फेफड़ों की टीबी जरा सी लापरवाही से लेती है चपेट में
- एक से कई अन्य में टीबी फैलने के अभी भी सामने आते है मामले

दिनेश स्वामी-
बीकानेर.फेफड़ों की डीआर टीबी के किटाणू से जो भी सम्पर्क में आता है उसे भी डीआर टीबी (दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया) हो जाती है। एेसा भी नहीं है कि टीबी यानि क्षय रोग गरीब और कच्ची बस्तियों के लो चपेट में आते हैं। बल्कि ऑफिस में पब्लिक डिलिंग का काम करने वाले कार्मिक भी लापरवाही से चपेट में आ सकते हैं। एेसे में कोरोनाकाल के इस समय मास्क पहनने और सेनेटाइजर के उपयोग से कोरोना संक्रमण से तो बचाव होता ही है। साथ ही टीबी जैसी गंभीर बीमारी से भी बचाव होता है।
सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध टीबी अस्पताल और पीबीएम के श्वास रोग विभाग में आने वाले मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री खंगालने पर एेसे तथ्य सामने आए हैं। वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. गुंजन सोनी के अनुसार कोरोना काल में संक्रमण रोकने के उपायों से टीबी के फैलाव में कमी जरूर आई है। परन्तु अभी भी एेसे मामले सामने आते रहते हैं जिनमें एक टीबी पीडि़त से दूसरा या तीसरा चपेट में आया होता है। बीते कुछ सालों में टीबी को लेकर लोगों की सोच में बदलाव आया है।
आंकड़ों में टीबी
प्रदेश में 2020 में टीबी केस - 1,25,109
बीकानेर में 2020 में टीबी केस - 2240
बीकानेर में 2020 में डीआर टीबी - 174
बीकानेर में 2019 में डीआर टीबी- 182
85 फीसदी फेफड़ों की टीबी के मरीज
अभी क्षेत्र में सामने आ रहे टीबी मरीजों में 85 फीसदी फेफड़ों की टीबी के मरीज है। शेष 15 फीसदी अन्य प्रकार की टीबी के मरीज होते है। इनमें ड्रग सेंसिटिव टीबी (डीएस टीबी) के मरीज 10 फीसदी होते हैं। यानि इन पर दवाओं का पूरा असर होता है। जबकि दस फीसदी मरीज ड्रग रेसिस्टेंट (डीआर टीबी) के आ रहे हैं।
ड्रग सेंसिटिव का ड्रग रेसिस्टेंट में बदलने का यह कारण
- मरीज का टीबी की दवाइयों का बीच में छोड़ देना।
- किसी डीआर टीबी पीडि़त से किटाणु का शरीर में आने।
- डायबिटीज, कैंसर, एचआइवी पीडि़त के टीबी होना।
- टीबी की शुरुआती अवस्था में गंभीरता से लेकर जांच नहीं कराना।
- टीबी होने पर नीम-हकीमों और झाड़-फूंक के चक्कर में पड़े रहना।
केस स्टडी-एक
सिविल लाइन में एक संकरी घर में रहने वाले परिवार के एक सदस्य को फेफड़ों की डीआर टीबी हुई। टीबी अस्पताल में उपचार शुरू होने के साथ ही उसे बलगम आदि को खुले में नहीं छोडऩे, परिवार के अन्य सदस्यों से कुछ समय दूरी बनाकर रखने जैसे उपाय सुझाए गए। परन्तु इस टीबी संक्रमित ने लापरवाही बरती और उसके परिवार के छह सदस्य भी डीआर टीबी की चपेट में आ गए।
केस स्टडी-दो
बैंक में काम करने वाली युवती यहां बीकानेर में अकेली रहती है। उसे लम्बे समय तक खांसी रही तो टीबी अस्पताल में जांच कराई। जांच में उसके टीबी पीडि़त होना पाया गया। युवती से काउंसलिंग में चिकित्सक को पता चला कि उसके बैंक में कोरोनाकाल में सहकर्मी कोरोना पॉजिटिव हुए थे। तब वह मास्क आदि का पूरी तरह उपयोग करते रहने से कोरोना से बच गई। परंतु अब वह किसी एेसे बैंक उपभोक्ता की चपेट में आ गई जो टीबी पीडि़त था।
केस स्टडी-तीन
कोरोनाकाल में टीबी के फैलाव में कमी आई। इसका बड़ा कारण लोगों का स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना, मास्क का उपयोग, हाथ सेनेटाइज करना और साफ-सफाई पर ध्यान देना रहा। परन्तु टीबी के सामान्य रोगियों में जितनी कमी आई उतनी कमी डीआर टीबी के रोगियों में नहीं आई। यानि आज भी डीआर टीबी से मुक्ति पाना चुनौती बनी हुई है।
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