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भोपाल गैस कांड में चली गई थी इस गायिका की आवाज, दिलीप कुमार और जैकी श्राफ भी थे दिवाने

हिन्दुस्तान ही नहीं इंग्लैंड, अफ्रीका और कुवैत में आज भी इस महिला कव्वाल के दिवाने हैं। आवाज भी इतनी दमदार कि दिलीप कुमार से लेकर...।

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भोपाल

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Manish Geete

Dec 16, 2017

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भोपाल। हिन्दुस्तान ही नहीं इंग्लैंड, अफ्रीका और कुवैत में आज भी इस महिला कव्वाल के दिवाने हैं। आवाज भी इतनी दमदार कि दिलीप कुमार से लेकर जैकी श्राफ भी सुनने दौड़ पड़ते थे। इन्हें ही देश की पहली महिला कव्वाल का खिताब मिला हुआ है।

हम बात कर रहे हैं शकीला बानो भोपाली की, जिन्होंने भोपाल को अलग पहचान दिलाई। हिन्दुस्तान ही नहीं इनके कव्वाली के दिवाने लोग आज भी हैं।


mp.patrika.com आपको बताने जा रहा है देश की पहली महिला कव्वाल के बारे में, जिनकी बदौलत आज कव्वाली के शौकीन लोग भोपाल को जानते हैं।

शकीला का जन्म 1942 में और मृत्यु 16 दिसंबर 2002 में हुई थी। सारी जिंदगी भोपाल में रहने वाली शकीला की आवाज इतने चर्चित हो गई थी कि वे इंग्लैंड, अफ्रीका और कुवैत में कव्वाली मुकाबलों में जाने लगी। इसके साथ ही बॉलीवुड में भी इन्हें हाथों हाथ लिया जाने लगा।

गैस कांड में हो गई थी 'मौत'
शकीला बानो की कव्वाली के दिवाने लोग कहते हैं कि भले ही उनका निधन 16 दिसंबर 2002 को हुआ है, लेकिन वो तो पहले ही खत्म हो चुकी थी। 2-3 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस कांड में गैस का दर्ज झेलने वाली शकीला की आवाज चले गई थी। जब शकीला की आवाज दुनियाभर में सुनी जा रही थी उसी दौर में किसी गायक की आवाज छिन जाए, इसका दर्ज शायद ही कोई महसूस कर सकता है।


बेबाक अंदाज वाली महिला थी
उस दौर में एक मुस्लिम महिला का बाहर निकला तो दूर मंच पर आकर कव्वाली करना लोगों को हैरान करता था, लेकिन शकीला ने अपने बेबाक अंदाज और दबंग व्यक्तित्व के कारण अपनी अलग ही धाक बनाई। काफ़ी लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्में और स्टेज पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर मिला था। शकीला बानो ने कभी विवाह नहीं किया। उनके परिवार में एक बहन और एक भाई हैं। उनके साथ बाबू कव्वाल के साथ उनकी जोड़ आज भी जानी जाती है। दोनों के बीच होने वाला मुकाबला दर्शकों को बांधे रखता था।

जब बॉलीवुड ने हाथों हाथ लिया
50 के दशक में शकीला बॉलीवुड के संपर्क में आ गई। उस जमाने के सुपर स्टार दिलीप कुमार भी शकीला के फैन हो गए। वे जब दिलीप कुमार के बुलावे पर मुंबई पहुंची तो कव्वाली के शौकीन लोगों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। इसके बाद फिल्मों में भी उनकी आवाज का जादू चला। 1957 में निर्माता जगमोहन मट्टू ने अपनी फ़िल्म 'जागीर' में एक्टिंग करने का मौका दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका मिलती रही। HMV कंपनी ने 1971 में उनकी कव्वाली का पहला एलबम बनाया तो पूरे भारत में शकीला बानो पहचानी जाने लगीं।

जैकी श्राफ ने की मदद
गैस कांड में आवाज छिन जाने के बाद शकीला अक्सर बीमार रहने लगी थी। उन्हें दमे, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर रहने लगा था। जब उनका अंतिम दौर अभाव में गुजर रहा था, तब जैकी श्राफ जैसे कुछ कलाकार उनकी मदद के लिए आगे आए, लेकिन वो मदद भी काफी नहीं थी। इसके बाद शकीला ने अपना सबकुछ भाग्य पर छोड़ दिया था। उनके इन हालातों पर उन्हीं की एक मशहूर कव्वाली सटीक बैठती है।

"अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे ज़हर दे या जाम दे..."