़ गई थी। इस घटना में बाघ घायल भी हो सकता था या फिर युवकों के साथ भी कोई घटना घट सकती थी।

(सड़कों पर खुले ढाबे और होटल)


बिगड़ रही है स्थिति
कलियासोत क्षेत्र में जागरण इंस्टीट्यूट और संस्कार वैली की ओर जाने वाली रोड पर वाहनों का आवागमन रोका जाता है, मुख्य रोड पर वाहनों को नहीं रोकते, रात को कई लोग वहां से गुजरते हैं, गुरुवार रात कुछ लड़कों की कार का एक्सीडेंट हुआ था, वो नशे में थे इससे ज्यादा जानकारी मुझे नहीं है, मैंने दिन में पहुंचकर वो जगह देखी थी।
सुभाष शर्मा, डिप्टी रेंजर, समरधा

कब्जों से बिगड़ रही स्थिति
एक ओर वन विभाग क्षेत्र में सतर्कता बढ़ाने की बात कहता है लेकिन असलियत यह है कि बाघ मूवमेंट के बाद इस पूरी सड़क के किनारे आधा दर्जन से अधिक टपरे बनकर छोटी होटल खुल गई हैं, वन विभाग के कर्मचारियों से लेकर घूमने आने वाले युवाओं को चाय-पान से लेकर पार्टी के लिए खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने का काम यहां से हो रहा है। यह सभी व्यवसायिक गतिविधियां वन विभाग की जमीन पर हो रही हैं। आरोप है कि यह कब्जे वन विभाग के अधिकारियों की शह पर हुए हैं जिससे मानवीय गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं।