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ध्रुपद गायन : तनाव व दौड़-धूप भरी जिंदगी में देता है शांति

ध्रुपद गाने वाले को मेडिटेशन की जरूरत नहीं...

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ध्रुपद

भोपाल. जहां ध्रुपद गाया जाता है, वह जगह अपने आप मंदिर हो जाती है। ध्रुपद गाने वाले को मेडिटेशन की जरूरत नहीं पड़ती। ध्रुपद भगवान कृष्ण व शिव को समर्पित संगीत की आध्यात्मिक विधा है, जिससे तनाव व दौड़-धूप भरी जिंदगी में शांति मिलती है। मेडिटेशनल थेरेपी होने के कारण इसे नादयोग भी कहा जाता है। यह कहना है इंटरनेशनल स्तर के ग्रेडप्राप्त ध्रुपद आर्टिस्ट योगेश-मुकेश का...

ध्रुपद के डागर घराने से तआल्लुक रखने वाले गुंदेजा बंधु के शिष्य व सुभाष नगर निवासी योगेश-मुकेश ने करते हुए इससे जुड़ी कई बातों को पत्रिका से साझा किया।

ध्रुपद गायकी का आगाज स्वामी हरिदास के समय से माना जाता है। स्वामी हरिदास भगवान कृष्ण के भक्त थे और मंदिर में भगवान के लिए ध्रुपद में पद गाते थे। ध्रुपद के अधिकांश पद ब्रजभाषा में हैं। ध्रुपद में 12 मात्रा का चौताल, 14 मात्रा का ध्रुपद धमार व 10 मात्रा का धु्रपद शूलताल कहा जाता है। धमार बहुत भावपूर्ण होता है और होली गायी जाती है। सकल ब्रज धूम मची, होली खेलत नंदलाल... या आज ब्रज में उड़त गुलाल, गोपी संग होली खेलत नंदलाल। ये धमार में है।

ध्रुपद गायकी संगीत की सबसे प्राचीन व कठिन विधा मानी जाती है। इसके बाद ख्याल, टप्पा, ठुमरी व सुगम संगीत आए। इसके अलावा लोक गायकी में चैती व कजरी का भी बहुत महत्व है। धु्रपद गायन को स्थायी, अंतरा, संचारी व आभोग नाम के चार भागों में बांटा गया है।

इसमें स्वर ठहरे हुए होते हैं, जिससे रागों की शुद्धता कायम रहती है। आज का ध्रुपद आलाप प्रधान हो गया है। एक घंटे के ध्रुपद में 40 मिनट तो आलाप के होते हैं। इसमें लयकारी का सबसे बड़ा महत्व होता है। लयकारी सबसे कठिन है, इसी में ध्रुपद का मजा भी है। एक ताल से 24-25 तक ले जाकर वापस एक ताल पर आना पड़ता है।

8 घंटों तक करते थे रियाज
योगेश-मुकेश ने बताया कि उनके पिताजी शिक्षा विभाग में थे और संगीत के जानकार थे। बहुत छोटी उम्र से ही उन्होंने संगीत सीखना शुरू किया था। पढ़ाई में अव्वल रहने वाले दोनों बंधुओं के पास म्यूजिक, लॉ समेत कई उच्च शिक्षा की कई डिग्रियां हैं।

उन्होंने खैरागढ़ यूनिवर्सिटी से संगीत की शिक्षा ली और ध्रुपद गायन उज्जैन के गुंदेजा बंधुओं से सीखा। संगीत के प्रति उनका समर्पण इतना था कि रोजाना पढ़ाई व अन्य कामों के साथ 8-8 घंटे तक रियाज करते थे। खरज का रियाज सुबह चार बजे उठकर करते थे। जहां योगेश बीस वर्षों तक एक शीर्ष हिंदी दैनिक में न्यूज एडिटर रहे, वहीं मुकेश ने मेडिटेशन टीचिंग की।

आकाशवाणी डायरेक्टर पहुंचे थे रिकॉर्ड करने
योगेश-मुकेश संगीत की शिक्षा में भी टॉपर रहे हैं। जब योगेश ने खैरागढ़ संगीत विवि के नरसिंहगढ़ कॉलेज में टॉप किया था, तब तत्कालीन आकाशवाणी डायरेक्टर उनका प्रोग्राम रिकॉर्ड करने स्वयं वहां गए थे और युगवाणी के लिए एक घंटे का प्रोग्राम प्रसारित किया गया था।


रागों की अनुभूति भी
योगेश-मुकेश बंधुओं ने रागों की तासीर को स्वयं भी महसूस किया। उन्होंने बताया कि भीषण सर्दी में भी राग दीपक से उन्हें पसीना छूट जाता था और गर्मी में राग मल्हार सुनकर ठंडक का अहसास होता था। गर्मी से राहत पाने के लिए उन्होंने तीन वर्षों तक राग मल्हार सुना।

प्रमुख फेलोशिप
- वर्ष 2005 से 2010 तक यूएसए की प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय स्कॉलरशिप
- वर्ष 2005 से 2009 तक दक्षिण-मध्य सांस्कृतिक केन्द्र, नागपुर (सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार) की स्कॉलरशिप
- वर्ष 2010 से 2014 तक टाटा फाउंडेशन, मुंबई से स्कॉलरशिप


ये प्रस्तुतियां रहीं खास
- भारत भवन, भोपाल
- गणतंत्र दिवस समारोह, नई दिल्ली
- स्वामी हरिदास फेस्टिवल, वृन्दावन, यूपी
- जंगमवाणी, बनारस, यूपी
- ध्रुपद उत्सव, भारत भवन, भोपाल
- रामकृष्ण मिशन, मुंबई व भोपाल
- कांदीवली फेस्टिवल, मुंबई
- स्वतंत्रता दिवस समारोह, शिमला
- नदी महोत्सव, महेश्वर, एमपी
- सिंहस्थ 2016, उज्जैन, एमपी
- आकाशवाणी के ग्रेडप्राप्त आर्टिस्ट
(पूरे विश्व में मान्यता)