भारत के हृदय अंचल मालवा ने तो एक तरह से समूची भारतीय संस्कृति को गागर में सागर की तरह समाया है। मालवा लोक-साहित्य की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहां का लोकमानस शताब्दी-दर-शताब्दी कथा-वार्ता, गाथा, गीत, नाट्य, पहेली, आदि के माध्यम से अभिव्यक्ति पाता आ रहा है। भारतीय लोक-नाट्य परंपरा में मालवा के माच का विशिष्ट स्थान है, जो अपनी सुदीर्घ परम्परा के साथ आज भी लोक मानस का प्रभावी मंच बना हुआ हैं। मालवा के लोकगीतों, लोक-कथाओं, लोक-नृत्य रूपों और लोक-संगीत के समावेश से समृद्ध माच सम्पूर्ण नाट्य (टोटल थियेटर) की सम्भावनाओं को मूर्त करता है।