मोटी आवाज ही हमारी पहचान
उन्होंने कहा कि हमने पिता से संगीत की शिक्षा ली। हमारी मोटी थी, तो लोग कहते थे तुम लोग कभी सफल नहीं हो पाओगी। हमने उन लोगों पर कभी ध्यान नहीं दिया और संगीत की साधना करते रहे। बेशक हमारी आवाज मोटी है, पर इस आवाज के जादू ने ही हमें यहां तक पहुंचाया है। हम खुदा के लिए ही गाते हैं। हम दोनों जब भी गाते हैं खुद को भूल जाते हैं और उसी में खो जाते हैं।
5 साल की उम्र से ही गाना शुरू किया
सुल्ताना नूरांं ने बताया कि हम दोनों के बीच उम्र का थोड़ा सही ही फासला है। मैंने सात साल और ज्योति ने 5 साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया गया था। हम दोनों ने अपनी पहली प्रस्तुति 2005 में दूरदर्शन के एक कार्यक्रम में दी। हम दोनों ने लगभग एक ही उम्र से गायिकी के लिए रियाज शुरू किया। उस दौरान हमें यह नहीं लगता था कि कौन बड़ा और कौन छोटा। अब तो मंच पर चढ़ते हैं और गाना शुरू कर देते हैं। कभी-कभी हम दोनों में कौन क्या शुरू करेगा। इस बात पर रिहर्सल लगा लो या फिर बहस लगा लो, इस पर चर्चा हो जाती है।
शो मस्ट गो ऑन
नूरां सिस्टर्स ने बताया कि जब हम कनाडा में कंसर्ट करने जा रहे थे तो एआर रहमान का फोन आया कि हमारे लिए गाना रिकॉर्ड कर दो। हमने अपनी समस्या बताई तो उन्होंने गाना आपसे ही रिकॉर्ड कराएंगे। उन्होंने करीब एक साल तक हमारा इंतजार किया। इसके बाद जब हम हाईवे फिल्म का गाना मीठे पान दी गिल्लौरी… गानें गए हमें पता चला कि चाचा की मौत हो गई है। फिर भी हमने अपनी रिकॉर्डिंग पूरी की।
आज भी हम एक-दूसरे के बिना अधूरे
सुल्तान नूरांं ने बताया कि शादी के बाद हम दोनों बेशक एक-दूसरे से अलग हो गए हो, लेकिन जोड़ी आज भी सलामत है। गृहस्थी में मैं अपने बेटे को संभालती हूं। ज्योति मुंबई में रहती है, तब भी मैं अपनी छोटी बहन का आज भी उतना ही ख्याल रखती हूं। शादी के बाद भी हम दोनों बहनें एक साथ ही परफॉर्म करती हैं। जब हम अकेले प्रस्तुति देते हैं, तो बहुत अजीब लगता है।
नूरांं सिस्टर्स ने बताया कि हमने गिटार से लेकर अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र में सूफी गीतों को पेश किया है। सूफी गीतों के लिए आधुनिक वाद्य यंत्र की जरूरत नहीं, बल्कि गीत, लय के साथ एहसास का होना जरूरी है। फिल्मों में तो अकसर हमारे सामने वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट ही होते हैं, लेकिन हम फिर भी अपने ही अंदाज में सूफी गीत गाते हैं। हमने वाद्य यंत्र के लिए खुद की टीम तैयार की हुई है।