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सीएम ने 29 दिसम्बर तय की 3 लाख 60 हजार वन अधिकार पत्रों के निराकरण की डेड लाइन

locationभोपालPublished: Dec 16, 2019 08:05:31 am

Submitted by:

Ashok gautam

लापरवाही करने वाले सचिवों और कर्मचारियों पर होगी कार्रवाई

सीएम ने 29 दिसम्बर तय की 3 लाख 60 हजार वन अधिकार पत्रों के निराकरण की डेड लाइन

सीएम ने 29 दिसम्बर तय की 3 लाख 60 हजार वन अधिकार पत्रों के निराकरण की डेड लाइन

भोपाल। सरकार ने 3 लाख 60 हजार वन अधिकार पत्रों के सत्यापन और उनके निराकण करने की डेड लाइन 26 दिसम्बर तय की है। इस तारीख तक प्रदेश के 22 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों को वन अधिकार पत्रों से जुड़ी जानकारी सरकार को ऑन लाइन भेजनी है। ब्लाक और जिला स्तर की समितियां इन दस्तावेजों को परीक्षण कर अपनी सिफारिश भी सरकार को ऑन लाइन भेजेंगी, जिसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा।

वन अधिकार पत्रों के सत्यापन की डेढ लाइन पिछले एक साल में कई बार बढ़ाई जा चुकी है, लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इसकी आखिरी तारीख 26 दिसम्बर तय की है। तय समय पर जानकारी नहीं देने और वन मित्र एम पर जानकारी अपलोड नहीं करने वाले मैदानी अधिकारियों और सचिवों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सरकार ने आदिम जाति कल्याण विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे प्रदेश के सभी पंचायतों में वन अधिकार पत्र के लिए विशेष अभियान चलाएं। बताया जाता है कि अब तक ३ लाख 60 हजार आवेदनों में से सिर्फ १ लाख 20 हजार आवेदन ही वन अधिकार मित्र एप पर अपलोड किए गए हैं।२ लाख 58 हजार आवेदनों को अपलोड करने के लिए सचिवों को दस दिन का समय दिया गया है।

 


गांव-गांव मोबाइल वैन

आदिवासियों का प्रमाण पत्रों को ऑन लाइन अपलोड करने के लिए एमपी ऑन लाइन के कियोस्क की मोबाइल वैन गांव-गांव जाएंगी। यह मोबाइल गांव में पूरे दिन रहेगी और विभाग के कर्मचारी प्रत्येक पट्टेधारी से कर उनके दस्तावेज अपलोड करने में मदद करेंगे। इसके अलावा कियोस्क सेंटरों को भी आदिवासियों के दस्तावेज अपलोड करने के लिए गांव तक अपना नेटवर्क बढ़ाने करने के लिए कहा है।

साक्ष्य के अभाव में निरस्त

हजारों आदिवासियों के आवेदन इसलिए निरस्त कर दिए हैं क्योंकि उन्होंने अपने उक्त वन क्षेत्र में रहने के संबंध में कोई सबूत समितियों के सामने पेश नहीं कर पाए हैं। उन्हें एक बार फिर से 13 दिसम्बर 2005 के पहले से वहां रहने के संबंध में सबूत देने के लिए कहा है। इस तरह के मौके आदिवासियों को वन अधिकार समितियों द्वारा कई बार दिए जा चुके हैं।

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