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क्या बिसेन का किला ढहा पाएगी कांग्रेस? जानें कहां फंस रहा है पेंच

- बालाघाट की इन दो विधान सभाओं का बदल सकता है राजनैतिक परिदृष्य

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मध्य प्रदेश में जल्द ही होने वाले विधानसभा चुनाव 2023 को देखते हुए प्रदेश की दोनों पार्टियां इन दिनों अलर्ट पर हैं और लगातार अपनी तैयारियों में जुटी हुईं हैं। इन्हीं सब के बीच कांग्रेस की ओर से अपनाई जा रही रणनीति जिसके तहत वह भाजपा को उन्हीं के गढों में घेरने की तैयारी कर रही है। ऐेसे में अभी तक जहां कांग्रेस की ओर से सिंधिया को घेरने की खबरें सामने आ रहीं थीं।

वहीं अब कांग्रेस की ओर से एक बडा दांव भाजपा के प्रमुख गढ बालाघाट को लेकर चला गया है। ज्ञात हो कि बालाघाट की राजनीति में पूर्व मंत्री गौरी शंकर बिसेन का विशेष कद है, यहीं नहीं बालाघाट को गौरी शंकर बिसेन का अभेद किला तक कहा जाता है, कारण ये है कि वे यहां लंबे समय से जीत दर्ज कराते आ रहे हैं। वहीं इनकी जीत को रोकने के लिए कांग्रेस की ओर से एक बडा दांव चलते हुए पूर्व सांसद कंकर मुजारे की पत्नी अनुभा मुंजारे को कांग्रेस अपने पाले में ले आई है। ऐसे में ये सवाल उठने शुरु हो गए हैं कि क्या कांग्रेस बिसेन का ये किला ढहा पाएगी।

आसान नहीं होगी अनुभा से टक्कर
ज्ञात हो कि मुंजारे परिवार का भी बालाघाट की राजनीति में विशेष महत्व है, ऐसे में पूर्व सांसद कंकर मुंजारे की पत्नी का कांग्रेस में आना कांग्रेस को बालाघाट में विशेष लाभ प्रदान कर सकता है। यहां ये बता दें कि बालाघाट में जहां बिसेन को पंवार समुदाय का तो वहीं मुंजारे को लोधी समाज का विशेष समर्थन माना जाता है। यहां ये भी बता दें कि साल 2018 में अनुभा मुंजारे- गौरी शंकर बिसेन से करीब 2500 मतों से ही पराजित हुईं थीं। इससे पहले अनुभा बालाघाट नगर पालिका की अध्यक्ष भी रह चुकीं हैं।

ऐसे समझें पूरा गणित
दरअसल बालाघाट विधानसभा में कुल 2,26,674 वोटर्स हैं, वहीं जातिय स्थिति की बात करें तो यहां करीब 33 पंवार, 18 प्रतिशत लोधी,7-7 प्रतिशत महार व मरार, 5-5 प्रतिशत दलित व मुस्लिम जबकि 25 प्रतिशत अन्य वोटर्स हैं। ऐसे में वोट का गणित भाजपा को दुविधा में डाल सकता है। जानकारों की मानें तो यहां चुनाव 2023 में यदि भाजपा गौरी शंकर बिसेन को खड़ा करती है तो टक्कर कांटे की होना संभव है। कारण ये है कि बिसेन परिवार का यहां राजनीति में खास दबदबा है। ऐसे में हर किसी के मन में ये सवाल कौंधना शुरु हो गया है कि क्या इस बार कांग्रेस बिसेन के किले को ढहाने में सफल रह पाएगी?

बालाघाट जिले की एक अन्य सीट को ऐसे समझें
वहीं दूसरी ओर इस बार जिले की हॉट सीट माने जाने वाली वारासिवनी-खैरलांजी विधानसभा सीट का भी इस बार परिदृष्य कुछ बदलता दिख रहा है। दरअसल पिछली चार बार से इस सीट पर प्रदीप जायसवाल लगातार जीत दर्ज करा रहे हैं। वहीं इस बार यहां भी राजनीतिक कश्मकश की स्थिति बनी हुई है। कारण ये है कि कांग्रेस से तीन बार विधायक रहे प्रदीप जायसवाल ने गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से रिश्ते तोड़कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 4थी बार जीत दर्ज की थी। उस समय इनकी जीत का मुख्य कारण भाजपा से जनता की नाराजगी और कांग्रेस से आयातित उम्मीदवार का होना बताया गया था।

भाजपा और जायसवाल ?
ज्ञात हो कि निर्दलीय तौर पर विधायक बनने के बाद प्रदीप जायसवाल ने पहले कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को समर्थन देकर खनिज मंत्री बने लेकिन इसके बाद कांग्रेस की सरकार गिरने पर वह भाजपा को समर्थन देकर खनिज निगम के अध्यक्ष बन गए। वहीं इस बार जायसवाल पहले से ही भाजपा के करीब दिखाई पड़ रहे हैं, जिसके चलते कहा जाता है कि उन्होंने भाजपा में प्रवेश की कई बार कोशिशें भी की, लेकिन स्थानीय भाजपा नेताओं का विरोध उनके भाजपा में प्रवेश पर भारी पडा। इस दौरान स्थानीय नेताओं से वाद-विवाद की स्थिति भी बनती रही। वहीं पिछले दिनों ओबीसी आयोग अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन और वरिष्ठ भाजपा नेता राजेश पाठक से आंतरिक विवाद खुलेआम सड़कों पर उतर आया जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना।

कांग्रेस में नो-एंट्री
ऐसी स्थिति में निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल का भाजपा में प्रवेश जहां मुश्किल दिखाई दे रहा है, वहीं कांग्रेस में उनकी फिर से घरवापसी नामुमकिन सी मानी जा रही है। राजनीतिक सूत्रों की माने तो इस बार कांग्रेस अपना उम्मीदवार पूर्व सांसद बोधसिंह भगत को बना सकती है। वहीं हाल के दिन में बोधसिंह भगत कमलनाथ के करीब आ गए हैं और कमलनाथ भी बोधसिंह भगत को वारासिवनी-खैरलांजी विधानसभा सीट से बिना शर्त टिकट देने तैयार दिख रहे हैं।

इस स्थिति को देखते हुए जानकारों का मानना है कि भाजपा जहां इस चुनाव में अपने स्थानीय नेता को ही टिकट देगी, वहीं कांग्रेस भी पूर्व सांसद बोधसिंह भगत को उम्मीदवार बनाकर प्रदीप जायसवाल के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। ऐसी स्थिति में निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल की इस बार चुनावी वैतरणीय पार करना आसान दिखाई नहीं दे रहा है। कारण ये है कि यहां भाजपा तो मजबूत है ही वहीं कांग्रेस भी स्थानीय मजबूत उम्मीदवार पर दांव लगाने की तैयारी में दिख रही है।

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