
दरिंदों को उम्रकैद नहीं, फांसी मिलनी चाहिए थी | Image Source - Pexels
Gangrape verdict victim statement Bulandshahr: ‘मेरे साथ जो हुआ, उसके बाद लगा जैसे जिंदगी खत्म हो गई हो।’ बुलंदशहर गैंगरेप केस की पीड़िता की यह आवाज़ आज भी समाज को झकझोर देती है। 9 साल 4 महीने और 22 दिन बाद जब पॉक्सो कोर्ट ने दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई, तब भी पीड़िता के मन में संतोष के साथ एक चुभन बाकी रही। उसका कहना है कि ऐसे दरिंदों को उम्रकैद नहीं, फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी, ताकि समाज में कड़ा संदेश जाए और कोई दोबारा ऐसा अपराध करने से पहले सौ बार सोचे।
पीड़िता ने बताया कि अपराध के बाद सबसे ज्यादा दर्द समाज के व्यवहार ने दिया। लोग उंगलियां उठाने लगे, बातें बनने लगीं और बार-बार घर बदलने की मजबूरी आ गई। उसकी सहेली को भी परिवार ने उससे मिलने-जुलने से मना कर दिया। पीड़िता कहती है कि जिन लोगों ने अपराध किया, वे जेल में थे, लेकिन सजा समाज ने पीड़ित परिवार को भी दी।
इस कठिन दौर में पिता उसकी सबसे बड़ी ढाल बने। पहले वह कारोबार करते थे, लेकिन घटना के बाद परिवार की सुरक्षा और मानसिक स्थिति को देखते हुए उन्हें घर पर रहना पड़ा। आर्थिक परेशानियां बढ़ीं, लेकिन पिता ने कभी हिम्मत नहीं हारने दी। उन्होंने बेटी से कहा, इतनी काबिल बनो कि कानून के जरिए ऐसे लोगों को सजा दिला सको।
पीड़िता ने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया है और अब लॉ की पढ़ाई कर जज बनने की तैयारी कर रही है। उसका कहना है कि वह चाहती है कि भविष्य में कोई लड़की सालों-साल इंसाफ के लिए इंतजार न करे। वह उस कुर्सी पर बैठना चाहती है, जहां से ऐसे अपराधियों को सख्त सजा दी जा सके।
घटना 28 जुलाई 2016 की रात की है। नोएडा से एक परिवार कार द्वारा शाहजहांपुर अपने गांव जा रहा था, जहां तेरहवीं का कार्यक्रम था। रात करीब डेढ़ बजे बुलंदशहर देहात कोतवाली क्षेत्र के दोस्तपुर फ्लाईओवर के पास बदमाशों ने कार रोक ली। परिवार को बंधक बनाया गया और मां-बेटी को पास के खेत में ले जाकर सामूहिक दुष्कर्म किया गया।
पीड़ित परिवार ने डायल-100 पर 100 से अधिक बार कॉल की, लेकिन मदद नहीं मिली। आखिरकार लड़की के पिता ने नोएडा पुलिस में तैनात अपने एक दोस्त को फोन किया, तब जाकर पुलिस मौके पर पहुंची। आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने शुरुआत में मामला दबाने की कोशिश की और मेडिकल जांच के लिए पीड़िता को भटकना पड़ा।
31 जुलाई 2016 को पुलिस ने तीन फर्जी आरोपियों को पकड़कर केस सुलझाने का दावा किया। मामला जब तूल पकड़ गया, तब डीजीपी और प्रमुख सचिव मौके पर पहुंचे। उसी दिन एसएसपी, सीओ और थाना प्रभारी समेत 19 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए। 19 अगस्त 2016 को जांच शुरू हुई और आरोपियों की रिमांड लेकर घटनास्थल पर सीन रीक्रिएशन कराया गया। जांच के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
इस केस में कुल 11 लोगों की गिरफ्तारी हुई। ट्रायल के दौरान एक आरोपी की बीमारी से मौत हो गई। दो आरोपी अलग-अलग पुलिस एनकाउंटर में मारे गए, जबकि तीन के नाम केस से हटाए गए। अंततः पांच आरोपियों पर मुकदमा चला।
पॉक्सो कोर्ट के जज ओम प्रकाश वर्मा ने फैसले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि सभ्य समाज को ऐसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों से अलग रखा जाना चाहिए और जब तक वे जिंदा रहें, जेल में ही रहना चाहिए।
सजा के बाद दोषी जुबैर अदालत में चिल्लाता रहा कि उसे झूठा फंसाया गया है। कोर्ट ने पांचों दोषियों को उम्रकैद और 1.81 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माने की आधी राशि पीड़ित मां-बेटी को दी जाएगी।
Published on:
23 Dec 2025 10:12 am
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