प्रारंभ में चार ही वंश हुआ करते थे- इक्ष्वाकुवंश, ऋषिवंश, विद्याधरवंश और हरिवंश। समय और घटनाक्रम तथा व्यक्तित्व प्रभाव सहित अन्य कारणों से इन वंशों से कई वंशों का जन्म हुआ और मेरा राक्षस वंश। विद्याधर वंश से उत्पन्न हुआ। हमारे वंश का नाम एक समय के लोकप्रिय, प्रभावशाली, शक्तिशाली और बुद्धिमान राजा राक्षस के नाम पर पड़ा वे विद्याधर वंश के ही थे, पर उनकी प्रसिद्धि ने हमारे वंश को राक्षस नाम दे दिया।