
बिलासपुर . वर्तमान परिदृश्य में सबसे बड़ी आवश्यकता चिकित्सकों और मरीजों के बीच आपसी सामंजस्य और विश्वास की है। एक वक्त था जब चिकित्सकों का दर्जा ईश्वर के समतुल्य था लेकिन गत दो-तीन दशकों से स्थितियां बदली है। इसे बाजारवाद की दौड़ कहें या सहनशीलता में कमी, मरीज के साथ किसी प्रकार की अनहोनी होने पर परिजनों द्वारा अप्रिय स्थिति निर्मित होने की घटनाएं आए दिन की बात हो गई है। हालांकि इसके लिए किसी एक पक्ष को दोषी ठहराया जाना कतई उचित नहीं है। चिकित्सक कभी जानबूझकर इलाज में किसी प्रकार की कोताही नहीं करता, उसकी कोशिश होती है कि मरीज अच्छे होकर घर जाएं। सिम्स से सेवानिवृत एमएस व सीएमएचओ डा. आरआर तिवारी ने टापिक आफ दे डे में वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था के तमाम पक्षों पर खुलकर अपनी बात रखी।
उन्होंने चिकित्सकों के पलायन से लेकर सरकारी सेवाओं से चिकित्सकों की बढ़ती दूरी और प्राइवेट व्यवसाय को बढ़ावा जैसे विषयों पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा प्रदेश के 17 मेडिकल कालेजों में प्रतिवर्ष 6 हजार से अधिक चिकित्सक तैयार होते हैं। कायदे से उन्हें प्रदेश के मरीजों की सेवा में अपने कौशल का प्रदर्शन करना चाहिए। लेकिन शासन द्वारा इस संबंध में पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने, स्पष्ट दिशा-निर्देश का अभाव, 30 से 40 हजार रुपए की अत्यंत कम सैलरी भी स्थितियों के लिए जिम्मेदार है। मेडिकल की पढ़ाई में लाखों रुपए और वर्षों का समय देने के बाद चिकित्सकों को अगर जीवनयापन के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं मिलेगा, तो मजबूरन उसके विकल्प सीमित होंगे। निजी चिकित्सा क्षेत्र में प्रवेश के लिए बाध्य होंगे।
कभी अप्रिय स्थितियों से सामना नहीं
डा. तिवारी ने कहा चिकित्सा सेवाकाल की लंबी अव्िध के दौरान हजारों आपरेशन किया। ऐसा नहीं है कि इस दौरान किसी मरीज के साथ कोई अनहोनी नहीं हुई। लेकिन कभी भी मरीज के परिजनों द्वारा किसी अप्रिय स्थिति का सामना करने का अवसर नहीं आया। अंतिम यात्रा के वक्त भी मरीज के परिजन हमेशा पैर छूकर ही गए। यही बात राहत देती है कि इमानदार कोशिश की। बाकी जीवन-मरन तो ईश्वर के हाथ में है।
Published on:
05 Feb 2018 08:28 pm
बड़ी खबरें
View Allबिलासपुर
छत्तीसगढ़
ट्रेंडिंग
