
छत्तीसगढ़ में घटते दाल के उत्पादन, रकबे विषय पर संगोष्ठि भी आयोजित हुई इसमें किसानों ने अपनी बात रखी।
बिलासपुर. प्रदेश में दलहन की फसलों का रकबा घट रहा है। इतना ही नहीं इसका उपभोग भी कम हुआ है। इस बात की जानकारी दलहन दिवस के अवसर पर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र में दी गई। इस दौरान विशेषज्ञों ने न सिर्फ इस पर चिंता जताई बल्कि इस बात की मांग भी उठाई कि दलहन के उत्पादन को उद्योग का दर्जा दिया जाए ताकि इसमें किसानों की रुचि बढ़े और रकबा के साथ उत्पादन को बढ़ाया जा सके। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में घटते दाल के उत्पादन, रकबे विषय पर संगोष्ठि भी आयोजित हुई इसमें किसानों ने अपनी बात रखी।
ग्लोबल डेटा
कार्यक्रम में शामिल हुए मुख्य अतिथि डॉक्टर अरविंद कुमार उप महानिदेशक अनुसंधान एवं क्षेत्रीय निदेशक एशिया, इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरीड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) हैदराबाद ने कहा कि दालों के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में प्रथम है। विश्व के कुल कृषि क्षेत्रफल का 37 प्रतिशत से भी अधिक दलहन उत्पादन के अंतर्गत आता है और विश्व के कुल दलहन उत्पादन का 28 प्रतिशत से भी अधिक भारत में होता है। पवर्तमान में हम 25 मिलियन टन उत्पादन कर रहे हैं, किंतु दलहनी फसलों का रकबा दिन पर दिन घट रहा है जो कि चिंता की बात है।
क्यों जरूरी है दाल
विशेषज्ञों ने कहा कि देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि दाल के उत्पादन को बढ़ाया जाए और उसे उद्योग का दर्जा दिया जाए। कहा गया कि दालों का उत्पादन बढ़ाना हमारी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए बल्कि उसी अनुपात में मांग भी बढऩी चाहिए। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में दलहन का घटता रकबा चिंता का विषय है, जिस हेतु ठोस उपाय करना होगा।
अब प्रदेश की स्थिति
कार्यक्रम में डॉ. आर. के. एस. तिवारी, अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय कहा कि दालें प्रोटीन, फाइबर और खनिजों का एक समृद्ध स्रोत है। दलहन फसलों की उत्पादकता वर्तमान में 700 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से भी कम है। दालों का मानव उपभोग जहां 70 ग्राम प्रति व्यक्ति था वह घटकर अब 40 ग्राम प्रति व्यक्ति हो गया है। विशेषकर छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखा जाए तो वर्ष १९-२० में यह यह आवश्यक है कि प्रति व्यक्ति दाल उत्पादकता वृद्धि के लिए आवश्यक है कि दलहन फसलों की उत्पादकता एवं रकबे को बढ़ाया जाए।
किसानों का हुआ मोहभंग
खरीफ के बाद रबी में दलहन फसल लेना संभव नहीं होता है। किसानों का सोयाबीन से मोहभंग हुआ है। अनियंत्रित चराई से मेड़ों पर अरहर का क्षेत्र कम हो रहा है। गन्ने के बीच दलहनी फसल लेकर इसका रकबा बढ़ा सकते हैं।
श्री. श्रीकांत गोवर्धन,प्रगतिशील कृषक, मुंगेली
जलवायु परिवर्तन व जंगली जानवर
छत्तीसगढ़ में धान के बाद सबसे ज्यादा रकबा तिवड़ा का है, किंतु जलवायु परिवर्तन, चराई एवं रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से इसका क्षेत्र लगातार कम होता जा रहा है। दलहनी फसलों को ना लेने के पीछे मजदूर एवं बंदरों की समस्या भी मुख्य है।
अजय सिंह ठाकुर, प्रगतिशील कृषक, तखतपुर
मजदूरों का पलायन है समस्या
वर्तमान समय पर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण धान के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। दूसरा मुख्य कारण मजदूरों का पलायन एवं उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलना है। इसके लिए सरकार को किसानों के हित में नीति बनानी होगी।
राघवेंद्र सिंह चंदेल, प्रगतिशील कृषक, रिसदा
जैविक खेती को अपनाना होगा
अब हमें प्रकृति की ओर जाना पड़ेगा एवं जैविक खेती को अपनाना होगा। अगर किसान दाल उत्पादन के पश्चात उचित प्रसंस्करण कर देते हैं तो उत्पाद का मूल्य संवर्धन हो जाता है जिसके लिए उचित जानकारी होना आवश्यक है।
आशीष मिश्रा, प्रगतिशील कृषक, बिलासपुर
Published on:
13 Feb 2022 09:00 am
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