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सागौन को खा रहे डिफॉलिएटर और स्केलेटनाइजर कीट

पत्तों के नष्ट होने से सागौन के पेड़ों की वृद्धि हो रही प्रभावित

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सागौन को खा रहे डिफॉलिएटर और स्केलेटनाइजर कीट

सागौन को खा रहे डिफॉलिएटर और स्केलेटनाइजर कीट

भोपाल. देश में गुणवत्ता के लिए उत्तम मानी जाने वाली सागौन को बचाने की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है। सागौन के पत्तों को दो तरह के कीट चट कर रहे हैं, जिससे पेड़ों को भोजन नहीं मिल पा रहा है और उनकी वृद्धि प्रभावित हो रही है। बड़े पेड़ों पर कीट का हमला और छोटे पर फंगस अटैक से काफी पौधों ने दम तोड़ दिया। इस बारे में वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पेड़ों को बचाने के लिए उन्हें कोई अलग से फंड नहीं दिया जाता।

एसएफआरआइ, जबलपुर में इन कीटों को खत्म करने के लिए एक कीट विकसित किया गया था, लेकिन उसका उत्पादन बहुत कम होने से कहीं-कहीं बहुत छोटे क्षेत्र में ही इसका प्रयोग किया गया। मध्यप्रदेश के सागौन की लकड़ी अपनी गुणवत्ता के लिए पूरे देश में उत्तम मानी जाती है। प्रदेश के वनों में लगे सागौन की लकड़ी को खरीदने गुजरात और महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में व्यापारी आते हैं, जिससे शासन को काफी राजस्व मिलता है।

भोपाल के 60 हजार हेक्टेयर या 600 वर्ग किमी वन क्षेत्र में सागौन के पेड़ हैं। इसके सिवा रातापानी सेंक्चुरी, सीहोर, रायसेन, हरदा समेत पूरे प्रदेश में सागौन पाया जाता है। पूर्व वन अधिकारी डॉ. सुदेश बाघमारे का कहना है कि सागौन के पेड़ों पर डिफॉलिएटर गु्रप के कीट का हमला हुआ है। यह कीट सागौन की वृद्धि प्रभावित करता है। इस कीड़े का जीवन चार महीने का होता है। सागौन सर्दियों में पतझड़ हो जाता है और नए पत्ते आ जाते हैं। वन और वनस्पति विज्ञान के जानकारों का कहना है कि सागौन के पेड़ों पर कीट का हमला अगस्त-सितंबर में होता है।

टीक डिफॉलिएटर कीट सागौन के पत्तों को पूरा चट कर जाता है, जबकि टीक स्केलिटिनाइजर कीट सागौन के पत्तों का हरा भाग खा जाता है और जाली बचती है। इससे सागौन के पेड़ को भोजन नहीं मिल पाता और पेड़ की एक वर्ष में होने वाली वृद्धि आधी रह जाती है। इस समस्या पर बायोलॉजिकल कंट्रोल के लिए एसएफआरआइ (स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट) जबलपुर में एक ऐसा कीट तैयार किया गया था, जो इन कीटों को खाकर खत्म कर देता। यह योजना धरातल पर नहीं आ सकी।

बीमार बता काटे गए सवा लाख से अधिक पेड़
वनक्षेत्र में रहने वाले लोगों ने बताया कि बारिस के बाद सागौन के पेड़ों पर कीट व फंगस अटैक हुआ है। फंगस जनित इस खतरनाक बीमारी से निपटने के लिए वैज्ञानिक नई तरकीब ईजाद नहीं कर सके, जिससे सागौन के काफी पौधे मर रहे हैं। बारिश के बाद इस बीमारी में तेजी आती है और पत्तों में फंगस लग जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बंद हो जाती है और आहार ना मिलने पर पौधा मर जाता है।

जानकारों का कहना है कि सागौन के पत्ते में रोग लगने पर उसका असर तने पर भी पड़ता है, जिससे तने आड़े तिरछे हो जाते हैं। बता दें कि 2012 में मप्र ने केन्द्र से बीमार पेड़ों को काटकर नया वन विकसित करने की परमिशन ली थी इसमें 28 हजार पेड़ सागौन के काट दिए थे।

वन्यजीव आ सकते हैं निशाने पर
सारस-मगरपाट रातापानी अभयारण्य के पास वनग्राम है। यहां करीब एक दर्जन गांव हैं, जहां बाघों का मूवमेंट रहता है। कई अन्य वन्यजीवों का भी विचरण है। बाघ इसी रास्ते से कोलार बांध में पानी पीने के लिए आवागमन करते हैं। ये गांव टाइगर कॉरिडोर का हिस्सा है। सभी गांव वीरपुर फॉरेस्ट रेंज में हैं। जानकारों का कहना है कि सागौन के पत्ते नष्ट होने से दूर तक दिखाई देता है, इससे वन्यजीवों पर शिकारी दूर से निशाना लगा सकते हैं।

हम वन क्षेत्र में पेड़ों को कटने से बचाते हैं। बीमारी से बचाने के लिए हमारे पास कोई फंड नहीं होता। एसएफआरआइ, जबलपुर में इस सागौन पर रिसर्च हुआ है, वहां से जानकारी मिल सकती है।
एके सिंह, डीएफओ, रातापानी सेंक्चुरी