6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

शब्द-शब्द अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूलमंत्र

हिंदी भवन में लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आचार्य ओम नीरव के सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह स्वरा के विमर्श व सम्मान समारोह

less than 1 minute read
Google source verification
शब्द-शब्द अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूलमंत्र

शब्द-शब्द अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूलमंत्र

भोपाल. जहां व्यथा है, वहां कथा है, शब्द-शब्द रचना और अपव्यय से बचना ही लघुकथा सृजन का मूल मंत्र है, जिससे ये पूर्ण होता है।
लेखक विस्थापितों, शरणार्थियों की व्यथा से जुड़े यह उद्गार थे वरिष्ठ साहित्यकार व पूर्व निदेशक साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. देवेंद्र दीपक के। वह हिंदी भवन में लघुकथा शोध केंद्र द्वारा आचार्य ओम नीरव के सद्य प्रकाशित लघुकथा संग्रह स्वरा के विमर्श व सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कांति शुक्ला उर्मि ने पद्य-काव्य के बाद लघुकथा के क्षेत्र में नीरव के आगमन को सुखद अनुभव बताया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार मुकेश वर्मा ने कहा कि लघुकथा, कथा परिवार की छोटी सदस्य भले हो परंतु प्रभाव में किसी बड़ी कथा या उपन्यास से कम नहीं।

संस्कृति को साथ लेकर चलता है साहित्य
लघु कथाकार और कृति के लेखक ओम नीरव ने कहा कि जो बात हम छंद विधा के माध्यम से नहीं कह पाते, उसे हम पूरे प्रभाव और प्रखरता के साथ एक छोटी सी लघुकथा के माध्यम से कह सकते हैं। इस मौके पर ओम नीरव को साहित्य साधना सम्मान से विभूषित किया गया। साहित्यकार गोकुल सोनी ने कहा कि साहित्य संस्कृति को साथ लेकर चलता है। जीवन मूल्यों का स्पंदन साहित्य का प्राण होता है। ओम नीरव की लघुकथाओं में सत्य और कल्पना का अद्भुत सम्मिश्रण है। उनमें गहरे अन्वेषण का मनोविज्ञान भी परिलक्षित होता है, अत: वे समाजोपयोगी हैं। वरिष्ठ साहित्यकार युगेश शर्मा ने कहा कि संग्रह की लघुकथाओं में आज की समाज व्यवस्था को गहराई से रखा गया है और लेखक ने भविष्य के समाज की रचना के लिए दिशाएं बताई हैं।