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Bikaner: देश के नक्शे में हैं, रेल के नहीं; 78 साल बाद भी लोगों का एक ही सवाल, कब बजेगी रेल की सीटी?

बीकानेर। आजादी के 78 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन भारत-पाक सीमा से सटे राजस्थान के अनूपगढ़ से बीकानेर वाया छत्तरगढ़ प्रस्तावित रेल मार्ग दशकों से सिर्फ फाइलों, सर्वे और आश्वासनों में सिमटा हुआ है। यह वही अधूरा सपना है, जो कभी दादा ने देखा था और आज वही सपना पोता भी देख रहा है।

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अनूपगढ़-बीकानेर वाया छत्तरगढ़ रेल प्रोजेक्ट शुरू होने का इंतजार, पत्रिका फाइल फोटो

अनूपगढ़-बीकानेर वाया छत्तरगढ़ रेल प्रोजेक्ट शुरू होने का इंतजार, पत्रिका फाइल फोटो

बीकानेर। आजादी के 78 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन भारत-पाक सीमा से सटे राजस्थान के सैकड़ों गांव आज भी रेल की सीटी सुनने को तरस रहे हैं। देश और प्रदेश के नक्शे में दर्ज यह इलाका अब तक भारतीय रेल के नक्शे से बाहर है। अनूपगढ़ से बीकानेर वाया छत्तरगढ़ प्रस्तावित रेल मार्ग दशकों से सिर्फ फाइलों, सर्वे और आश्वासनों में सिमटा हुआ है। यह वही अधूरा सपना है, जो कभी दादा ने देखा था और आज वही सपना पोता भी देख रहा है।

एक इंच भी नहीं बढ़ी उम्मीद

कांग्रेस शासन से लेकर भाजपा सरकार तक अनूपगढ़-बीकानेर रेल लाइन की मांग हर दौर में उठी, लेकिन हकीकत यह है कि आज तक एक इंच पटरी भी नहीं बिछी। रेलवे की ओर से 2009-10, 2012 और 2024 में तीन बार सर्वे कराए गए, डीपीआर भी तैयार हुई, लेकिन परियोजना अब तक जमीन पर नहीं उतर पाई।

डीपीआर तैयार, फिर भी बजट से बाहर

इस प्रस्तावित रेल मार्ग की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) के अनुसार करीब 155 किलोमीटर रेल लाइन बिछाई जानी है, जिसकी लागत एक हजार करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई है। प्रस्तावित मार्ग अनूपगढ़, सतराना, घड़साना, रोजड़ी, रावला, छत्तरगढ़, खाजूवाला, सतासर, मोतीगढ़, लाखूसर, बदरासर, शोभासर होते हुए लालगढ़ तक जाता है। इसके बावजूद बजट स्वीकृति के अभाव में यह परियोजना वर्षों से अटकी पड़ी है।

सामरिक दृष्टि से अहम, फिर भी उपेक्षित

जानकारों का कहना है कि यह रेल मार्ग केवल विकास नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है। भारत-पाक सीमा से सटे सैन्य क्षेत्रों से गुजरने वाला यह मार्ग सेना की आवाजाही, आपूर्ति और रणनीतिक मजबूती के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके बावजूद यह परियोजना प्राथमिकता सूची से बाहर है।

पीढ़ियां बदल गईं, इंतजार नहीं बदला

इस क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि कांग्रेस शासन में सांसद मनफूलराम भादू के कार्यकाल के दौरान उनके दादा-पिता ने रेल लाइन का सपना देखा था। आज भाजपा सरकार में सांसद व केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के कार्यकाल में वही सपना पोते भी देख रहे हैं। घड़साना, छत्तरगढ़, रोजड़ी सहित दर्जनों गांव आज भी रेल सुविधा से वंचित हैं।

कृषि, व्यापार और रोजगार सब पर असर

रेल कनेक्टिविटी के अभाव में इस सीमावर्ती क्षेत्र की कृषि उपज की ढुलाई महंगी पड़ती है। साथ ही व्यापारिक गतिविधियां सीमित हुई हैं और रोजगार के अवसर सिमटे हुए हैं। विकास की दौड़ में यह इलाका दशकों पीछे छूटता जा रहा है।

कृषि, व्यापार और रोजगार सब पर असर

रेल कनेक्टिविटी के अभाव में इस सीमावर्ती क्षेत्र की कृषि उपज की ढुलाई महंगी पड़ती है। साथ ही व्यापारिक गतिविधियां सीमित हुई हैं और रोजगार के अवसर सिमटे हुए हैं। विकास की दौड़ में यह इलाका दशकों पीछे छूटता जा रहा है।

2026-27 बजट से फिर उम्मीद

रेल विकास समिति और क्षेत्रवासियों को उम्मीद है कि 2026-27 के केंद्रीय बजट में इस रेल परियोजना को स्थान मिलेगा। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के प्रयासों से उम्मीद जगी है कि यह रेल लाइन केवल घोषणा नहीं, बल्कि हकीकत बनेगी।