दरअसल, राज्य सरकार ने फिलहाल नए स्कूल भवन नहीं खोलना तय किया है। उस पर सरकार ने स्कूलों का युक्तियुक्तकरण करके एक ही छत के नीचे पहली से बारहवीं कक्षा तक के बच्चों के स्कूलों को मर्ज किया है। इसके तहत 12 हजार स्कूलों का युक्तियुक्तकरण किया जा चुका है। इसलिए सरकार ने अब ऐसे स्कूल भवनों को भी न बनाना तय किया है, जिनके लिए बरसों पहले निर्माण मंजूर किया गया था, लेकिन वहां पर कोई काम नहीं हुआ। इस कारण जिलों से स्कूल भवनों की रिपोर्ट बुलाकर रिव्यु करना तय किया गया है।
इसमें दस प्रतिशत से कम काम वाले, 25 फीसदी तक काम वाले और उससे ज्यादा निर्माण काम वाले स्कूलों को छांटा जा सकता है। इसमें जहां दस प्रतिशत से कम काम हुआ है, उनको लेकर पुनर्विचार होगा। ऐसे भी कुछ स्कूल हैं, जिनके लिए 2011-12 में निर्माण कार्य मंजूर हुआ था, लेकिन अभी तक वह पूरा नहीं हो सका। ऐसे स्कूलों के निर्माण पर भी सख्ती की जाएगी। इसके अलावा जहां पर अभी तक एक भी प्रतिशत काम नहीं हुआ है, उनके निर्माण को लेकर भी पुनर्विचार किया जाएगा।
इसके अलावा निर्माण एजेंसी को बदलने का विकल्प भी सरकार के पास है। इसलिए जहां निर्माण एजेंसी की लेतलाली के कारण निर्माण कार्य प्रभावित हो रहा है, वहां एजेंसी में बदलाव के विकल्प को अपनाया जा सकता है। इसके लिए टेंडर प्रावधानों का भी अध्ययन होगा।
आर्थिक संकट है वजह-
दरअसल, आर्थिक संकट के कारण सरकार खर्च पर नियंत्रण बढ़ा रही है। इसके तहत ऐसी योजनाओं पर राशि खर्च करने से कदम पीछे खींचे जा रहे हैं, जिनका अधिक उपयोग नहीं है। बरसों से भवन न बनने के कारण उनकी उपयोगिता को लेकर रिव्यु भी इसकी कड़ी का हिस्सा है।