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हिंदवाड़ा एनकाउंटर: दसवें ऑपरेशन में जिंदगी की जंग हार गए कर्नल आशुतोष, किस्से जानकर करेंगे गर्व

Highlights: -Colonel Ashutosh Sharma का जन्म बुलंदशहर के मोहल्ला राधानगर में हुआ -कश्मीर के हिंदवाड़ा में आतंकियों से मुठभेड़ में वह शहीद हो गए -इससे पहले वह 9 ऑपरेशनों को सफलता पूर्वक कर चुके हैं

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बुलंदशहर। श्रीनगर के हिंदवाड़ा में आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए 21 राष्ट्रीय राइफल्स के कर्नल आशुतोष शर्मा (Colonel Ashutosh Sharma) के परिवार या पड़ोस में एक भी शख्स ऐसा नहीं था जो सेना में हो। इसके बावजूद आशुतोष (Martyr Ashutosh Sharma) में शुरू से सेना (Indian Army) में जाने का जज्बा रहा। वह छठे प्रयास में लेफ्टिनेंट बने। देश सेवा के लिए एक कदम आगे बढ़ाकर लगातार 9 महत्वपूर्ण ऑपरेशन किए। आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया। दसवें ऑपरेशन में वे जिंदगी की जंग हार गए।

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दरअसल, कर्नल आशुतोष शर्मा का जन्म बुलंदशहर के मोहल्ला राधानगर में हुआ, लेकिन उनके परिजन मूलत: औरंगाबाद क्षेत्र में गांव परवाना के रहने वाले हैं। आशुतोष के पिता शंभूदत्त शर्मा का जन्म परवाना गांव में हुआ। वह भूमि संरक्षण अधिकारी थे और प्रदेश के तमाम जनपदों में तैनात रहे। इसलिए कर्नल आशुतोष की शुरुआती पढ़ाई बुलंदशहर सहित कई जनपदों में हुई। करीब पन्द्रह साल पहले पिता सेवानिवृत्त हो गए।

दिनेश चंद्र पाठक, कर्नल आशुतोष के तहेरे भाई हैं। दिनेश बताते हैं कि परिवार में कोई सदस्य सेना में नहीं था। इसके बावजूद आशुतोष शुरू से सेना में जाने का सपना संजोये हुए थे। उन्होंने कुल छह बार एनडीए की परीक्षा थी और छठवें प्रयास में एनडीए के जरिये देहरादून में सीधे लेफ्टिनेंट बने। चार साल पहले बुलंदशहर से आशुतोष शर्मा परिवार सहित जयपुर में शिफ्ट हो गए। आशुतोष के पिता का देहांत हो चुका है। जयपुर में अब उनकी पत्नी पल्लवी, 13 वर्षीय बेटी कुहू, मां सुधा शर्मा और भाई पीयूष शर्मा रहते हैं। पीयूष शर्मा मेडिसन कंपनी में एरिया मैनेजर हैं। आशुतोष की तैनाती पिछले दो साल से जम्मू कश्मीर में थी। परिजनों के अनुसार, आशुतोष में सेना का जज्बा इतना जबरदस्त था कि वह महत्वपूर्ण ऑपरेशन खुद लीड करते थे। इसी साल आशुतोष ने 9 आतंकी पकड़े थे। 2019 में उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया था।

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शोक में डूबा गांव

गांव में कर्नल आशुतोष शर्मा के तहेरे भाई दिनेश चंद्र पाठक और उनका परिवार रहता है। रविवार सुबह परिजनों को फोन के जरिये आशुतोष के शहीद होने की खबर मिली। इसके बाद गांव से पारिवारिक सदस्य सोनू पाठक, ललित पाठक जयपुर के लिए रवाना हो गए। जिला प्रशासन ने विशेष पास जारी करके इन्हें जयपुर जाने की अनुमति दी। फिलहाल पूरा गांव शोक में डूबा हुआ है। आशुतोष के पैतृक घर पर ग्रामीणों का जमघट है। हर कोई उनकी बहादुरी के किस्से सुना रहा है।

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2014 में आए थे गांव

कर्नल आशुतोष शर्मा 22 अगस्त 2014 को गांव परवाना आए थे। उनकी दादी प्रेमवती देवी का देहांत हो गया था। वह उनकी अरिष्ठी में शामिल हुए थे। हालांकि जम्मू कश्मीर में तैनाती की वजह से पिछले दो साल से वह बुलंदशहर नहीं आ पाए थे। गांव में मौजूद परिजनों की आखिरी बार उनकी बात दिवाली पर हुई थी। पारिवारिक सदस्य सोनू पाठक से एक साल पहले बातचीत फोन पर हुई थी।

मुझे आपके जैसी नौकरी नहीं करनी

आशुतोष शर्मा के पिता भूमि सरंक्षण अधिकारी थे। वह चाहते थे कि बेटा भी उन्हीं के विभाग में नौकरी करें। लेकिन आशुतोष ने इससे मना कर दिया। आशुतोष ने पिता से इच्छा जताई थी कि वह सेना में जाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने शिददत से मेहनत भी की।

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पत्नी सेना के स्कूल में थीं शिक्षक

आशुतोष की पत्नी पल्लवी शर्मा देहरादून में सेना के स्कूल में शिक्षक थीं। शादी के बाद उन्होंने वीआरएस ले लिया और पारिवारिक जिंदगी शुरू कर दी।

प्रोफाइल

नाम : कर्नल आशुतोष शर्मा

उम्र : 45 साल

जन्मस्थान : मोहल्ला राधानगर, बुलंदशहर

परिवार : मां सुधा शर्मा, पत्नी पल्लवी, 13 वर्षीय बेटी कुहू, भाई पीयूष शर्मा, भाभी रचना शर्मा, भतीजे सिद्धार्थ और सिद्धांत शर्मा

शिक्षा : डीएवी इंटर कॉलेज से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट, डीएवी डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन