इस प्रोजेक्ट के लिए पांच वर्ष का करार किया गया है। पांच वर्ष तक स्मार्ट बिन को साफ करने और रखरखाव की जिम्मेदारी इसी कंपनी की है। इस कंपनी ने शहर की 100 लोकेशंस पर 150 स्मार्ट बिन लगाए हैं। जहां कचरा कम है वहां एक स्मार्ट बिन लगाया गया है और जहां कचरा अधिक निकलता है, वहां दो स्मार्ट बिन एकसाथ लगाए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि सड़क पर कचरा या कचरे से भरे कंटेनर्स नजर नहीं आएं, इसके लिए स्मार्ट सिटी ने राजधानी में रियल टाइम कचरा कलेक्शन के लिए स्मार्ट डस्टबिन के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था। प्रथम चरण में 40 स्मार्ट बिन लगाई गई थीं। उसके छह महीने बाद शहर में 100 लोकेशंस पर 150 स्मार्ट बिन लगाई गई हैं।
आधिकारिक तौर पर बताया गया कि इन स्मार्ट बिन पर लगभग 13.50 करोड़ खर्च किए गए। इस छोटे से स्मार्ट बिन में दो टन कचरा इक_ा करने की क्षमता है। बताया गया कि अभी शहर में रखीं डस्टबिन में डेढ़ टन कचरा ही इक_ा होता है। ये स्मार्ट बिन धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में लगे डस्टबिन के समान है। इसमें कचरा डालने का ढक्कन ऊपर से खुलता है। शहर में लगी कुछ स्मार्ट बिन में ढक्कन खोलने का लीवर पांव में लगा है। कुछ स्मार्ट बिन में यह ढक्कन सेंसर से खुलता है।
स्मार्ट बिन के अंदर की निगरानी सेंसर के जरिए स्मार्ट सिटी के दो इंजीनियर्स करते हैं और बाहर की देखरेख का काम वार्ड के सफाई दरोगा और एएचओ का है। लोग कचरा बाहर न डालें और यदि बाहर कचरा है तो उसका हटवाने का काम नगर निगम की स्वच्छता टीम का है। एक वार्ड में तीन स्मार्ट बिन रखे गए हैं। स्मार्ट बिन भरते ही सेंसर से स्मार्ट सिटी टीम को पता चल जाता है और वे जोन्टा की टीम से कचरा खाली करवा कर आदमपुर छावनी डलवाते हैं।
ओपन कंटेनर की अपेक्षा स्मार्ट बिन की क्षमता भी अधिक है। स्मार्ट बिन भरने के बाद सिग्नल मिलते ही इसे खाली करवाया जाता है। यह पता चला है कि नगर निगम की डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन करने वाले जल्दबाजी में कई बार कचरा बाहर ही पटक जाते हैं। इस कचरे को बाद में बीएमसी की टीम हटाती है, लेकिन कुछ समय के लिए दिक्कत हो जाती है।
– ऋषभ चौहान, प्रभारी-स्मार्ट बिन, स्मार्ट सिटी