महंत गुलाब गिरि ने बताया कि यहां जब से मां हरसिद्धि विराजमान हुई हैं, तब से धूना जलाया जा रहा है। यह कभी नहीं बुझा। इस धूने से निकली हुई अग्नि को खप्पर में रखकर मां की आरती की जाती है। उन्होंने बताया कि विक्रमादित्य ने 12 वर्ष तक यहां तपस्या की। बाद मां ने शीश के साथ चलने की बात कही, तब से मां हरसिद्धि के चरण की काशी में, धड़ तरावली और शीश की उज्जैन में पूजा की जाती है।