इस वेब-आधारित टूल का नाम ‘जेनोबग’ है, जो पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। आइसर के जैविक विज्ञान विभाग के प्रो. विनीत शर्मा का दावा है कि पारंपरिक जैव उपचार तकनीकों की तुलना में जेनोबेग किफायती, सटीक और तेज समाधान देता है। एक्सपर्ट के मुताबिक यह टूल प्रदूषण की समस्या को हल करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
ऐसे किया तैयार
शोधकर्ताओं ने जेनोबग के लिए 3.3 मिलियन एंजाइम अनुक्रमों और लगभग 16 मिलियन एंजाइमों वाले डेटाबेस तैयार किया है। साथ ही, 6,814 सब्सट्रेट्स की भी जानकारी संग्रहित की। इससे रैंडम फॉरेस्ट और आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क मॉडल से प्रशिक्षित किया गया।
क्या है जेनोबग?
जेनोबग वेब-आधारित प्लेटफॉर्म है। यह मशीन लर्निंग, न्यूरल नेटवर्क और कीमोइन्फॉर्मेटिक तकनीकों के संयोजन से काम करता है। यह टूल पर्यावरणीय मेटाजीनोम श बैक्टीरियल जीनोम से प्राप्त लाखों एंजाइम अनुक्रमों का विश्लेषण कर समाधान देता है।
पर्यावरण सुरक्षा में ऐसे करेगा मदद
इससे पर्यावरण में पहले से मौजूद लेकिन अब तक अज्ञात बैक्टीरियल एंजाइमों की पहचान। प्रदूषक के संभावित खतरे पर अलर्ट करेगा। इसकी मदद से जैवउपचार की योजनाएं बनाना तेज, सटीक, कम खर्चीला होगा। वैज्ञानिक इसकी मदद से पहले से ही नीति या सुरक्षा निर्धारण कर सकेंगे। इसे कीटनाशक, औषधीय अपशिष्ट, प्लास्टिक, भारी धातुओं आदि के निवारण में भी उपयोग किया जा सकता है।