
क्या है चुनाव आचार संहिता, किन किन कामों पर लग जाती हैं पाबांदियां ?
भोपाल. मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए तारीखों का एलान हो गया है। 28 नवबंर को प्रदेश में वोटिंग होगी जबकि परिणाम 11 दिसबंर को घोषित होंगे। चुनावों की घोषणा के साथ ही राज्य में आचार संहिता लागू हो गई है। चुनाव आचार संहिता का मतलब क्या है? इस दौरान क्या हो सकता है क्या नहीं। हम आपको बता रहे हैं कि आखिर चुनावी आचार संहिता होती क्या है।
क्या है आचार संहिता: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र के आधार हैं। इसमें मतदाताओं के बीच अपनी नीतियों तथा कार्यक्रमों को रखने के लिए सभी उम्मीदवारों तथा सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर और बराबरी का स्तर प्रदान किया जाता है। इस संदर्भ में आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का उद्देश्य सभी राजनीतिक दलों के लिए बराबरी का समान स्तर उपलब्ध कराना प्रचार, अभियान को निष्पक्ष तथा स्वस्थ्य रखना, दलों के बीच झगड़ों तथा विवादों को टालना है। इसका उद्देश्य केन्द्र या राज्यों की सत्ताधारी पार्टी आम चुनाव में अनुचित लाभ लेने से सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग रोकना है। आदर्श आचार संहिता लोकतंत्र के लिए भारतीय निर्वाचन प्रणाली का प्रमुख योगदान है।
कुछ हिस्सों में आदर्श आचार संहिता को वैधानिक दर्जा देने की बात की जाती है। लेकिन निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता को ऐसा दर्जा देने के पक्ष में नहीं है। निर्वाचन आयोग के अनुसार कानून की पुस्तक में आदर्श आचार संहिता को लाना केवल अनुत्पादक (प्रतिकूल) होगा। हमारे देश में निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सीमित अवधि में चुनाव कराये जाते हैं। सामान्यतः किसी राज्य में आम चुनाव निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने की तिथि से लगभग 45 दिनों में कराया जाता है। इस तरह आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन संबंधी मामलों को तेजी से निपटाने का महत्व है। यदि आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकने तथा उल्लंघनकर्ता के विरुद्ध चुनाव प्रक्रिया के दौरान सही समय से कार्रवाई नहीं की जाती तो आदर्श आचार संहिता का पूरा महत्व समाप्त हो जाएगा तथा उल्लंघनकर्ता उल्लंघनों से लाभ उठा सकेगा।
आचार संहिता के बाद क्या होगा: जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होते हैं वहां चुनावों की तिथियों की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो जाती है। इसके लगने के बाद राज्य सरकार और प्रशासन पर कई तरह के अंकुश लग जाते हैं। राज्य के सभी सरकारी कर्मचारी चुनाव आयोग के अधीन हो जाते हैं। कोई भी राजनैतिक दल वोट पाने के लिए मतदाता से जाति औऱ धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकता है, वहीं, वह किसी भी धर्म के धार्मिक स्थल में चुनाव प्रचार जा कर चुनाव के लिए कैंपेन नहीं कर सकता है। जनता या मतदाता को किसी भी प्रकार का लालच देकर, धमकी देकर या उस पर किसी भी तरह का कोई दबाव बनाकर वोट नहीं मांगा जा सकता है।
जुलूस के लिए भी नियम: अचार संहिता लगने के बाद से राजनीतिक पार्टियां और उनके उम्मीदवार प्रचार के लिए रैली और जुलूस निकालते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें आयोग और प्रशासन से अनुमति लेनी होती है। पुलिस अगर इसकी अनुमति नहीं देती है तो कोई भी दल जुलूस नही निकाल सकता है।
सत्ताधारी दल के लिए भी नियम: सत्ताधारी दल इस काम में शासकीय मशीनरी तथा कर्मचारियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। सरकारी विमान और गाड़ियों का प्रयोग अपने राजनीतिक दल के फायदे के लिए नहीं किया जा सकता है। किसी भी हैलीपेड पर एकाधिकार नहीं जता सकती है सरकार। सरकारी धन पर विज्ञापनों के जरिये अपने कार्यकाल की उपलब्धियां नहीं प्रचारित कर सकते हैं। कैबिनेट की बैठक नहीं करेंगे। किसी भी तरह की स्थानांतरण तथा पदस्थापना के प्रकरण आयोग का पूर्व अनुमोदन जरूरी। चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा नजर मौजूदा सरकार पर होती है। सरकारी बंगले का इस्तेमाल चुनाव मुहिम के दौरान नहीं किया जा सकता। प्रदेश में किसी नई योजना की घोषणा नहीं हो सकती। कुछ मामलों में चुनाव आयोग से अनुमति लेने के बाद घोषणा की जा सकती है। मुख्यमंत्री या राज्य सरार को कोई भी मंत्री शिलान्यास, लोकार्पण या भूमिपूजन नहीं कर सकता है।
Updated on:
07 Oct 2018 11:10 am
Published on:
07 Oct 2018 10:30 am
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