19 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

प्लास्टिक बैग रोककर हर हाथ में थैला थमाने को कर रहे काम

- गौरव की युवा टीम ने मिलाया थैला बैंक की टीम से हाथ - अलग-अलग कॉलोनियों के दो दर्जन से अधिक युवाओं को दे चुके प्रशिक्षण- घर में बेकार पड़े पुराने कपड़ों से थैले बनाने की आसान विधि सिखा रहे- ये युवा अपनी-अपनी कॉलोनियों में घर-घर संपर्क कर थैला बनाने का केन्द्र बनाएंगे- सुमन की टीम अभी तक बनाकर दे चुकी सात हजार से अधिक थैले

2 min read
Google source verification
प्लास्टिक बैग रोककर हर हाथ में थैला थमाने को कर रहे काम

प्लास्टिक बैग रोककर हर हाथ में थैला थमाने को कर रहे काम

भोपाल. हर हाथ में थैला थमाकर पॉलीथिन छुड़ाने की मुहिम अब जमीनी स्तर पर दिखाई देने लगी है। नगर निगम की थैला बैंक टीम की महिलाओं ने कॉलोनियों और संस्थाओं के साथ मिलकर काम आगे बढ़ाया है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। इस अभियान से स्थानीय महिलाएं और युवा जुड़कर उत्साह से काम में जुट गए हैं।

राजधानी के रहवासियों को पॉलीथिन की जगह कपड़े का थैला प्रयोग करने की आदत डलवाने के लिए नगर निगम की थैला बैंक टीम काफी प्रयास कर रही है। जुलाई 2019 में नगर निगम ने थैला बैंक की शुरुआत की थी। थैला बैंक बड़ा तालाब क्षेत्र, दस नंबर मार्केट, बिट्टन मार्केट, न्यू मार्केट, अशोका गार्डन आदि स्थानों पर कियोस्क में शुरू करवाई गईं।

थैला बैंक की कोआर्डिनेटर सुमन वेदुआ बताती हैं कि उन्होंने कई कॉलोनियों से महिलाओं और युवाओं को इस कार्य से जोड़ा है। थैला बैंक अभी तक सात हजार से अधिक थैले बनाकर उपलब्ध करा चुकी है। सुमन और उनकी साथी महिलाएं पुराने और अप्रयुक्त कपड़ों से थैले बनाना सिखाती हैं। सुमन का कहना है कि वे घरों और संस्थाओं से भी बेकार कपड़े लेकर थैले बनाती हैं।

कपड़े के बैग बनाने के इस काम में गौरव म्हासे की टीम के दो दर्जन से अधिक युवा साथी भी जुड़ चुके हैं। सुमन और उनकी टीम ने इन युवाओं को कपड़े के थैले बनाने का प्रशिक्षण दिया है। गौरव ने बताया कि कपड़े के थैले बनाने वाले युवा साथी अपनी-अपनी कॉलोनी में अन्य युवाओं और महिलाओं को साथ लेकर एक केन्द्र खोलेंगे, जहां पर पुराने और बेकार पड़े कपड़ों से थैले बनाए जाएंगे।

मरने से बचेंगे बेकसूर जानवर
पॉलीथिन का प्रयोग कर हम बेकसूर जानवरों की जान लेते हैं। खाने-पीने की चीजों के साथ जानवरों के पेट में पॉलीथिन भी चली जाती है। यह पॉलीथिन जानलेवा बन जाती है। हाल ही में एक समाचार प्रकाश में आया था, जिसमें एक अजगर ने जीव के धोखे में पॉलीथिन को निगल लिया।

कई जानवर तो पॉलीथिन खाने की वजह से मर चुके हैं और कई जानवरों के ऑपरेशन हो चुके हैं। पर्यावरण बचाने के लिए पॉलीथिन और प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना है और जो प्लास्टिक/पॉलीथिन अभी चलन में है, उसका बेहतर मैनेजमेंट करना है। पर्यावरण बचाने की दिशा में छोटे-छोटे प्रयासों की बड़ी भूमिका हो सकती है।