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टीचर्स को नहीं पता इंडस्ट्री की डिमांड, दोष स्टूडेंट्स को दिया जाता है कि वे स्किल्ड नहीं

उच्च शिक्षा के व्यवसायीकरण पाठ्यक्रम पर ओरिएंटेशन कार्यक्रम का आयोजन, एनआईटीटीटीआर और बीएमए के एक्सपट्र्स ने दिए सुझाव

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टीचर्स को नहीं पता इंडस्ट्री की डिमांड, दोष स्टूडेंट्स को दिया जाता है कि वे स्किल्ड नहीं

भोपाल। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने 2014 में तीन साल के लिए टीचिंग लर्निंग सेंटर को मंजूरी थी। पंडित मदन मोहन मालवीय नेशनल मिशन ऑन टीचर्स एंड टीचिंग के तहत टीचर्स को वर्तमान समय के अनुसार तैयार करना था। इस प्रोजेक्ट को जनवरी 2018 में तीन सालों के लिए फिर से बढ़ा दिया गया है। गुरुवार को होटल पलाश में उच्च शिक्षा में व्यवसायीकरण पाठ्यक्रम के संबंध में एक ओरिएंटेशन प्रोग्राम का आयोजन किया गया।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नीकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च(एनआईटीटीटीआर) ने भोपाल मैनेजमेंट एसोसिएशन(बीएमए) के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट की उपयोगिता पर चर्चा की। इसमें ये बात निकलकर सामने आई कि मध्यप्रदेश में प्रोफेशनल कोर्सेस पढ़ाने वाले टीचर्स खुद समय के साथ अपडेट नहीं होते।

उन्हें खुद इंडस्ट्री की टेक्नोलॉजी और डिमांड की जानकारी नहीं होते। ऐसे में वे सिलेबस का जो कोर्स पढ़ाते हैं वो अक्सर आउटडेटेड होता है। ऐसे में सारा दोष स्टूडेंट्स के सिर मढ़ दिया जाता है कि वे प्रोफेशनल और स्किल्ड नहीं है। यदि टीचर्स खुद हर छह माह में इंडस्ट्री का दौरा करें तो उन्हें मार्केट की अपडेट्स का पता चल सकेगा।

इस प्रोजेक्ट का मकसद टीचर्स और फैकल्टी को इंडस्ट्री की जरूरत के मुताबिक ट्रेनिंग देना है। सेमीनार में टीचर्स के साथ इंडस्ट्री के ऑफिसर्स को भी बुलाया गया था। बीएमए और एनआईटीटीटीआर इंडस्ट्रीज से ये जानना चाहता था कि किस तरह उनकी उम्मीदों को पूरा किया जा सकता है।

पांच साल का हो इंजीनियरिंग कोर्स

बीएमए के सचिव विश्वास घुषे ने सुझाव देते हुए कहा कि इंजीनियरिंग कोर्स को पांच सालों का करने की जरूरत है। अभी स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री विजिट के साथ एक माह की ट्रेनिंग ही मिल पाती है। वे फील्ड को समझ ही नहीं पाते। यदि पांचवें साल में वे फील्ड में जॉब करेंगे तो समस्याओं को समझ उनसे सीख सकेंगे। कोर्स हमेशा रिजल्ट ओरिएंटेंड होना चाहिए। एनसीआरटीई को भी कोर्स फील्ड बेस्ड बनाने पर जोर देना चाहिए।

स्कूल-कॉलेजों के बीच कोई तालमेल ही नहीं

एक निजी कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट(एचआर) पद से रिटायर्ड राजेश तिवारी ने कहा कि रोम दौर के दौरान मैंने देखा कि स्कूल के 25 स्टूडेंट्स कॉलेज का दौरा कर रहे हैं। मैंने यहां आकर ये सुझाव एक शासकीय स्कूल को दिया। वे एक हफ्ते बाद ही 8 से 10वीं तक के स्टूडेंट्स को लेकर इंडस्ट्री में आए। हमने स्टूडेंट्स के कॉन्सेप्ट क्लियर करने की कोशिश की। अभी हमारे देश में स्कूल, हायर एजुकेशन और टेक्निकल एजुकेशन सिस्टम के बीच कोई तालमेल ही नहीं है। चाइना में 14 हजार आइटीआइ हैं, हमारे देश में महज 450। राजधानी में पचास से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज होंगे, लेकिन आइटीआइ 10 भी नहीं। हमें फॉरवर्ड से पहले बैकवर्ड सोचना होगा।

स्टूडेंट्स का किताबों में इंट्रैस्ट कम हुआ

कैंब्रिजे और हावर्ड विश्वविद्यालय की एक रिसर्च के अनुसार अब स्टूडेंट्स किताब की बजाए यू-ट्यूब और इंटरनेट पर पढऩा ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए वहां पढ़ाई को डिजिटल की ओर ले जाया जा रहा है। हमारे यहां अभी भी किताबों पर ही जोर दिया जा रहा है, जबकि लर्निंग कटेंट मैनजमेंट सिस्टम में 10 ऑप्शन मौजूद होना चाहिए। एजुकेशन सिस्टम को रिसर्च बेस्ड बनाना होगा।

एनआईटीटीटीआर देशभर के टीचर्स को ट्रेनिंग देगा...

एनआईटीटीटीआर के प्रो. पीयूष वर्मा ने कहा कि संस्थान देशभर के फैकल्टीज को ट्रेनिंग देगा कि वे सिलेबस को किस तरह पढ़ाए और प्रैक्टिकल किस तरह कराएं। टीचर्स को अब टीचर एजुकेटर्स के रूप में स्थापित करना है। यही वजह है कि वोकेशलाइजेशन ऑफ हायर एजुकेशऩ पर चर्चा का आयोजन किया गया है। स्टूडेंट्स पढऩा चाहते हैं लेकिन अब सिर्फ किताबों से उन्हें पढा़ देना काफी नहीं। अब डिजिटल मीडियम का इस्तेमाल करके पढ़ाना होगा ताकि पढ़ाई रोचक बने। इस दिशा में संस्थान ने नीड एनालिसिस किया है और उसे आधार पर तकनीकी और प्रबंधन के विषय का कंटेंट भी तैयार किया जा रहा है।