30 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

दिलकश नग्में गाने के बाद भी बैचलर क्यों? जानें क्या जवाब दिया सिंगर साधना सरगम ने, देखें विडियो

ये है हिंदुस्तान की सदाबहार गीत और संगीत का जादू, ऐसे कई अवसरों की गवाह रही हूं मैं।

2 min read
Google source verification
Sadhna sargam

जब से तुझको देखा है सनम, तेरी उम्मीद तेरा इंतजार जैसे नगमों के बाद भी बैचलर रहने का फैसला क्यों? इस सवाल पर क्या कहा सिंगर साधना सरगम ने, देखें विडियो

बिलासपुर. आज की तेज रफ्तार और दिल की धड़कनें बढ़ा देने वाली बीट में पहला नशा- पहला खुमार, नया प्यार है नया इंतजार जैसी सुरीली धुनें कहीं गुम हो गई हंै। लेकिन राह चलते रेडियो या कहीं दूर से भी इस गाने की चंद पंक्तियां 21 वीं सदी के युवा के कानों में पड़ती है तो उसके कदम भी ठिठक जाते हंै, ऐसी धुनें और सुरीले बोल उसे पूरा गीत सुनने के लिए बाध्य करती है। ये है हिंदुस्तान की सदाबहार गीत और संगीत का जादू, ऐसे कई अवसरों की गवाह रही हूं मैं।

पत्रिका से चर्चा करते हुए 90 के सुरीले दशक की बेहतरीन क्लासिकल सिंगर साधना सरगम ने कही। सोमवार को एसईसीएल स्थापना दिवस के अवसर पर इंदिरा विहार गेस्ट हाउस में उनसे 90 से लेकर आज की मौशिकी, गीत-संगीत, गायक, संगीतकार, बालीवुड के वर्किंग कल्चर समेत तमाम विषयों पर चर्चा हुई। बातचीत में उन्होंने इस बात को फराखदिली से स्वीकार किया कि परितर्वन तो सृष्टि का शाश्वत नियम है और इसके अनुरुप बदलना शायद नियति। अब उसे जो मंजूर हो। छेलाजी गु्रप के विनोद पटेल के आमंत्रण पर एसईसीएल के कार्यक्रम में शामिल होने आईं।
प्र.जब से तुझको देखा है सनम, तेरी उम्मीद तेरा इंतजार जैसे दिलकश नग्मों के बाद भी बैचलर रहने का फैसला क्यों?
उ.सवाल दिलचस्प है। अब क्या कहूं उम्र के इस पड़ाव पर शायद इसका जवाब बेमानी भी हो। कभी फुर्सत के क्षणों में इस पर गहराई से मैं खुद भी सोचूंगी। आपको जरुर बताऊंगी। लेकिन एक बात है कि गीत-संगीत की रुहानी दुनिया में दुनियावी चीजों का होश ही किसे रहता है।

प्र.34 रीजनल भाषाओं में 15 हजार से अधिक गाने गाए, क्या छूट गया?
उ.मुझे तो पता भी नहीं कि इतनी भाषाओं में गाने गाए। सच पूछें तो मराठी और हिंदी के अलावा मुझे कोई भाषा आती भी नहीं, अब ये तो सुनने वाले बताएं, क्या छूट गया। बस संगीत की साधना में रत हूं। इसके आगे कोई चाह नहीं।
प्र.गुजरा संगीत वर्तमान पर हमेशा तोहमतें ही क्यों लगाए, कुछ अच्छा क्या हो रहा है?
उ.नहीं, सवाल तोहमतों का कतई नहीं है। ये तो दौर को तय करना है। कब पुराना दौर नए केंचुल पहन बिल्कुल नए अवतार में सामने आए। और लोगों को भा जाए। नहीं कह सकते। आज के दौर में भी अरिजित सिंह जैसे सुरीले गायक हैं। मैं पसंद करती हूं।
प्र.पं.जसराज, वसंत देसाई व लक्ष्मी-प्यारे के सानिध्य को कैसे याद करती हैं?
उ.अब क्या कहूं, संगीत की पूरी तालीम इन्हीं के चरणों में बैठ कर सीखी हूं। ऐसे गुरुओं का मिलना ऐसे ही है, जैसे मानव जीवन सफल हो गया। रोज सुबह रियाज कर आदरांजलि देकर छोटा सा फर्ज अदा करती हूं।

प्र.रुहानी दुनिया की सैर को ले जाने वाला हमारा संगीत, आज कहां जा रहा?
उ. ये बात तो सही है कि आज का गीत और संगीत आपको किसी रुहानी दुनिया की सैर कराने से तो रहा। हां, गिनी-चुनी अच्छी धुनें अभी भी बरबस आपके कदम ठिठका देती हैं। पर अधिकांश में सिवाय बीट के कुछ नहीं। उत्तेजना में उछलने को शायद यही चाहिए। यही पसंद है आज की पीढी की। ठीक भी है. हक है उनका।