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एक किस्सा लोकसभा का: यहां सियासत अलग मिजाज रखती है, सांसद बनाते थे पंचर; आज भी देते हैं टिप्स

locationभोपालPublished: Mar 11, 2019 04:36:47 pm

Submitted by:

Pawan Tiwari

एक किस्सा लोकसभा का: यहां सियासत अलग मिजाज रखती है, सांसद बनाते थे पंचर; आज भी देते हैं टिप्स

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एक किस्सा लोकसभा का: यहां सियासत अलग मिजाज रखती है, सांसद बनाते थे पंचर; आज भी देते हैं टिप्स

भोपाल. यहां मानवता, इंसान से इंसानियत होने का सबूत मांगती है। बचपन रोटी को तरसता है और जवानी बंद किताबों के खुलने की उम्मीद में बूढ़ी हो जाती है। बुढ़ापा पानी की एक-एक बूंद के लिए कुएं खोदता है। यहां राजनीति भी होती है, पर गुजरती रवायतों की पुरानी गली से। वैसे बता दें कि यहां पर पुरानी राजनीति की रयावत वादों की गली से होकर गुजरती है। यहां का पिछड़ापन बेशर्म सियासत का उदाहरण है। यहां किसान ठंड से नहीं भूख से कांपता है क्योंकि ये बुंदेलखंड है।
वही बुंदेलखंड जहां हर इंसान एक किस्सा है। गरीबी का आलम ऐसा है कि यहां का सांसद खुद पंचर बनाता था। इस लाइन पर गौर करिएगा क्योंकि मध्यप्रदेश में इस सांसद को लोग बेसुमार प्यार करते हैं तो कुछ लोग प्यार से पंचरवाला और चौपाल वाला सांसद भी कहते हैं। वैसे मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के हिस्सों को मिलाकर बनता है असली बुंदेलखंड।
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पहला लोकसभा चुनाव 1951 में हुआ
‘एक किस्सा लोकसभा का’ में हम आपको चंबल के बाद अब बुंदेलखंड क्षेत्र के लोकसभा सीटों की जानकागी देंगे। बुंदेलखंड में मध्यप्रदेश की चार लोकसभा सीटें आती हैं, लेकिन आज हम बात करेंगे सागर लोकसभा सीट की। सागर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ बनती जा रही है। इस सीट पर पिछले 6 चुनावों से बीजेपी का ही कब्जा है। कांग्रेस को आखिरी बार इस सीट पर 1991 में जीत मिली थी। सागर लोकसभा सीट पर पहला लोकसभा चुनाव 1951 में हुआ। 1951 के चुनाव में यह सीट सामान्य वर्ग के लिए थी। लेकिन परिसीमन के बाद 1957 के चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई। 1962 के चुनाव में यह सीट एक बार फिर सामान्य वर्ग के लिए हो गई और फिर इसके बाद 1967 से लेकर 2004 तक यह सीट अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित रही। .परिसीमन के बाद 2009 से यह सीट एक बार फिर सामान्य हो गई। सागर लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। बीना, खुरई, सुरखी, नरयावली, सागर, कुरवाई, सिरोंज और शमशाबाद।
सांसद को लोग कहते हैं पंचरवाला
हमने पंचरवाले सांसद का जिक्र किया था। सांसद हैं भाजपा के वीरेन्द्र कुमार खटीक। वीरेन्द्र खटीक ने पांचवी से लेकर सागर विश्वविद्यालय में पढ़ाई तक साइकिल रिपेयरिंग का काम किया। सांसद वीरेन्द्र खटीक खुद बताते हैं कि दुकान पर शुरुआत में वो लापरवाही से काम करते थे। कई बार दुकान में पंचर सुधारने के दौरान पिता की डांट भी पड़ी, पंचर सुधारने के काम को मैं ध्यान से नहीं करता था तो पिताजी मुझे अच्छी तरह से पंचर बनाना सिखाते थे। धीरे-धीरे पंचर बनाने से लेकर रिपेयरिंग के सारे काम उन्हें आने लगे। सांसद बनने के बाद भी वो कई बार पंचरवालों की दुकान में पहुंच जाते हैं। पंचर बनाने वाले को पंचर बनाना भी सिखाते हैं। तो कभी-कभी आज भी खुद पंचर बनाने बैठ जाते हैं।
सांसद और स्कूटर का भी यहां की जनता में बहुत किस्से हैं। सांसद आज भी अपनी क्षेत्र में स्कूटर लेकर चलते हैं। लग्जरी गाड़ियों में तो कभी-कभार ही दिखते हैं। वीरेन्द्र खटीक जब सागर सांसद थे तो अपने पुराने स्कूटर से घूमा करते थे। कहा जाता है कि ज्यादातर स्थानीय कार्यक्रमों में वो स्कूटर से ही पहुंचते हैं। सांसद वीरेन्द्र खटीक जनता की समस्याएं चौपाल लगाकर सुनते हैं। इसलिए इन्हें चौपाल वाले सांसद भी कहा जाता है। कहा जाता है कि दिल्ली और सागर के बीच ट्रेन से सफर करते हैं। स्टेशन से घर आने जाने के लिए या तो टैक्सी का सहारा लेते हैं या कोई कार्यकर्ता या रिश्तेदार स्कूटर लेकर उन्हें स्टेशन लेने पहुंच जाता है। सागर सीट से वीरेन्द्र खटीक लगातार चार बार सांसद रहे और फिर सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित होने के बाद वो टीकमगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़ने चले गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लक्ष्मी नारायण यादव ने कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत को हराया था। इस चुनाव में लक्ष्मी नारायण यादव को 54.11 फीसदी तो कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत को 40.57 फीसदी वोट मिले थे। दोनों के बीच हार जीत का अंतर 1 लाख 20 हजार 737 वोटों का था।
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सियासत अलग मिजाज रखती है
वैसे हम बता दें कि इस सीट की सियासत कुछ अलग मिजाज रखती है। पूर्व सांसद भूपेंद्र सिंह विधायक बनकर प्रदेश सरकार में मंत्री बन गए और फिर से विधायक का चुनाव जीतकर विधानसभा में हैं। दूसरे ध्रुव कहे जाने वाले गोपाल भार्गव नेताप्रतिपक्ष हैं। बुंदेलखंड में ठाकुर—बामन की लड़ाई का असली मिजाज यहां पर देखने को नजर आ जाता है। ठाकुर अपने नेता को प्रभावशाली बनाने में जुटे रहते हैं और ब्राह्मण अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश में। वैसे यादव और लोधियों को भी यहां पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
कब कौन बना यहां से सांसद
1951 में कांग्रेस के खूबचंद सोढिया
1957 में कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद ज्योतिष
1962 में कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद ज्योतिष
1967 में भारतीय जनसंघ के राम सिंह
1971 में कांग्रेस की सहोद्रा बाई राय
1977 में भ
ारतीय लोकदल के नर्मदा प्रसाद राय
1980 में कांग्रेस की सहोद्रा बाई राय
1984 में कांग्रेस के नंदलाल चौधरी
1989 में भाजपा के शंकर लाल खटीक
1991 में कांग्रेस के आनंद अहिरवार
1996-2004 में भाजपा के वीरेन्द्र कुमार खटीक
(लगातार चार बार)
2009 में भाजपा के भूपेन्द्र सिंह
2014 में भाजपा के लक्ष्मी नारायण यादव
जातिगत समीकरण
2011 की जनगणना के मुताबिक सागर की जनसंख्या 23 लाख 13 हजार 901 है। यहां की 72.01 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 27.99 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। सागर की 22.35 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति के लोगों की है और 5.51 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति के लोगों की है।
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अब बात सांसद के रिपोर्ट कार्ड की
74 साल के लक्ष्मी नारायण यादव 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने। सागर में जन्मे लक्ष्मी नारायण यादव पेशे से किसान हैं। संसद में उनकी उपस्थिति 93 फीसदी रही। उन्होंने 42 बहस में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने 347 सवाल भी किए। लक्ष्मी नारायण यादव को निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे। इसमें से उन्होंने 93.74 फीसदी खर्च किया। उनका करीब 2.43 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया। वैसे बुंदेलखंड को किस्सा और कहानियों का गढ़ कहा जाता है तो यहां पर राजनीति की भी कई कहानियां हैं। बावजूद इसके यह क्षेत्र अब भी विकास की कहानी सुनने और सुनाने की उम्मीद में सूखा जा रहा है। उम्मीद है कि कभी आशाओं की बारिश होगी। यहां भी खुशहाली ही फसल लहराएगी।
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