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बाबुओं से जो नहीं कराना चाहिए, वो काम करवा रहे निकाय

सरकार ने कमिश्नर-सीएमओ पर जताई नाराजगी

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भोपाल. नगर निगमों के आयुक्त और नगर पालिका सीएमओ को यह गवारा नहीं कि वित्त का काम वित्त अधिकारी करे। वे यह काम बाबुओं से कराना पसंद कर रहे हैं। वित्त अफसरों को काम से दूर रखा जा रहा है। इस कारनामे की जानकारी मिलने पर नगरीय प्रशासन के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने कहा कि कहीं कोई वित्तीय अनियमितता या शिकायत मिलती है तो आयुक्त और सीएमओ ही जिम्मेदार होंगे। जिन निकायों को वित्तीय अधिकारी मिल गए हैं, उन्हें तत्काल फायनेंस का काम-काज सौंपा जाए। इसके लिए सात दिन का समय दिया गया है।
सरकार को लंबे समय से शिकायत मिल रही थी कि निकायों के जिम्मेदार अधिकारी जनता के पैसों को मनमाने तरीके से खर्च कर रहे हैं। उन्होंने लेखा शाखा में बाबू को प्रभारी अधिकारी बना रखा है। इनके हस्ताक्षर से हर माह लाखों, करोड़ों रुपए के भुगतान कराए जा रहे हैं। जबकि ठेकेदारों सहित अन्य लोगों को बड़े भुगतान के लिए मुख्य नगर पालिका अधिकारी, वित्त अधिकारी और लेखा अधिकारी के हस्ताक्षर जरूरी है।

वित्त अधिकारी करेंगे खर्च की जांच
नगरीय निकायों में एक साल के अंदर जो बड़ी राशि खर्च की गई है, उसकी जांच वित्त अधिकारी करेंगे। गड़बडिय़ां मिलती हैं तो इसकी जानकारी सरकार और कोष एवं लेखा विभाग को देंगे। वित्त अधिकारी बड़े प्रोजेक्टों की वित्तीय मॉनिटरिंग भी करेंगे, जिन ठेकेदारों को काम से अधिक भुगतान किया गया है, उसमें भुगतान करने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाई के लिए सरकार पर प्रस्ताव भेजेंगे।

मुरैना की शिकायत सबसे ज्यादा
मुरैना जिले में वित्तीय गड़बडिय़ों की शिकायतें शासन के पास आई थीं। इसकी भोपाल से एक टीम भेजकर जांच कराई गई। टीम ने यह पाया कि ठेकेदारों लाखों रुपए का ज्यादा भुगतान किया गया था। हालांकि मामला उजागर होने के बाद ठेकेदारों को जो राशि ज्यादा दी गई थी वो निकाय ने वापस ली गई। इस मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। इसी तरह से अन्य जिलों से भी शिकायतें शासन में आई हैं।

सभी नगरीय निकायों को वित्त अधिकारी को वित्तीय अधिकार और चार्ज देने के लिए निर्देश दिए गए हैं। शासन ने निकायों में वित्त अधिकारी की नियुक्ति वित्तीय मामलों को देखने के लिए ही की है।
- मीनाक्षी सिंह, अपर आयुक्त, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग