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ट्रैफिक सिग्नल से यातायात मैनेजमेंट फेल, विज्ञापन कमाई का चल रहा खेल

करीब दो साल से शहर में ट्रैफिक लाइटों के नाम पर कमाई का खेल चल रहा है। शहर के यातायात को व्यविस्थत करने के नाम पर निजी फर्म को ट्रैफिक लाइटें लगाने के लिए चौराहे सौंप रखे है। ट्रैफिक लाइटों के पोल खड़े कर उन पर विज्ञापन डिस्पले बोर्ड से कमाई का खेल तो बेखुबी चल रहा है लेकिन, मूल उद्देश्य ट्रैफिक मैनेजमेंट ठप पड़ा है।

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पुलिस लाइन पर ट्रेफिक सिग्नल सिस्टम के बावजूद बेरोकटोक गुजरते वाहन

- 15 जगह लगी ट्रैफिक लाइटों का नहीं हो रहा उपयोग

- व्यस्त मार्गोंं पर जेब्रा व क्रॉसिंग लाइनिंग ही नहीं
दृश्य एक : समय दोपहर 2.00 बजे। म्यूजियम सर्किल पर ट्रैफिक लाइट के सिग्नल का समय ठीक नहीं है। यहां सबसे ज्यादा ट्रैफिक जयपुर मार्ग से सिटी की तरफ आने का है। परन्तु 30 सेकेंड के बाद 15 सेकेंड के लिए बत्ती ग्रीन होती है। लाइन में लगे वाहन निकलने से पहले बत्ती रेड हो जाती है।
दृश्य दो : समय दोपहर 2.30 बजे। जूनागढ़ के सामने ट्रैफिक लाइटें अपने हिसाब से जलती और बंद होती रहती है। कोई भी ट्रैफिक सिग्नल के अनुसार वाहन क्रॉस नहीं करता। यातायात पुलिसकर्मी भी नहीं होती है। तीन गेट के पास सीवरेज का कार्य चल रहा है। ऐसे में दिनभर वाहनों का जाम रहता है।
दृश्य तीन : समय शाम 6.10 बजे। पुलिस लाइन चौराहे पर ट्रैफिक लाइट लगी हैं। यहां लाल बत्ती में वाहन बेरोकटोक गुजरते है। वाहन और लोग सड़क क्रॉस कर दूसरी तरफ आवागमन के लिए दिनभर परेशान रहते है। यहां पुलिसकर्मी तैनात रहता है लेकिन, बिना हेलमेट व सीट बेल्ट पर ही नजर रखते हैं।

बीकानेर. करीब दो साल से शहर में ट्रैफिक लाइटों के नाम पर कमाई का खेल चल रहा है। शहर के यातायात को व्यविस्थत करने के नाम पर निजी फर्म को ट्रैफिक लाइटें लगाने के लिए चौराहे सौंप रखे है। ट्रैफिक लाइटों के पोल खड़े कर उन पर विज्ञापन डिस्पले बोर्ड से कमाई का खेल तो बेखुबी चल रहा है लेकिन, मूल उद्देश्य ट्रैफिक मैनेजमेंट ठप पड़ा है। ऐसा एक-दो जगह नहीं 16 जगह लगी ट्रैफिक लाइटों में से 15 जगह पर हो रहा है। एक जगह म्यूजियम सर्किल पर ट्रैफिक लाइट चालू है वहां भी सिग्नल का टाइमर वाहन दबाव के अनुरूप नहीं होने से सुविधा से ज्यादा परेशानी का कारण बना हुआ है।ट्रैफिक लाइटों से ऑटोमेटिक वाहनों को नियंत्रित कर यातायात पुलिस का भार कम होना था। परन्तु हो रहा इसके उलट है। दिनभर रेड लाइट जल रही होने के बावजूद वाहनों के बेरोकटोक गुजरने से ट्रैफिक सिग्नल तोड़ने की लोगों को आदत पड़ रही है। ऐसे में कभी ट्रैफिक सिग्नल लागू भी किए गए तो लम्बे समय से बनी आदत को सुधारना मुश्किल हो जाएगा। हैरानी की बात यह भी है कि ट्रैफिक लाइटों को चारों तरफ से विज्ञापन डिस्पले बोर्ड से घेरा हुआ है। जिन पर विज्ञापन से निजी फर्म अपनी जेब भर रही है। यदि ट्रैफिक लाइटों की आवश्यकता ही नहीं थी, तो विज्ञापन कमाई का रास्ता क्यों खोला गया, इसका कोई जवाब देने वाला नहीं है।

यहां लगी है ट्रैफिक लाइटें

हल्दीराम प्याऊ, सोफिया तिराहा, म्यूजियम सर्किल, श्रीगंगानगर सर्किल, पंडित धर्मकांटा, पूगल फांटा, पुलिस लाइन चौहारा, कुंज गेट, रानीबाजार सर्किल, आर्मी गेट, रामरतन कोचर सर्किल, जैन कॉलेज तिराहा, कोठारी हॉस्पिटल, मंडी गेट, सर्किट हाउस।

स्कूलों व कॉलेज के आगे नहीं जेब्रा क्रॉसिंग

शहर में स्कूल, कॉलेज व चिकित्सा संस्थानों के आगे सड़क पर कहीं पर भी जेब्रा व क्रॉसिंग लाइन नहीं है। इससे हमेशा हादसे की आशंका बनी रहती है। जयपुर रोड पर डूंगर कॉलेज, केन्द्रीय विद्यालय और निजी स्कूलों के सामने भी जेब्रा व क्रॉसिंग लाइन नहीं है। एमएस कॉलेज के नजदीक पुलिस लाइन चौराहा, गंगाशहर मार्ग पर शिक्षण संस्थानों के सामने, पीबीएम अस्पताल और निजी अस्पतालों के सामने व्हाइट लाइनिंग नहीं है।

प्राथमिकता से करवाएंगे कार्य

ट्रैफिक मैनेजमेंट और सड़क सुरक्षा में रोड मार्किंग एवं रोड साइन का महत्वपूर्ण योगदान है। विशेषकर दोपहिया वाहन व पैदल राहगीरों के लिए मार्किंग रोड सुरक्षा का काम करती है। शहर में जितनी भी नई सड़कें है, उन सभी पर रोड मार्किंग जैसे रॉड क्रॉसिंग, एज लाइन, जेब्रा कॉसिंग व स्टॉप लाइन का कार्य जल्द पूरा कर लिया जाएगा। इसके अलावा जहां कहीं आवश्यकता है, वहां रोड मार्किंग का कार्य करवाया जाएगा।
विमल गहलोत, अधिशासी अभियंता पीडब्ल्यूडी एवं रोड सेफ्टी एक्सपर्ट

शहर में सड़कों पर जेब्रा लाइन, क्रॉसिंग, स्टॉप लाइन नहीं होने के साथ ट्रैफिक लाइटों के लाल-पीला होने का साइकल दुरुस्त नहीं है। ट्रैफिक लाइटें तो लग चुकी हैं लेकिन टाइमर नहीं होने से दिक्कत आ रही है। इसके लिए जयपुर मुख्यालय सहित स्थानीय स्तर पर भी संबंधित विभाग को अवगत कराया है। यूआईटी व जिला प्रशासन मिलकर जल्द ही शहर में ट्रैफिक लाइटों का सिस्टम चालू कराएंगे।
किशन सिंह, उप पुलिस अधीक्षक यातायात