
Dev Uthani Ekadashi 2021: तुलसी विवाह और देवउठनी एकादशी 14 नवंबर या 15 नवंबर को, यहां जानें सही तिथि और पूजा विधि, महत्व
बिलासपुर. जितने भी त्यौहार हम सभी मनाते हैं वह सभी आदि सनातन देवी-देवता धर्म के यादगार रूप हैं इसका रहस्य परमात्मा जब संगम युग पर आते हैं तो पूरी जानकारी देते हैं देवउठनी। जब देवता है द्वापर से वाम मार्ग में चले जाते हैं तब जो भारत सोने की चिडिय़ा कहलाता था उसका पतन होना शुरू हो जाता है फिर धर्म की अति ग्लानि होती हैं तो परमात्मा का जब अवतरण होता है तब परमात्मा उन्हीं देव कुल की आत्माओं को पावन बना कर उठाते हैं इसीलिए देवउठनी कहते हैं। यह बातें ब्रह्मकुमारी राधे ने जोरापारा दिव्य ज्योति भवन में बुधवार को बताया। ब्रह्मकुमारी सेंटर दिव्य ज्योति भवन जोरापारा में एकादशी का आध्यात्मिक महत्व बताने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें संचालिका ब्रह्मकुमारी राधे ने विस्तार से आध्यात्मिक महत्व बताया। उन्होंने कहा कि एकादशी जब देवी-देवता कुल के आत्माएं पावन बन कर उठ जाते हैं तो सतयुगी दुनिया आरंभ होती है और सत्य की दुनिया में विश्व महाराजन नारायण और विश्व महारानी लक्ष्मी का राज्य शुरू होता है वहीं से सतयुगी दुनिया की शुरुआत का आरंभ होता है इसीलिए दिवाली के बाद एकादशी आती है। इस दिन तुलसी विवाह का विशेष महत्व होता है। क्योंकि जो शिव के बच्चे शालीग्राम होते हैं वह संगम युग में परमात्मा से शक्ति लेकर सतयुग में विष्णु बन जाते हैं इसीलिए तुलसी का विवाह शालीग्राम से दिखाया जाता है शालीग्राम भी विष्णु का रूप है और तुलसी माता ही लक्ष्मी का रूप है इसलिए दोनों का विवाह कराते हैं। इस दिन विशेष करके गन्ना पूजा करते हैं कहने का भावार्थ यह है कि पूरी दुनिया ही मीठी दुनिया रहती है जहां लक्ष्मी नारायण का राज्य था। जिसे स्वर्ग कहते हैं इस अवसर पर व्रत रखते हैं अनाज नहीं खाते हैं कंद मूल, फलाहारी आदि लेते हैं क्योंकि स्वर्ग में अनाज का सेवन नहीं किया जाता। स्वर्ग में केवल फल ही देवी-देवताओं का मुख्य सात्विक आहार होता है। उसके ही यादगार में एकादशी को सभी लोग उपवास के दिन शुद्ध और पवित्र चीज ही ग्रहण करते हैं इस अवसर पर ब्रह्मकुमारी साक्षी, ब्रह्मकुमारी सृष्टि, ब्रह्मकुमारी हर्षिता, शांता, राजश्री, वर्षा, रेणुका, सुरेश का विशेष सहयोग रहा।
Published on:
06 Nov 2019 08:34 pm
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