व्यास कॉलोनी क्षेत्र में रहने वाली 75 वर्षीय पुस्तक प्रेमी चंदा पारीक ने पिछले पांच दशक में खरीदी पुस्तकों से ऐसी अनूठी पहल शुरू की है, जो दूसरों के लिए भी अनुकरणीय हो सकती है। पारीक ने सैकड़ों की संख्या में धर्म, भाषा आध्यात्म , देशभक्ति ,कहानी -कथा आदि विषयों पर खरीदी पुस्तकों की छंटनी करके लोगों तक पहुंचाया, जो पढ़ने के शौकीन थे।
बीकानेर. पुस्तक प्रेमियों के लिए स्थिति बहुत ही निराशापूर्ण और कष्टप्रद हो जाती है, जब परिवार अथवा आसपास इस परंपरा को आगे बढ़ने वाला कोई नहीं होता। लिहाजा, अलग-अलग विषयों पर खरीदी गई पुस्तकों के साथ रद्दी कागज सा बर्ताव होने लगता है। इस चिंता से मुक्ति पाने के लिए व्यास कॉलोनी क्षेत्र में रहने वाली 75 वर्षीय पुस्तक प्रेमी चंदा पारीक ने पिछले पांच दशक में खरीदी पुस्तकों से ऐसी अनूठी पहल शुरू की है, जो दूसरों के लिए भी अनुकरणीय हो सकती है। पारीक ने सैकड़ों की संख्या में धर्म, भाषा आध्यात्म , देशभक्ति ,कहानी -कथा आदि विषयों पर खरीदी पुस्तकों की छंटनी की।
मंदिरों-वाचनालयों समेत पात्र व्यक्तियों तक पहुंचाईं पुस्तकें
उन्होंने इसी तरह की रुचि रखने वाले कुछ लोगों का सहयोग लिया और उन पुस्तकों को मंदिरों और सार्वजनिक स्थान, वाचनालयों आदि तक, जहां पर बैठकर लोग स्वाध्याय कर सकें, वहां पर पहुंचाई। पारीक ने उदयरामसर रोड पर स्थित गणेश धोरा , हनुमान मंदिर , सुजानदेसर स्थित काली माता मंदिर ,किसमीदेसर के महादेव मंदिर ,करणी माता मंदिर ,गंगाशहर आदि स्थानों पर अलग-अलग विषयों की पुस्तकों एवं पत्रिकाओं के सेट बनाकर भेजे। उन्होंने जैन धर्म के तीर्थंकरों एवं आचार्यों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित पुस्तकों को भीनासर के तेरापंथ भवन में भिजवाया।
50 साल से संजो रही थीं यह खजाना
पारीक ने बताया कि पिछले 50 वर्ष में जहां कहीं भी जाती, अन्य चीजों की बजाय नई पुस्तक खरीदने में ज्यादा रुचि रहती थी। यही कारण रहा कि घर में पुस्तकों का ढेर लग गया। जिन किताबों को खरीदने से पहले कितनी बार पन्ने पलटे , कितनी बार सोचा, वह अब अलमारी और बक्से में बंद पड़ी थीं। आखिरकार इन किताबों को रद्दी में देना उनसे गवारा नहीं हुआ और उन्होंने इनको पात्र व्यक्तियों तक पहुंचाने का निश्चय किया। अपने मन की बात उन्होंने कुछ लोगों के सामने रखी और उनसे सहयोग भी मिला और कारवां चल पड़ा। अब उनकी अलमारी से पुस्तकें भले ही खाली हो गईं हैं, लेकिन उनकी आत्मा संतृप्त है।
लोग सराह रहे पहल, औरों के लिए प्रेरणा
काली माता मंदिर के ट्रस्टी लक्ष्मी नारायण गहलोत , पुजारी ताराचन्द , भक्त अशोक ने बताया कि मंदिर में कई ऐसे देवी भक्त आते हैं, जो तीन-चार घंटे यहां बिताते हैं। किताबें आने के बाद वे रुचि से पढ़ते हैं और उनको किताबे पढ़ना अच्छा भी लगता है। यहां से किताब कोई घर ले जाना चाहे, तो ले भी जा सकता है । भीनासर के विमल बैद कहते हैं कि किताबों से इस तरह का लगाव बहुत कम लोगों में देखा जाता है। सामान्यतः पढ़ने के बाद किताब की परवाह कम ही लोग करते हैं। चंदा पारीक का यह नवाचार उन सब लोगों के लिए प्रेरणा साबित हो सकती है जिनके पास ज्ञान की अलग-अलग धाराओं की पुस्तकें और साहित्य पड़ा है। वे रद्दी में देने से पहले उनको पात्र व्यक्तियों तक पहुंचाने का प्रयास अवश्य करें, जैसा कि पारीक ने किया ।