
सावन माह 2018
भोपाल। सनातन धर्म में त्रिदेवों का खास महत्व है, इनमें जहां ब्रह्मा को सृष्टि का रचियता माना जाता है,वहीं भगवान विष्णु को पालनहार व महादेव शिव को संहारक के रूप में माना जाता है। वहीं इन तीनों देवों में सभी के पहनावे से लेकर वाहन, अस्त्र आदि में अंतर भी देखने को मिलते हैं।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार हर देव का पहनावा उसके द्वारा सृष्टि में किए जा रहे कार्यों के आधार पर है। चुकिें सावन माह का प्रारंभ होने वाला है, ऐसे में भगवान शिव के इस प्रिय मास के चलते आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
आपने भी गौर किया होगा कि एक ओर जहां तकरीबन हर देव की पूजा के बाद उनकी पूरी परिक्रमा की जाती है। वहीं शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है। एक ओर जहां देवों पर कई प्रकार के मिष्ठान व फूल पत्तियां व रोली चंदन चढ़ाया जाता है।
वहीं शिव के मामले में कई चीजें वर्जित मानी जाती है। इसके अलावा यदि सामान्य रूप से भी देखें तो देवों का खास श्रृंगार होता है। जबकि भोलेनाथ पर भस्म चढ़ाई जाती है। इन बातों को देखकर आपके मन में भी कई सवाल पैदा होते होंगे। तो आपके इन्हीं सवालों के जवाब में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि...
ब्रह्मा को संसार के रचयिता, विष्णु को पालनहर्ता और महेश यानि शिव को संसार के विनाशक के रूप में जाना जाता है। ऐसे में यदि बात करें शिव की, तो विनाशक होने का अर्थ संसार को समाप्त करने से नहीं बल्कि संसार के सृजन से है, यानि धरती पर जब-जब पाप की वृद्धि होती है, भगवान शिव धरती के सभी जीवों का विनाश करके एक बार फिर से नए संसार के सृजन का मार्ग खोल देते हैं।
ध्यान देने की बात है शिव के द्वारा प्रयोग किए जाने वाले हर प्रतीक के पीछे एक रहस्यमय कहानी छुपी हुई है। पंडित शर्मा के अनुसार आपने भी ध्यान दिया होगा कि शिव की पूजा में राख या भस्म का प्रयोग भी किया जाता है। साथ ही शिवभक्त भी राख को अपने माथे पर तिलक के रूप में लगाते हैं, लेकिन क्या आप इसके पीछे के महत्व को जानते हैं।
भस्म के संबंध में ये हैं कथा..
पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि शिव की पूजा में राख या भस्म का प्रयोग के संबंध में ‘शिवपुराण’ में एक कथा मिलती है।
जिसके अनुसार जब सती ने स्वंय को अग्नि में समर्पित कर दिया था, तो उनकी मृत्यु का संदेश पाकर भगवान शिव क्रोध और शोक में अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। वे अपनी पत्नी के मृत शव को लेकर इधर-उधर घूमने लगे, कभी आकाश में, तो कभी धरती पर। जब श्रीहरि ने शिवजी के इस दुख एवं उत्तेजित व्यवहार को देखा तो उन्होंने शीघ्र से शीघ्र कोई हल निकालने की कोशिश की।अंतत: उन्होंने भगवान शिव की पत्नी के मृत शरीर का स्पर्श कर इस शरीर को भस्म में बदल दिया। हाथों में केवल पत्नी की भस्म को देखकर शिवजी और भी चितिंत हो गए, उन्हें लगा वे अपनी पत्नी को हमेशा के लिए खो चुके हैं।
भस्म को अंतिम निशानी माना
अपनी पत्नी से अलग होने के दुख को शिवजी सहन नहीं पर पा रहे थे, लेकिन उनके हाथ में उस समय भस्म के अलावा और कुछ नहीं था। इसलिए उन्होंने उस भस्म को अपनी पत्नी की अंतिम निशानी मानते हुए अपने तन पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहें। दूसरी ओर एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने साधुओं को संसार और जीवन का वास्तविक अर्थ बताया था जिसके अनुसार राख या भस्म ही इस संसार का अंतिम सत्य है। सभी तरह की मोह-माया और शारीरिक आर्कषण से ऊपर उठकर ही मोक्ष को पाया जा सकता है
- दूसरी ओर एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने साधुओं को संसार और जीवन का वास्तविक अर्थ बताया था जिसके अनुसार राख या भस्म ही इस संसार का अंतिम सत्य है। सभी तरह की मोह-माया और शारीरिक आर्कषण से ऊपर उठकर ही मोक्ष को पाया जा सकता है।
- ये भी है किंदवंति...
ऐसा भी कहा जाता है एक बार भगवान शिव के सामने से एक मुर्दे को लेकर लोग जा रहे थे,भगवान शिव ने देखा कि लोग उस मुर्दे में पीछे पीछे चल रहे है और जो जो से कह रहे है राम नाम सत्य है राम नाम सत्य है,भगवान बोले ये तो मेरे प्रभु का नाम ले रहे है ये आगे कौन सा महान व्यक्ति जा रहा है जिसके पीछे लोग प्रभु का नाम ले रहे है भगवान भी उनके पीछे चलने लगे और कहने लगे राम नाम सत्य है।
जब शमशान में पहुंचे तो भगवान शिव ने देखा कि सब ने राम का नाम लेना बंद कर दिया, और घर गृहस्थी कि बाते करने लगे कोई बोला दूकान खोलना है लेट हो रहा हूँ, कोई बोला इसको भी आज ही मरना था। शिव सोचने लगे इन्होने तो नाम लेना बंद ही कर दिया, फिर थोड़ी देर बार एक-एक करने सब चले गए,शिव जी वही शमशान में खड़े रहे,जब मुर्दा जल गया तो भगवान शिव बोले इसकी वजह से लोग मेरे प्रभु का नाम ले रहे थे ये तो बड़ा महान व्यक्ति है और तुरत भगवान ने उसकी चिता की भस्म लेकर अपने शरीर में मल ली,और तब से भस्म रमाने लगे।
वैज्ञानिक महत्व –भगवान शिव और भस्म ?
भस्म को भगवान शिव का वस्त्र बताया गया है जिसके पीछे वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक कारण होता हैं। भस्म को शरीर पर लगाने से सर्दी में सर्दी और गर्मी में गर्मी नहीं लगती। यह त्वचा संबंधित रोगों का भी निवारण करती हैं। भस्मी धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालना सीखों।
दार्शनिक अर्थ –क्यों धारण करते हैं शिव भस्म ?
निर्वस्त्र शरीर भस्मधारी भस्म हर आकार का आखिरी निरंकार है। मानव हो या पशु सबका अंत भस्म ही है और उसे ही भगवान शिव अपने शरीर पर धारण करते हैं। उन्हीं से सब जन्में है और उन्हीं में ही मिल जाएंगे यही वजह है की शिव भस्म धारण करते हैं। शिव का शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम गर्व करते हैं, जिसकी सुरक्षा का इतना इंतजाम करते हैं। इस भस्म के समान हो जाएगा। शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत। शरीर की गति प्राण रहने तक ही है। इसके बाद यह श्री हीन, कांतिहीन हो जाता है।
भगवान शिव से जुड़ी कुछ खास बातों के संबंध में ये है मान्यता:
- शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व?
शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व तीन प्रकार से है...
भौतिक महत्व- शिवलिंग पर जल चढ़ाने से वहां मौजूद नकारात्मक उर्जा नष्ट होती है।
आध्यात्मिक महत्व – मस्तिष्क के केंद्र यानि इंसान के माथे के मध्य से सोचने समझने की क्षमता संचालित होती है और इसे शिव का स्थान कहा जाता है। आप शांत रहें इसके लिए शिव के मन का शीतल रहना जरूरी है। इसीलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है।
वैज्ञानिक महत्व – शिवलिंग एक न्यूक्लिअर रिएक्टर्स की तरह रेडियो एक्टिव एनर्जी से परिपूर्ण होता है। यही कारण है कि इस ऊर्जा को शांत रखने के लिए ही शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है।
- क्या हैं शिव की अष्ठ मूर्तियां ?
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार पुराणों के अनुसार शिव इस संसार में आठ रूपों में समाए हैं जो इस प्रकार हैं...
1. शर्व – सांसारिक नजरिए से शर्व भक्तों के सभी कष्टों को हरने वाला बताया जाया है। ये पृथवी से जुडा हुआ है ।
2. भव– शिव की जल से युक्त मूर्ति पूरे जगत को प्राणशक्ति और जीवन देने वाली है। भव जल से जूडा हुआ है ।
3. रुद्र -ये शिव की अत्यंत ओजस्वी मूर्ति है, जो पूरे दुनियां के अंदर-बाहर फैली समस्त ऊर्जा और गतिविधियों में स्थित है। रुद्र आग से ।
4. उग्र– उग्र वायु से जूडा है। वायु रूप में शिव जगत को गति देते हैं और पालन-पोषण भी करते हैं।
5 भीम – भीम अंतरिक्ष से जूडा है । शिव की आकाशरूपी मूर्ति है। ये भैमी नाम से प्रसिद्ध है। भीम नाम का अर्थ भयंकर रूप वाला भी हैं,
6. पशुपति – पशुपति जुडा है यजमान यानी इंसान से, जो जगत के जीवों की रक्षा और पालन करता हैं।
7 महादेव– महादेव चन्द्र से जुडें है। चन्द्र रूप में शिव की ये साक्षात मूर्ति मानी गई है। महादेव नाम का अर्थ देवों के देव होता है।
8. ईशान– ईशान सूर्य से जुडा है। यह सूर्य रूप में आकाश में चलते हुए जगत को प्रकाशित करती है।
- शिव यानि महाकाल ?
ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता, विष्णु संचालक और शिव संहारक है। शिव को वायु का अधिपति हैं और वायु के बिना शरीर में प्राणों का संचार संभव नहीं है। इसीलिए शिव को महाकाल कहा जाता है।
- शिवलिंग की क्यूं नहीं करते पूरी परिक्रमा ?
शिवलिंग रेडियो एक्टिव एनर्जी से परिपूर्ण होता है जिस कारण उस ऊर्जा को शांत रखने के लिए ही शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है जिससे पानी भी रिएक्टिव हो जाता है और इस जल को बहाने वाले मार्ग को लांघा नहीं जाता इसलिए शिवलिंग की परिक्रमां कभी पूरी नहीं की जाती।
- शिवलिंग पर नारियल पानी ?
शिवलिंग पर नारियल तो अर्पित किया जाता है लेकिन कभी भी शिवलिंग पर नारियल के पानी से अभिषेक नहीं करना चाहिए। देवताओं को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद ग्रहण करना आवश्यक होता है लेकिन शिवलिंग का अभिषेक जिन पदार्थों से होता है उन्हें ग्रहण नहीं किया जाता। इसलिए शिव पर नारियल का जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
- शिवलिंग पर कभी ना चढ़ाएं लोहे या स्टील से जल ?
भगवान भोलेनाथ पर हमेशा पीतल, कांसे या अष्टधातु से बर्तन या लोटे से ही जल चढ़ाना चाहिए लोहे या स्टील के बर्तन से नहीं। लोहे या स्टील के बर्तन से शिवलिंग पर पानी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता ।
- शिव की पूजा में शंख का प्रयोग ?
पूजा के सभी कार्यों में शंख का प्रयोग किया जाता है, लेकिन शिवलिंग पर इससे जल अर्पित नहीं करना चाहिए। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव ने शंखचूर नाम के असुर का वध किया था। इसलिए शंख शिव जी की पूजा में प्रयोग नहीं होता ।
- शिव जी के त्रिशूल की कहानी ?
शिवपुराण में भगवान शिवजी से जुड़ी कई बातों के बारे में बताया गया है। भगवान शिवजी को सभी प्रकार के अस्त्रों को चलाने में महारथ हासिल थी। लेकिन पौराणिक कथाओं में इनके दो प्रमुख अस्त्रों का ज़िक्र आता है एक धनुष और दूसरा त्रिशूल। माना जाता है की सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब शिव प्रकट हुए तो साथ ही प्रकट हुए तीन गुण – रज ,तम और सत और यही तीनों शिव के तीन शूल यानी त्रिशूल बने । इनके बीच समंजस्य बिठाए बिना सृष्टि का संचालन मुशकिल था । इसलिए शिव ने त्रिशूल रुप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण किया ।
- शिव जी के हाथों में डमरु ?
माना जाता है की जब सृष्टि में सरस्वती पैदा हुई तो उनकी वाणी से ध्वनि पैदा हुई, लेकिन ये ध्वनि सुर और संगीत विहीन थी। आवाज में संगीत पैदा करने के लिए भगवान शिवजी ने 14 बार डमरू बजाया और नृत्य किया। इससे ध्वनि व्याकरण और संगीत के ताल का जन्म हुआ। और इसी तरह भगवान शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई।
- शिव के गले में विषधार नाग ?
वहीं भगवान शिवजी के गले में लटके नाग के बारे में पुराणों में बताया गया है कि यह नागों के राजा नाग वासुकी हैं। नाग वासुकी भगवान शिवजी के परम भक्त थे, जिसके कारण भगवान शिवजी ने उन्हें आभूषण की तरह गले में लिपटे रहने का वरदान दिया।
- भगवान शिव श्मशान के निवासी ?
भगवान शिव को परिवार का देवता कहा जाता हैं पर ऐसा क्या कारण हैं जिसके चलते वह श्मशान में निवास करते हैं? संसार मोह माया से घिरा हुआ हैं वही श्मशान वैराग्यों से। भगवान शिव कहते हैं कि संसार में रहते हुए अपने कर्तव्य पूरे करों, लेकिन मोह माया से दूर रह कर। क्योंकि संसार तो नश्वर हैं।एक न एक दिन तो सब खत्म हो जाना हैं।
Published on:
01 Jul 2018 05:14 pm
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