
सूबे के सात शहरों में नन्हें-मुन्नों को हुनरमंद बनाने वाले बाल भवन बड़ों की लापरवाही का शिकार,सूबे के सात शहरों में नन्हें-मुन्नों को हुनरमंद बनाने वाले बाल भवन बड़ों की लापरवाही का शिकार
श्याम सिंह तोमर
भोपाल. नौनिहालों का भविष्य गढऩे के लिए मध्य प्रदेश के संभागीय मुख्यालय वाले सात शहरों में खोले गए 'बहुआयामी कला केंद्रÓ सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। बाल भवन नाम से मशहूर इन केंद्रों में बच्चों के शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए रखे गायन-वादन यंत्र और खेल-कूद उपकरण खराब हो रहे हैं, जिनके मेंटेनेंस पर जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है। अधिकतर केंद्रों में बच्चों की संख्या के हिसाब से नई तकनीक, नए वाद्य यंत्रों और खेल सामग्री की जरूरत है, जिनकी खरीदी और अपडेशन की प्रक्रिया सालों से टाली जा रही है। कई केंद्र स्थापना के 15 साल बाद भी किराए के भवनों में कामचलारू व्यवस्था के साथ चलाए जा रहे हैं। इनके पास बच्चों के प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त क्लासरूम और मैदान तक नहीं हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के अधीन चलने वाले इन 'आधुनिक गुरुकुलोंÓं की सुध लेने की फुर्सत भोपाल में बैठे आला अफसरों को नहीं है। यहां से प्रशिक्षण लेकर जा चुके पूर्व व वर्तमान छात्रों और अभिभावकों का आरोप है कि बड़ों की लापरवाही का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। राजधानी में खुद संयुक्त संचालक डॉ. उमाशंकर नगायच जवाहर बाल भवन परिसर में बैठते हैं। इसके बाद भी वहां के हालात बदतर हो चले हैं, लेकिन सुधार पर ध्यान नहीं देते।
सुनहरे इतिहास वाले बहुआयामी केंद्रों का भविष्य अब हो रहा अंधकारमय
भोपाल में 03 जुलाई 1987 को राज्य के पहले केंद्र का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल बोरा ने किया था। इसे जवाहर बाल भवन नाम दिया गया। इसके बाद अन्य शहरों में केंद्र खोले गए। दरअसल, बाल भवन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की विशिष्ट व विविध आवश्यकताओं की पूर्ति पर ध्यान देते हैं। वैयक्तिक विकास के साथ सामूहिक गान-नृत्य, पेंटिंग, नेतृत्व कौशल, विचार-विमर्श, सृजनात्मक लेखन जैसी गतिविधियों में उन्हें पारंगत बनाते हंै। सृजनात्मक आयोजनों, विज्ञान मेलों व एकीकरण शिविरों में विभिन्न वर्ग के बच्चों में सामाजिक सहभागिता की भावना का विकास होता है। इसमें समन्वित अध्ययन-अध्यापन और नवोन्मेषी अध्यापन नीतियों के तहत अध्यापकों, प्रशिक्षु अध्यापकों को प्रशिक्षण भी शामिल है।
मुख्यालय में उपेक्षा हावी तो जिलों में किराये के भवनों की व्यवस्था भी लचर
इन राज्य स्तरीय बाल भवनों की हालत दिनोंदिन खराब हो रही है। भोपाल में तुलसी नगर स्थित मुख्यालय हो या फिर थाटीपुर ग्वालियर, मकरोनिया सागर, महल में संचालित रीवा का केंद्र या फिर उज्जैन, इंदौर और जबलपुर के केंद्र सभी जगह हालात जुदा नहीं हैं। इनमें गुरु-शिष्य परंपरा के तहत बच्चों को आठ विधाओं चित्रकला, संगीत, गायन, नृत्य, रंगकर्म, कम्प्यूटर, होम साइंस और खेल-कूद में प्रशिक्षण दिया जाता है। इनमें रुचि के आधार पर पांच से 16 वर्ष तक की उम्र के बच्चों का चयन किया जाता है। हर विधा में असीमित सीटें हैं।
बाल भवनों की दुर्दशा की कहानी... जिससे नौनिहालों के शिक्षण-प्रशिक्षण पर पड़ रहा असर
कहने को मुख्यालय लेकिन बिल्डिंग का मेंटनेंस नहीं, पूरा परिसर और खेल मैदान झाडिय़ों से पटा
1. जवाहर बाल भवन, तुलसी नगर, भोपाल
कब से संचालित- 03 जुलाई 1987
खुद का भवन या किराए का- पांच एकड़ का परिसर और अपना भवन
छात्र संख्या- करीब 1100 बालक-बालिकाएं
शिक्षक-प्रशिक्षक संख्या- चार अनुदेशक नियमित हैं। संविदा आधार पर पांच कला शिक्षक कार्यरत हैं। संगतकार के पद पर एक भी नहीं हैं।
मौके से पत्रिका की पड़ताल- तुलसी नगर स्थित पांच एकड़ में फैला जवाहर बाल भवन मुख्यालय परिसर आदमकद झाडिय़ों और गंदगी से पटा हुआ है। गार्डन में मूर्तियां, ओपन जिम उपकरण, झूले, सीसॉ झूले, फिसलपट्टी और खिलौने टूटे पड़े हैं। मरम्मत और रंगाई-पुताई के अभाव में बिल्डिंग की हालत खराब है। भवन के पीछे बदहाल एक खेल मैदान भी दिखाई दिया। बीते एक साल से परिसर में सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। उसके पहले चार गार्ड रखे थे, लेकिन ठेका निरस्त कर दिया गया। परिसर में निगरानी के लिए लगे छह कैमरे भी खराब पड़े हैं। ऐसे में परिसर पूरी तरह से असुरक्षित है। देर शाम से लोग शराबखोरी और चोरी की नीयत से घुसपैठ करने लगते हैं। पत्रिका टीम को पड़ताल कर देख अफसरों ने 13 जनवरी से दो गार्ड दिन और रात की ड्यूटी के लिए रख दिए हैं। माली नहीं है, लिहाजा गार्डन में मानसून के समय की झाडिय़ां और खरपतवार पसरी हुई हंै। ऐसे में सांप-बिच्छू और कीट-पतंगे खूब हैं। इन्हीं हालात में बच्चे विविध विधाओं में अभ्यास करते हैं और खेल-कूद की गतिविधियों में शामिल होते हैं। स्टाफ ने बताया कि बिल्डिंग में कई जगह छत से प्लास्टर उखड़ कर बच्चों और स्टाफ पर गिरता रहता है। फर्श में लगा कोटा स्टोन भी कहीं धंस गया है तो कहीं टूट-फूट रहा है।
पेयजल फिल्टर खराब, सफाई के इंतजाम भी नहीं
जवाहर बाल भवन में प्रशिक्षण के लिए 15 सौ से दो हजार बच्चे आते हैं, जिनके लिए लगाई पेयजल फिल्टर मशीन खराब पड़ी है। क्लासरूम, कॉरिडोर और परिसर की सफाई भी बड़ा मुद्दा है। ठेके पर चार कर्मचारी रखे गए थे, जिन्हें हटा दिया गया। अब दो मंजिला भवन की सफाई व्यवस्था एक महिलाकर्मी के जिम्मे है। वॉशरूम की सफाई नियमित नहीं होती, जिससे अनहाइजीनिक स्थितियों में ही बच्चों को इनका इस्तेमाल करना होता है। मालूम हो कि प्रदेश का मुख्यालय का कार्यालय जवाहर बाल भवन परिसर में ही है, जहां संयुक्त संचालक, सहायक संचालक, एक दफ्तरी बाबू और तीन चपरासी कार्यरत हैं। यहां के एक क्लर्क की मृत्यु हो चुकी है।
8 लाख रुपए से बना बाल संग्रहालय चार साल से बंद
केंद्रीय बाल भवन नई दिल्ली से जवाहर बाल भवन में बाल संग्रहालय के लिए 8 लाख रुपए अनुदान मिला था। कई साल तक उक्त राशि उपयोग में नहीं ली गई। इसके बाद वर्ष 2008 में भवन के एक हिस्से में बच्चों के लिए बाल संग्रहालय का काम शुरू हुआ। इसमें पुराने कैमरे, प्राचीन और विलुप्त हो चुके वाद्य यंत्र, कलाकारों के चित्र, एयरो मॉडल, जनजातीय पेंटिंग आदि सजाए गए, ताकि बच्चों को अपनी जड़ों का ज्ञान मिले। चार साल पहले अचानक एक दिन संग्रहालय बंद करवा दिया गया। फिर उसमें धीरे-धीरे कबाड़ा भर दिया गया।
नारी उद्धार गृह की पुरानी बिल्डिंग में बाल भवन, आठ में से चार विधा के लिए चार प्रशिक्षक
2. बाल भवन, ओल्ड पलासिया, इंदौर
कब से संचालित- वर्ष 2007-2008
खुद का भवन या किराए का- पुराने सरकारी भवन में संचालित
छात्र संख्या- 250 बच्चे पंजीकृत हैं, बाकी सालभर होने वाले शिविरों में आते हैं।
शिक्षक-प्रशिक्षक संख्या- 04 अनुदेशक तो तबला विधा में 01 संगतकार हैं, सभी संविदा आधार पर।
मौके से पत्रिका की पड़ताल- प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में ओल्ड पलासिया क्षेत्र के अंतर्गत महिला एवं बाल विकास विभाग के नारी उद्धार गृह की पुरानी बिल्डिंग में बाल भवन चल रहा है। यहां पर करीब एक एकड़ का परिसर है। बच्चों को आठ में से चार विधाओं नृत्य, गायन, कम्प्यूटर और चित्रकला में प्रशिक्षण दिया जाता है। बाल भवन का प्रभार सहायक संचालक शुभांगी मजूमदार देख रही हैं, जबकि महिला एवं बाल विकास विभाग का संभागीय मुख्यालय होने से संयुक्त संचालक डॉ. संध्या व्यास भी बैठती हैं। पत्रिका टीम ने पड़ताल में पाया कि पुराने भवन को मेंटेनेंस की दरकार है। यहां आने वाले 250 बच्चों और उनके अभिभावकों में से कई ने बताया कि यहां के अधिकारी बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति तो कर लेते हैं। लेकिन, अनुदेशकों की कमी के कारण आठ में से जितनी विधाओं और जिस स्तर का प्रशिक्षण होना चाहिए, वह नहीं हो पाता।
बच्चों को विधाओं में प्रशिक्षण देने वाले 15 साल से संविदा पर
पड़ताल में भी पाया कि बाल भवन में 15 साल से संविदा पर पांच प्रशिक्षक हैं, जिनमें से 04 अनुदेशक तो 01 तबला संगतकार हैं। अनुदेशकों को 9 हजार 961 रुपए तो संगतकार को 6 हजार 98 रुपए मासिक वेतन मिलता है। इनका कहना है कि मानदेय की यह राशि कलेक्टर दर से भी कम है। वहीं कला शिक्षकों की कमी भी है, जिसे दूर करने के लिए शिविर लगाकर काम चलाया जाता है। मानदेय पर विशेषज्ञों को बुलाकर बच्चों को प्रशिक्षण दिलाया जाता है। सुरक्षा के लिए संयुक्त संचालक कार्यालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के जिम्मे ही व्यवस्था है। परिसर में ही वह सपरिवार रहते हैं।
बाल भवन की पूर्व छात्रा बोलीं...
इस कदर अनदेखी देखकर दु:ख होता है
वर्ष 2015 में जब 10वीं का छात्रा थी, उस समय बाल भवन में नाटक और लेखन की बारीकियां सीखने जाती थी। हमारे स्कूल में भी ये गतिविधियां होती थीं, लेकिन माहौल बाल भवन में ही मिला। यहां सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के बच्चे एक छत के नीचे गुरु-शिष्य परंपरा में प्रशिक्षण लेते। ये देखकर दु:ख होता है कि इतना अच्छा मंच अनदेखी शिकार हो रहा है। भोपाल में खण्डर जैसे हालात हैं। गुरुओं को संविदा पर जीवनयापन करना पड़ रहा है। सरकार से आग्रह है कि बच्चों के हित में प्रदेश के सभी सातों बाल भवनों की सुध लेकर उनकी व्यवस्थाएं ठीक करें। पांच साल पहले बच्चों को कला की जिन गतिविधियों को प्रशिक्षण मिलता था, अब उनमें भी अपडेशन हो चुका है। उनकी जरूरत डिजिटल आर्ट, कोडिंग जैसी मोबाइल आधारित तकनीक का प्रशिक्षण है, उसे भी शुरू किया जाए।
- निमिषा पाठक, पुणे में कॉर्पोरेट कंपनी में एनालिस्ट और बाल भवन में इन्होंने लिया है प्रशिक्षण
अभिभावक की चिंता....
सरकार थोड़ा ध्यान देगी तो तस्वीर बदल जाएगी
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के अनुसार 8वीं कक्षा तक के बच्चों को ऐसा माहौल देना है, जिससे उनमें कलात्मकता, कौशल और नेतृत्व का गुण विकसित हो। अभी सरकारी स्कूलों में विशेषज्ञ शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे दौर में मूलभूत सुविधाएं रखने वाले बाल भवन जैसे संस्थान भूमिका निभा सकते हैं। ये निम्न और मध्य आय वर्ग के बच्चों के बहुआयामी उन्नयन के साथ उन्हें ऐसे नागरिक के तौर पर विकसति कर सकते हैं जो वंचित तबके में गुणात्मक परिवर्तन लाएं। यहां पहले ही शिक्षक कम हैं, जिन्हें 15 साल पहले संविदा पर रखा है, उनके वेतन-भत्ते कलेक्टर दर से भी कम हैं। सरकार को इन्हें आदर्श केंद्रों के रूप में विकसित करना चाहिए। सरकार बाल भवनों में कुशल मानव संसाधन और साजो-सामान पर ध्यान देगी तो तस्वीर बदल जाएगी।
- डॉ. विक्रम चौधरी, अभिभावक जिनके बच्चे बाल भवन प्रशिक्षण ले रहे हैं
कला शिक्षक की पीड़ा...
इतनी लचर व्यवस्थाएं कभी नहीं रहीं, जितनी आज हैं
प्रदेश के बाल भवनों की व्यवस्था इतनी लचर कभी नहीं रही, जितनी आज है। भोपाल का केंद्र या क्या बाकी छह शहर हर जगह बच्चों का भविष्य गढऩे वाले कला गुरु और संगतकार बरसों से संविदा व्यवस्था से जूझ रहे हैं। संयुक्त संचालक ने जवाहर बाल भवन में मुझ समेत चार संविदा अनुदेशकों को नोटिस थमाया है कि मार्च 2023 से आपकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी। ये अन्याय है, अधिकारी ऐसा कैसे कर सकते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर हम कहां जाएंगे, जबकि सभी कलाकार अपने-अपने क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखते हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों से पहले बात करेंगे, उसके बाद इसके खिलाफ कोर्ट में गुहार लगाएंगे।
- विजय सप्रे, ग्वालियर घराने के ख्याल गायक और जवाहर बाल भवन में संगीत विधा के अनुदेशक
जितनी भी समस्याएं हैं, उनको ठीक करेंगे
बाल भवन का कामकाज देख रहे महिला एवं बाल विभाग के संयुक्त संचालक डॉ. उमाशंकर नगायच से सीधी बात
सवाल-1 भोपाल समेत संभागीय मुख्यालयों पर संचालित सात बाल भवन में बच्चों की शिक्षण-प्रशिक्षण गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं, आप बीते पांच साल से बतौर प्रभारी सभी की व्यवस्था देख रहे हैं, ऐसे हालत क्यों हैं?
जवाब- दरअसल, संभागीय मुख्यालय में नियुक्त संयुक्त संचालकों के जिम्मे वहां के बाल भवनों का प्रशासनिक नियंत्रण होता है। मेरा काम तो केवल उनकी मांग अनुसार सालभर चलने वाली गतिविधियों के लिए बजट उपलब्ध करवाने के लिए चि_ी-पत्री तक सीमित है।
सवाल-2 बाल भवनों में पंजीकृत बच्चों की संख्या के हिसाब से संसाधनों की भारी कमी है, नए खरीदे नहीं जा रहे। वाद्य यंत्रों और खेल सामग्री की साज-संभाल भी बड़ा इश्यू है, सुधार के लिए क्या प्रयास किए?
जवाब - स्कूलों में ग्रीष्मावकाश होने पर बाल भवनों में बच्चों की संख्या बढ़ जाती है। उस समय ज्यादा गतिविधियां होती हैं, अत: तब तक सब ठीक हो जाएगा, इसके लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। वैसे भी विधाओं के लिए नियुक्त अनुदेशक स्वतंत्र रूप से कक्षाएं चलाते हैं।
सवाल-3 बाल भवनों में गतिविधियां तो सालभर करवानी हैं, बच्चे भी नियमित आते हैं। भोपाल-इंदौर के अलावा सभी जगह किराए के भवनों में सीमित संसाधनों के बीच केंद्रों को चलाने का नतीजा है कि सभी विधाओं में बच्चों को प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। वहां सुरक्षा के लिए गार्ड और कैमरे भी नहीं हैं, तो साफ पेयजल संकट है। कहीं भी मैदान नहीं है, जिससे खेल गतिविधियां नहीं हो पातीं?
सवाल- ये सच है कि बाल भवन में सालभर बच्चों के शिक्षण-प्रशिक्षण की गतिविधियां होनी चाहिए। मैं तो केवल ये कह रहा था कि गर्मी की छुट्टी में बच्चों की संख्या बढ़ जाती है। वैसे समय-समय पर संचालनालय के स्तर से बाल भवनों के संयुक्त संचालकों को आदेश-निर्देश भेजे जाते हैं। वहां की जितनी भी समस्याएं हैं, उनको ठीक करेंगे।
सवाल-4 हर बाल भवन को वेतन-भत्तों के अलावा अलग से सालभर की गतिविधियों और व्यवस्थाओं के लिए बजट दिया जाता है, उस राशि का उपयोग साफ-सफाई जैसे बेसिक हाइजीन के लिए नहीं होता क्या?
जवाब- औसतन, हर बाल भवन को करीब 30 से 50 हजार रुपए तक बेसिक हाइजीन के लिए बजट दिया जाता है। इस राशि का उपयोग दैनिक जगरूरतों और बेसिक हाइजीन के लिए ही होता है।
सवाल-5 राजधानी के बाल भवन में लाखों रुपए की लागत से बना बाल संग्रहालय बंद कर दिया गया, उसमें टूटा-फूटा फर्नीचर और कबाड़ भरा जा रहा है?
जवाब- बाल संग्रहालय मेरे आने के पहले बंद कर दिया गया था। वहां अब महिला एवं बाल विकास विभाग आगे रिसोर्स सेंटर बनाने जा रहा है। बजट स्वीकृत हो चुका है, राशि कितनी है, मुझे नहीं जानकारी नहीं है।
सवाल-6 बाल भवनों में 15 साल से संविदा पर तैनात अनुदेशक और संगतकार कलेक्टर दर से भी कम वेतन पा रहे हैं, कई जगह तो संविदा वाले पद भी खाली पड़े हैं, इस कामचलाऊ व्यवस्था से बच्चों का प्रशिक्षण प्रभावित हो रही हैं? इसी बीच भोपाल वालों का आरोप है कि उन्हें हटाने की कवायद की जा रही है, वे इसे अन्याय बात बताते हुए कोर्ट की शरण लेने का कह रहे हैं?
जवाब- भोपाल के संविदाकर्मियों को किसी तरह का नोटिस नहीं दिया है। पूर्व में संचालनालय से हर साल इनकी संविदा अवधि बढ़ाई जाती रही। इस बार आला अधिकारियों ने तय किया है कि अनुदेशक और संगतकारों को संविदा पर रखने के लिए विज्ञापन जारी करके नए सिरे से प्रक्रिया की जाए। इसमें 15 साल से सेवारत को भी शामिल किया जाएगा। किसी को निकालने का सवाल नहीं है, केवल पूर्व में तय की गई व्यवस्था ठीक कर रहे हैं।
Published on:
04 Feb 2023 10:13 pm
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