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बदलता मौसम ही नहीं शहर की आबोहवा में लगातार घुल रहा प्रदूषण भी कर रहा है बीमार

राजधानी की हालत है चिंताजनक... खुदी सड़कें, नियम विरुद्ध निर्माण, कचरा जलाना और गली-मोहल्लों में उड़ रही गर्द जनता के फेफड़ों में जाकर सर्दी-जुकाम के वायरस को बना देती है घातक

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बदलता मौसम ही नहीं शहर की आबोहवा में लगातार घुल रहा प्रदूषण भी कर रहा है बीमार

बदलता मौसम ही नहीं शहर की आबोहवा में लगातार घुल रहा प्रदूषण भी कर रहा है बीमार

भोपाल. मौसम का मिजाज बदलते ही अस्पतालों में वायरल और सर्दी-जुकाम के मरीजों की भीड़ उमडऩे लगी है। ओपीडी में आने वाला हर तीसरा मरीज वायरल का शिकार है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति के पीछे तापमान के नरम-गरम तेवर के साथ प्रदूषण भी बड़ी वजह है। राजधानी की आबोहवा में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के चलते अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी और फेफड़े में संक्रमण के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
मालूम हो कि शहर में पर्यावरण का स्तर लगातार गिर रहा है। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल (पीसीबी) के मुताबिक बीते शहर में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) १५० के आसपास बना हुआ है। अगर एक्यूआई १०० के ऊपर जाता है, तो इसे सेहत के लिए नुकसानदायक माना जाता है।

क्या होता है पीएम
वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों के मिश्रण को पीएम कहते हंै। इन्हें माइक्रोस्कोप के जरिए ही देखा जा सकता है। पीएम 2.5 की मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और पीएम 10 की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होने पर ही हवा को सांस लेने के लिए सुरक्षित मानते हंै। इससे ज्यादा होने पर सेहत के लिए खतरनाक माना जाता है। पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर धुंध बढ़ती है। पीएम 10 व 2.5 धूल, कंस्ट्रक्शन और कचरा आदि जलाने से ज्यादा बढ़ते हैं।

यह परेशानियां हो रही है लोगों को
प्रदूषण के चलते सर्दी, जुकाम, बुखार, टॉन्सिलाइटिस के अलावा त्वचा की बीमारियों से पीडि़त मरीजों की संख्या भी बढ़ी है। बच्चों में जुकाम, खांसी, एन्फ्लूएंजा, न्यूमोनिया और बुजुर्गों में जोड़ों में दर्द के साथ नाक, कान, गला व सांस से संबंधी बीमारी के मामले पहले से ज्यादा सामने आ रहे हैं।

क्यों बढ़ता एक्यूआई
पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और पीएम 10) की संख्या अधिक बढऩे पर यह फेफ ड़ों में पहुंच जाते हैं। अच्छी सड़कें, साफ -सफाई, कचरा न जलाना, निर्माण कार्य के दौरान धूल आदि के कणों के बेहतर प्रबंधन से इसे बढऩे से रोका जा सकता है।

एक्सपर्ट बोले...
हमीदिया अस्पताल के टीबी एंड चेस्ट विशेषज्ञ डॉ. लोकेन्द्र दवे बताते हैं कि निर्माण कार्यों की उड़ती धूल सांसों से फेफड़ों में जाती है। इससे लोगों में बीमारियां बढ़ रही हैं। खासकर एलर्जी और अस्थमा के रोगी बड़ी संख्या में अस्पतालों में पहुंच रहे हैं।

ये सावधानी बरतेंगे तब आबोहवा होगी साफ
सरकारी और निजी प्रोजेक्ट के निर्माण स्थलों को ढका जाए।
जहां मिट्टी उड़ती है, वहां पर लगातार पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए।
जिन सड़कों को पहले खोदा जाए, उनका निर्माण बगैर देरी पहले करा दिया जाए।
सभी विभागों को समन्वय बनाकर काम करना चाहिए।
प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई और जुर्माना किया जाए।