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पुरखों के घर में गूंजी दहाड़, उजड़े चमन में लौटी बहार रामगढ़ पहुंचा बाघ टी-91

बाघ टी-91 अपने पुरखों के घर रामगढ़-विषधारी वन्यजीव अभयारण्य को सुखद व सुनहरा अहसास कराने आ पहुंचा।

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Ramgarh Fort

बूंदी. बाघ टी-91 अपने पुरखों के घर रामगढ़-विषधारी वन्यजीव अभयारण्य को सुखद व सुनहरा अहसास कराने आ पहुंचा। अब देखना यह है कि अन्य बाघों की तरह वापस लौट जाएगा या फिर अपने पुरखों के घर में ही साम्राज्य कायम करेगा। साम्राज्य स्थापित करने के लिए उसे जरूरत है तो सिर्फ सुरक्षा प्रदान करने की। प्यास बुझाने के लिए मेज नदी स्थित है तो भूख मिटाने के लिए नील गाय व अन्य छोटे वन्यजीव। रामगढ़ के आंगन में पैदा होने वाले बाघों का तो पहले ही सफाया हो चुका है। रामगढ़-विषधारी अभयारण्य के उजडऩे के बाद भी यहां कभी-कभी बाघ आते ही बहार आ जाती है। टी-91 से पहले भी रामगढ़ में अगस्त 2002 में कई दिनों तक बाघ की उपस्थिति रही थी। फिर पांच वर्ष बाद नवम्बर 2007 में रणथम्भौर से निकले युवराज ने भी रामगढ़ की ओर रूख किया था। कुछ दिनों तक अभयारण्य में घूमा और वापस लौटते हुए लाखेरी के जंगल में मेजनदी की कंदराओं में शिकारियों के हत्थे चढ़ गया। पांच वर्ष बाद रणथम्भौर से ही निकला टी-6 2 भी कई माह तक रामगढ़ में रहा और फिर वापसलौट गया।

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राह से हटाने होंगे कांटे
रामगढ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य बाघ टी-91 का आना अच्छी खबर तो है, लेकिन उसके लिए अभयारण्य में आच्छादित जूलीफ्लोरा (बिलायती बबूल) स्वतंत्र विचरण में बाधा नहीं बन जाए। वन्यजीव विभाग के जानकारों की माने तो जूलीफ्लोरा का कांटा बाघों के लिए सबसे बड़ा कष्टïदायक माना जाता है। बाघ के पग में जूलीफ्लोरा का कांटा लगते ही उसका चलना-फिरना दुभर बन जाता है। कभी बाघों का जच्चा घर रहा रामगढ़ विषधारी अभयारण्य अब जूलीफ्लोरा का जंगल बन गया है।

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रामगढ़ अभयारण्य पहले धोकड़े का जंगल ही था। जिसमें बाघों को विचरण में कोई बाधा नहीं होती थी। उस समय जहां-जहां पर बाघ विचरण करने के लिए जो रास्ता चुनते थे वह रास्ते अब जूलीफ्लोरा से आच्छादित बने हुए हैं।

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कभी सुनहरा रहा यहां का अतीत
अरावली की पहाडिय़ों के सघन क्षेत्र बाघों का जच्चा घर होने से वन्यजीवों की भरमार के कारण 307 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले रामगढ़-विषधारी को वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया था। दर्जा मिला तक इस जंगल में 14 बाघों व 90 बघेरों की उपस्थिति बताई थी। रामगढ़ किले की पहाडिय़ों के नीचे बनी लम्बी सुरंगों में कभी बाघों की मांदें बनी हुई थी। वन्यजीव विभाग के आंकड़ों पर नजर डाले तो अभयारण्य में 198 5 से ही बाघों की संख्या में कमी आती गई। वर्ष 1999 तक एक ही बाघ बचा था, जो भी लुप्त हो गया था।