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भोपाल। ट्रेन के कोच में डिजाइनर शौचालयों का प्रयोग करने वाले रेलवे ने ड्राइवर्स के लिए इंजन में और गार्ड के लिए उसके डिब्बे में शौच आदि के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है। ड्राइवर्स को गाड़ी रुकने का इंतजार करना पड़ता है। कई बार यह इंतजार कई घंटे का हो जाता है, जो उन्हें गंभीर बीमारियों की ओर धकेल रहा है। भोपाल रेलमंडल में ही करीब 70 प्रतिशत ड्राइवर्स और गाड्र्स को कब्ज अथवा मूत्र संबंधित बीमारियां हैं।
इन बीमारियों से पीडि़त
70 प्रतिशत रेलवे लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और गार्ड को कब्ज और पेट संबंधी बीमारियां हो जाती हैं। इसके अलावा उच्च रक्तचाप, शुगर, थायराइड, पथरी, आंखों की कमजोर रोशनी और सुनने की क्षमता कम होने की बीमारियां सबसे अधिक लोको पायलट और गाड्र्स को हो रही हैं।
विशेषज्ञ बोले
वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय गुप्ता के अनुसार मूत्र और शौच के वेग को रोकना खतरनाक होता है। नहीं तो कब्ज हो जाता है। मल कड़ा होकर सूख जाता है, इससे आंतों से संबंधित बीमारी होने का खतरा रहता है। एेसे ही लंबे समय तक मूत्र त्याग नहीं करने पर यूरीन इंफेक्शन, मूत्राशय संबंधी बीमारियां होने का खतरा सबसे अधिक रहता है। बंसल अस्पताल में पदस्थ वरिष्ठ मनोचिकित्सक सत्यकांत त्रिवेदी के अनुसार यह एक मनोवैज्ञानिक त्रासदी है कि किसी व्यक्ति को प्राकृतिक रूप से उत्सर्जित होने वाली क्रिया को रोकना पड़े। मल और मूत्र का वेग रोकने के कारण किसी भी व्यक्ति की एकाग्रता भंग हो सकती है। इस तरह की परिस्थित से फोकस गड़बड़ हो सकता है।
60 फीसदी लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और गार्ड रेलवे की इस गलती का खामियाजा बीमारियों के रूप में भुगत रहे हैं। 40 वर्ष की उम्र वाले लोको पायलट और गार्ड में तो इन बीमारियों का आंकड़ा 75% तक है। रेलवे की यह लापरवाही जारी रही तो नए लोको पायलट और गार्ड को और गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।
-अजय गुप्ता, सेक्रेटरी ऑल इंडिया गार्ड एसोसिएशन
Published on:
22 Jan 2018 12:45 pm
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