
भोपाल। गर्मी का मौसम आते ही शहर में शुद्ध पानी के नाम पर पाउच और बॉटल का धंधा शुरू हो गया है। इन पर न तो एक्सपायरी डेट दर्ज होती है न ही बैच नंबर। लोगों को गुमराह करने बॉटल व पाउच पर पैकिंग के बाद तीन महीने तक सुरक्षित लिखा होता है। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि पानी कितना पुराना है। विशेषज्ञों की मानें तो लंबे समय तक प्लास्टिक या पॉलीथिन में पैक रखने से पानी दूषित हो जाता है, जो सेहत के लिए हानिकारक है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग द्वारा जांच व कार्रवाई न किए जाने से यह कारोबार फल-फूल रहा है।
कई महीने पहले हो जाते हैं तैयार...
एक पाउच सप्लायर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, पानी पाउचों की सबसे ज्यादा डिमांड इंदौर, ग्वालियर, भिंड व जबलपुर में है। अचानक आए शादी या अन्य बड़े ऑर्डर को पूरा करने पॉउच का स्टॉक महीनों पहले तैयार कर रखा जाता है। निर्माण डेट या एक्सपायरी डेट डालना बिजनेस को नुकसान पहुंचा सकता है।
आंकड़ें
40 पैसे लागत एक पाउच की
2 रुपए में बिकता है पाउच
6 कंपनियां पाउच बनाने के लिए रजिस्टर्ड
18 कंपनी कर रही हैं यह काम
70 से 80 लाख का है शहर में पानी का व्यापार हर महीने
10 लाख पाउच की खपत है शहर और आसपास
छह सैंपल लिए, वह भी पैकबंद बॉटल के
खाद्य एवं औषधि विभाग की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विभाग ने बीते महीने पानी के छह नमूने लिए हैं। इन सभी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। बड़ी बात यह है कि सभी सैंपल ब्रांडेड बॉटल बंद पानी के हैं, जबकि गड़बडि़यां लोकल पैकेजिंग के दौरान होती हैं।
ऐसे पहचानें अमानक पानी
पानी के वे पाउच जिनमें आईएसआई मार्का, कंपनी का पता व फोन नंबर नहीं होने के साथ निर्मण तिथि और एक्सपायरी डेट दर्ज न हो, उसे अमानक कैटेगरी में रखा गया है। ऐसे पानी पाउव व बॉटल को देखते ही पहचाना जा सकता है, इसके बाद भी इन पर किसी की लगाम नहीं है।
सरकारी रिकॉर्ड में छह, चल रही तीन गुना
सरकारी रिकॉर्ड में पाउच बनाने वाली सिर्फ छह कंपनियां ही शहर में रजिस्टर्ड हैं। सूत्रों की मानंे तो इससे तीन गुना कंपनियां पाउच बना रही हैं। यह कंपनी अपना नाम पता पाउच पर नहीं लिखतीं, जिससे इन्हें पकडऩा मुश्किल हो जाता है। पुराने शहर में एक सैकड़ा घरों में प्यूरीफायर्ड वाटर केन का धंधा किया जा रहा है।
Published on:
25 Apr 2018 06:10 pm
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