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रणनीतिक दावपेंच: कमलनाथ को छिंदवाड़ा से संजय की मित्रता ने मिलवाया

गार्गीशंकर मिश्र के कांग्रेस में विरोध के चलते बदला समीकरण!...

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रणनीतिक दावपेंच: कमलनाथ को छिंदवाड़ा से संजय की मित्रता ने मिलवाया

बात 1979 की है। छिंदवाड़ा के तत्कालीन सांसद गार्गीशंकर मिश्र का कांग्रेस में विरोध होने लगा था। विरोध का कारण 1977 का चुनाव था। इमरजेंसी के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस को पूरे देश में बड़ा झटका लगा था। इंदिरा गांधी तक चुनाव हार गईं, लेकिन छिंदवाड़ा में मिश्र ने कांग्र्रेस को जीत दिला दी। इससे उनके तेवर बदल दिए।

मिश्र नागपुर के रहने वाले थे। छिंदवाड़ा में पार्टी कार्यकर्ताओं से उनके आत्मीय संबंध कभी नहीं बन पाए। आलाकमान को चुनाव के बाद वे यह बताने में सफल रहे कि वे व्यक्तिगत छवि के कारण जीते हैं। स्थानीय कांग्रेसी नेता इस बात से खफा हो गए। उस समय जिले की राजनीति में युवा बलकरण पटेल मुख्य भूमिका निभा रहे थे।

संगठन में पकड़ और जिले के नेताओं से अच्छे संबंध और सक्रियता के कारण वे चर्चा में थे। रेवनाथ चौरे, सुंदरलाल जायसवाल, माधवलाल दुबे, दामोदर पाटिल जैसे नेता कांग्रेस के विधायक थे। संगठन अध्यक्ष शंकरराव दाढ़े थे। नाखुश जिला महामंत्री रवि दुबे से मिश्र की तीखी बहस हुई। अब तय किया गया कि दिल्ली जाकर मिश्र की जगह किसी और को टिकट देने की मांग की जाए।

बमुश्किल मिली थीं इंदिरा गांधी
रेवनाथ चौरे के अर्जुन सिंह से अच्छे संबंध थे। उनसे और सांसद नरेंद्र सालवे से बातचीत हुई तो अर्जुन सिंह ने इंदिरा गांधी के नाम एक ज्ञापन लेकर आने को कहा। सालवे विधायकों सहित इंटक नेताओं के दस्तखत वाला ज्ञापन लेकर दिल्ली पहुंचे।

इस बीच दिल्ली में इंदिरा को खबर कर दी गई कि छिंदवाड़ा के कुछ नेता टिकट मांगने आ रहे हैं। इंदिरा ने अर्जुन सिंह को दो टूक कह दिया कि वे मिश्र के खिलाफ कुछ नहीं सुनेंगी। रेवनाथ चौरे, शंकरराव दाढ़े एआइसीसी दफ्तर के सामने धरने पर बैठ गए।

इसके बावजूद इंदिरा ने मिलने से इनकार कर दिया। फिर निर्मला देशपांडे से बलकरण पटेल जाकर मिले और बात करने का आग्रह किया। वे आईं और बात सुनी, लेकिन बात अब भी नहीं बनी।

संजय ने बढ़ाया नाम
उस समय निर्मल टॉवर में संजय गांधी का दफ्तर था। अर्जुन सिंह ने कहा कि अब संजय से ही मिलकर बात बन सकती है। वे युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। तीन चार दिन उनसे सिर्फ नमस्कार चमत्कार ही हुआ। पांचवें दिन उन्होंने छिंदवाड़ा के नेताओं को मिलने बुलाया।

संजय ने कमलनाथ की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये मेरा दोस्त है। इसे लड़ाऊं तो जिता दोगे क्या। इसके बाद रात ढाई बजे कमलनाथ वेस्टर्न कोर्ट क्षेत्र के एक कमरे में मिलने आए और पूछा कि छिंदवाड़ा कहां है। छिंदवाड़ा के नेताओं ने मिश्र का लगातार विरोध किया तब इंदिरा ने कमलनाथ का टिकट पक्का किया।
(जैसा बलकरण पटेल ने संदीप चवरे को बताया।)