
भोपाल। सप्रे संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि वे मंगता से मिनिस्टर बनने वाले साधारण आदमी की काया में असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे। जीवनभर उन्होंने गरीबों की फिक्र की।
विधायक, मंत्री, संसद सदस्य जैसे उच्च पदों को प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने कभी न तो ओछी भाषा का इस्तेमाल किया और नही थोथा अहंकार पाला। उन्होंने संसद की समीक्षा ऐसी गरिमा के साथ लिखी कि संसद सदस्य उसमें अपना नामोल्लेख कराने के लिए बहस को गंभीरता से लेने लगे थे। उन्होंने 25 किताबें लिखीं और 26 फिल्मों के लिए गीत लिखे। उन्होंने मालवी भाषा में फिल्म बनवाई थी।
सप्रे संग्रहालय में सोमवार को हिंदी के कवि और संवेदनशील राजनेता बालकवि बैरागी तथा वरिष्ठ पत्रकार गोविन्दलाल वोरा को श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। श्रद्धांजलि सभा में भोपाल के पत्रकार, साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। हिंदी भवन के मंत्री संचालक कैलाशचन्द्र पंत ने श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता की।
भाजपा सरकार ने दिया प्रदीप सम्मान
कैलाशचंद्र पंत ने कहा कि वे जिस माटी में जन्मे उसके संस्कार और सुगंध को नहीं भूले। मालवा और मेवाड़ के संधि स्थल पर बसे रामपुर और मनासा को कभी नहीं भूले। कविता के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रीयता का उद्घोष किया।
बैरागी जी के अंतिम पत्र का उल्लेख करते हुए पंत ने कहा कि जो कुछ देश में चल रहा है उसको देखकर दु:ख होता है। बैरागी जी की सर्वप्रियता का उल्लेख करते हुए पंत ने बताया कि वे आजीवन कांग्रेसी रहे तथापि भाजपा की सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय प्रदीप सम्मान से अलंकृत करने में संकोच नहीं किया।
मालवी कविता में प्रेरक शब्दचित्र खींच देते थे
बटुक चतुर्वेदी ने कहा कि बालकवि बैरागी हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहे। उन्हें अपनी भाषा से बहुत प्यार था। वे कहते थे कि कोई भी कवि या साहित्यकार अपनी बोली-भाषा से दूर होकर जी नहीं सकता।
प्रदेश सरकार में मंत्री बनने के बाद भी वे हमेशा साहित्यकार और कविओं के बारे में ही सोचते थे। गांव-देहात तक कवि सम्मेलनों का आयोजन करते। एक बार वे धार जिले के शिवखेड़ा गांव जा पहुंचे। यहां मालवी भाषा के पहले कवि पन्नालाल रहते थे। उन्होंने जब उनका सम्मान किया तो ग्रामीण को पता चला कि उनके गांव में कोई कवि भी रहता है।
अलग शैली की विकसित
डॉ. रामवल्लभ आचार्य ने पनहारिन कविता का उदाहरण देते हुए कहा कि मालवी का माधुर्य तथा मालवी संस्कृति एवं लोक संवेदनाओं के वे प्रतिनिधि स्वर थे। शिवप्रकाश त्रिवेदी ने कहा कि बैरागी जी ने मालवी गीतों की अलग शैली और हिंदी गीतों की अलग शैली विकसित कर ली थी।
तुम्हारी भाभी कविताएं लिखवा लेती है
कथाकार योगेश शर्मा का कहना था कि बैरागी जी ने कभी अपनी ग्रामीण परिवेश को छिपाया नहीं। १९६० के दशक में इंदौर से निकलने वाले इंदौर समाचार में वे घंटों बैठे रहते थे। मैं भी वहां काम करता था। वे मिल क्षेत्र में होने वाले कवि सम्मेलन में शामिल होते थे।
श्रोता भी बस उन्हें ही सुनना चाहते थे। कविता की उनकी अपनी एक शैली थी। एक बार मैंने उनसे पूछा कि वे इतनी अच्छी कविता कैसे लिख लेते हैं, तो उन्होंने पत्नी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि तुम्हारी भाभी कविता लिखवा ही लेती है।
हमेशा दूसरो को आगे बढ़ाया
वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी किशन पंत कहा है कि ६०-७० के दशक में मैं महू से उन्हें सुनने के लिए इंदौर जाया करता था। राजनीति में आने के बाद उनसे अक्सर मुलाकातें होने लगी। वे हमेशा गरीब साहित्यकार और कवियों की मदद किया करते थे। राजनीति में आने के बाद भी उनकी सरलता और सहजता में कोई कमी नहीं आई।
Published on:
15 May 2018 11:12 am
बड़ी खबरें
View Allभोपाल
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
