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आखिरकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को मिल ही गया ‘ताजमहल’

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट जाकर मांगा था ताजमहल का मालिकाना हक, लेकिन यहां से आई अच्छी खबर

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Taj Mahal

बुलंदशहर. शायद ही कभी किसी ने सोचा होगा कि वो भी शाह जहां की तरह अपनी बेगम की याद में ताजमहल बनाएगा। लेकिन, साल 80 साल के फैजुल हसन कादरी ने ये सच कर दिााया और अपनी मरहूम बेगम की याद में ताज महल की तर्ज पर उन्होंने भी बुलन्दशहर में एक मिनी ताजमहल बना डाला। धनाभाव के कारण मिनी ताज पर अभी पक्थर नहीं लगा है, अब उन्होंने इस मिनी ताजमहल को वक्फ बोर्ड को दान दे दिया है, ताकि इसका निर्माण शीघ्र पूर्ण हो सके।

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दिल्ली से 135 किमी दूर बुलन्दशहर के डिबाई कोतवाली के गांव कसेरकलां में ये मिनी ताजमहल बनाया गया है। ताजमहल की तर्ज पर रिटायडऱ् पोस्ट मास्टर फैलुज हसन कादरी ने अपनी मरहमूम बेगम तज्जमुल्ली की याद में इसे बनवाया है। इस मिनी ताजमहल को बनवाने में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी की जमा पूंजी खर्च कर दी। इसके बाद वह इसे मुकम्मल नहीं कर पाए। हालांकि, जब इस मामले की खबर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लगी तो उन्होंने कादरी को लखनऊ बुलाकर मदद की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। अब कादरी ने इस मिनी ताजमहल को वक्फ बोर्ड को सौंप दिया है।

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मिनी ताजमहल निर्माण बेच डाले सभी जमीन और जेवर
दरअसल, इस मिनी ताजमहल की आकर्ति हूबहू आगरा के ताजमहल जैसी ही है, लेकिन यह देखने में एकदम साधारण है। यह मात्र 11 लाख रुपए की लागत से अभी तक तैयार हुआ है। फैजुल हसन कादरी और तज्जमुली बेगम के कोई संतान नहीं है। इसलिए तज्जमुली बेगम ने अपने आखरी समय अपने पति से कहा कि हमारे मरने के बाद हमारा नाम लेने वाला कोई नहीं होगा, तब फैजुल हसन ने तज्जमुली बेगम से यह वादा किया था कि वह भी अगर मेरे जीतेजी तुम्हें कुछ हो गया तो मैं हू-बहू ताजमहल जैसी एक छोटी इमारत बनवाऊंगा, ताकि दुनिया बरसों तक हमे याद करें। दिसंबर 2011 में बेगम तज्जमुली का निधन हो गया और फैजुल हसन ने फरवरी 2012 में अपने वादे के अनुरूप अपनी घर की खाली प्लॉट पर ताजमहल का काम शुरू करवा दिया। इसके लिए वो पहले कारीगरों को आगरा ताजमहल घुमा कर लाए, ताकि वो डिजाइन को अच्छी तरह समझ सके। फैजुल हसन कादरी के पास कुछ रुपए तो बचत और प्रोविडेंट फंड के थे, लेकिन बाकी रकम का इंतजाम उन्होंने जमीन और अपनी मरहूम बीबी के गहने बेच कर किया। कुल मिलाकर 11 लाख रुपए इकठ्ठे हुए, जिनसे 18 महीनो में एक ढ़ाचा खड़ा हो गया।

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किसी से नहीं ली मदद

हालांकि फिर पैसे खत्म होने के कारण काम बंद करना पड़ा. लोगों ने उन्हें मदद की पेशकश की मगर उन्होंने यह कह कर ठुकरा दी की इसका सम्पूर्ण निर्माण में अपने पैसों से करवाऊंगा। अब जैसे-जैसे उनके पास अपनी पेंशन के रुपए इकठ्ठे होते हैं, वो इसका काम करवाते रहते है. फैजुल हसन कादरी ने अपनी बेगम की कब्र ताजमहल में बनवा दी है। फैजुल हसन को जब भी अपनी बेगम की याद आती है तो वे अपने कमरे की खिड़की से इस ताजमहल का दीदार करने लगते हैं।


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