
भाषा के प्रति मन में जगाना होगा स्वाभिमान का भाव
भोपाल। साहित्य ही समाज को रास्ता सुझा सकता है। सार्थक साहित्य वही है जो समाज को दिशा दे सके। तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना तब की थी जब समाज को उसकी आवश्यकता थी। आज तुलसी के मानस जैसी रचना विश्व के किसी साहित्य में नहीं है। उन्होंने भाषा के मुद्दे पर कहा कि हमें हमारी भाषा के प्रति स्वाभिमान का भाव जगाना होगा तभी हम उसे देश के बाहर सम्मानजनक स्थान दिला सकते हैं।
यह बात पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने हिन्दी भवन में मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के रजत जयंति पावस व्याख्यानमाला के समापन अवसर पर कही। वे मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। समापन सत्र की अध्यक्षता साहित्यकार प्रो. मोहन गुप्त ने की। तीन दिवसीय इस आयोजन में सात सत्रों में विभिन्न समसामयिक साहित्यिक विषयों पर विचार विनिमय हुआ, जिसमेें 40 से अधिक विद्वानों ने वैचारिक भागीदारी की।
प्रो. गुप्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस व्याख्यानमाला में भाषा, बोली और साहित्य के भविष्य और चुनौतियों जैसे विषयों पर चर्चा हुई, जो भावी पीढ़ी के लिए सार्थक होगी।
समिति के मंत्री संचालक कैलाशचंद्र पंत ने बताया कि हम साहित्य की नई-नई धाराओं, पूर्वजों के अवदान तथा साहित्यिक परंपराओं पर केवल विचार ही नहींं करते हैं बल्कि इनका दस्तावेजीकरण भी करते हैं ताकि नई पीढ़ी के शोधार्थी और शिक्षक इसका लाभ उठा सकें। इस अवसर पर डॉ. जवाहर कर्नावट के संकलन सौ वर्ष की विश्व पत्र-पत्रिकाएं, डॉ. मीनाक्षी जोशी की किताब मन-मंथन का लोकार्पण किया गया।
जटायु की भूमिका निभाएं साहित्यकार
इससे पहले सुबह दो सत्रों में राजनीतिक समय में सृजन की चुनौती तथा स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य की प्रेरक उपलब्धियां विषय पर विमर्श हुआ। पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेन्द्र दीपक ने कहा कि साहित्य की राजनीति और राजनीति का साहित्य दोनों ही घातक हैं। साहित्यकार जटायु की तरह रास्ता दिखाने की भूमिका निभाएं। दूसरे सत्र में स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य की प्रेरक उपलब्धियां विषय पर प्रो. शंकर शरण की अध्यक्षता में कृष्णचंद्र गोस्वामी, डॉ. श्रीराम परिहार, डीएन प्रसाद तथा स्मृति शुक्ला ने भी अपने विचार रखे।
Published on:
30 Jul 2018 07:59 am
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