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BRTS ऑपरेशन में मेट्रो की तुलना में खर्च 6 गुना कम, दायरा बढ़े तो बसों में चढ़े जनता

एक समय जिस BRTS को बहुत उम्मीद से देखा जा रहा था, आज उसे मुसीबत मानकर तोड़ने की बात की जा रही है। जबकि हकीकत सरकार के दोषपूर्ण रवैये में भी है। एक अनुमान के अनुसार, बीआरटीएस में बस संचालन पर प्रति यात्री 6 रुपए आर्थिक भार आता है, जबकि मेट्रो में प्रति यात्री 38 रुपए। इसके बावजूद सरकार का मेट्रो पर तो फोकस रहा, लेकिन बीआरटीएस से ध्यान हटा लिया। इस तरह सार्वजनिक परिवहन के बेड़े को मजबूत बनाने में नाकाम रही है सरकार।

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राजस्थान की राजधानी जयपुर का अनुभव बताता है कि बीआरटीएस (बस रेपिड ट्रांजिट सिस्टम) कॉरिडोर को दरकिनार करना सरकार और जनता दोनों को महंगा पड़ रहा है। कारण, बीआरटीएस को दरकिनार कर केवल मेट्रो पर फोकस किया गया, जबकि दोनों ही सार्वजनिक परिवहन के साधन हैं। कॉरिडोर में केवल सिटी बस चलाई जानी थी और इसका सरकार पर 6 रुपए प्रति यात्री भार (वायबिलिटी गेप फण्ड) पड़ता। जबकि, मेट्रो में प्रति यात्री भार 38 रुपए आ रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार मेट्रो भी बनाए, लेकिन बीआरटीएस कॉरिडोर के जरिए कम लागत और कम समय में ज्यादा लोगों को सार्वजनिक परिवहन सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है।

इस तरह समाधान: एक पंथ-कई काज

सरकार का सारा ध्यान मेट्रो पर ही क्यों है, ये एक शोध का विषय हो सकता है, लेकिन गौर करने की बात ये है कि ट्रेफिक और ट्रांसपोर्ट मास्टर प्लान की रिपोर्ट में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। खासकर, बीआरटीएस कॉरिडोर में ज्यादा से ज्यादा बसों संचालन हो। एक इलाके की दूसरे क्षेत्र की बस से सीधे कनेक्टिविटी होगी तो लोग बस में यात्रा के लिए आगे आएंगे। निजी वाहनों की संख्या घटेगी। पार्किंग की समस्या कम होगी। सड़क दुर्घटना और प्रदूषण दोनों में भी कमी आएगी।

परिवहन सेवा में बसों की 50 फीसदी हिस्सेदारी

अरबन एण्ड रीजनल डवलपमेंट प्लान फॉर्मूलेशन-इंप्लीमेंटेशन (यूआरडीपीएफआई) की गाइडलाइन के अनुसार परिवहन सेवा में बसों की 50 फीसदी हिस्सेदारी होनी चाहिए। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने भी अलग से गाइडलाइन जारी की हुई है।

बस और मेट्रो: यूं समझें इनका अर्थशास्त्र

इसलिए लाया गया था बीआरटीएस

सबसे अधिक जरूरी बात ये है कि जिन लक्ष्यों को लेकर BRTS लाया गया था, उनमें सभी समस्याएं अभी भी वैसे ही हैं, बल्कि सार्वजिनक परिवहन की चुनौतियाँ और बढ़ती ही जा रही हैं।